दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जारी सुनवाई के दौरान खंडपीठ के दो जज एक-दूसरे से भिन्न मत रखते हुए देखे गए, जहां जस्टिस सुधांशु धूलिया ने किसानों का पक्ष लेते हुए कहा कि उसे भी सुनवाई का मौका दिया जाना चाहिए, वहीं जस्टिस संजय किशन कौल ने किसानों के ख़िलाफ़ सख़्ती बरते जाने की बात कही.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया ने राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण के लिए किसानों को जिम्मेदार ठहराते हुए ‘खलनायक’ के रूप में पेश करने पर आपत्ति जताई है. इस संबंध में द हिंदू ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है.
जस्टिस धूलिया ने कहा, ‘आप सब उसे (किसान) खलनायक बना रहे हैं. वह कोई खलनायक नहीं है. वह जो कर रहा है उसके लिए उसके पास कारण होंगे. वह एकमात्र व्यक्ति है, जो हमें बता सकता है कि वह ऐसा क्यों कर रहा है, लेकिन वह यहां नहीं है… ‘खलनायक’ की बात नहीं सुनी जा रही है. उसे आना चाहिए.’
जस्टिस धूलिया की टिप्पणियां एमिकस क्यूरी वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह द्वारा मंगलवार (21 नवंबर) को सुप्रीम कोर्ट में पेश की गईं दलीलों के बाद आई. सिंह ने कहा था कि अकेले रविवार (19 नवंबर) को पंजाब में पराली वाले धान के खेतों में 748 आग जलाने की घटनाएं सामने आईं.
सिंह ने अदालत से कहा, ‘पंजाब सरकार कहती है कि वह सब कुछ कर रही है, लेकिन यह जमीन पर दिखाई नहीं दे रहा है.’
पीठ का नेतृत्व कर रहे जस्टिस संजय किशन कौल ने अपने साथी जज से अलग टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि जो किसान पराली जलाने के खिलाफ अदालत के आदेशों और परामर्श के बावजूद कानून का उल्लंघन कर रहे हैं, उन्हें थोड़ा कष्ट महसूस कराया जाना चाहिए.
जस्टिस कौल ने कहा कि अदालत के आदेशों और परामर्श के बावजूद अपने कुछ पैसों के लिए वह यह परवाह नहीं करते कि इससे पर्यावरण और बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ेगा. उन्होंने पूछा, ‘कानून का उल्लंघन करने वाले लोगों को आर्थिक लाभ क्यों मिलना चाहिए?’
उन्होंने पंजाब और हरियाणा सरकारों से जानना चाहा कि आदेशों का उल्लंघन करने वाले किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने पर पुनर्विचार क्यों न किया जाए. उन्होंने तीखे शब्दों में कहा, ‘प्रोत्साहन राशि देना बंद कर दो.’
जस्टिस धूलिया ने रेखांकित किया कि एमएसपी एक ‘संवेदनशील मुद्दा’ है. उन्होंने कहा, ‘यहां किसानों को छोड़कर सभी के प्रतिनिधि हैं. किसानों को भी यहां होना चाहिए.’
इसके जवाब में जस्टिस कौल ने कहा, ‘आग जलाने वाले लोग यहां नहीं आएंगे और कानून का पालन करने वाले लोगों को यहां आने की जरूरत नहीं है.’
इस बीच, पंजाब के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह ने अदालत को बताया कि राज्य भर में किसानों के साथ 8,481 बैठकें हो चुकी हैं और सरकार ने पराली जलाने से रोकने के लिए 1,092 उड़नदस्तों को काम पर लगाया है.
सिंह ने यह भी कहा कि आग लगाने के खिलाफ मानदंडों का उल्लंघन करने वाले भूस्वामियों के खिलाफ अब तक 980 एफआईआर दर्ज की गई हैं और पर्यावरणीय मुआवजे के रूप में 2 करोड़ रुपये से अधिक बकाये का अनुमान है.
जस्टिस कौल ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि धान की व्यापक खेती के कारण पंजाब में भूमि शुष्क होती जा रही है.
उन्होंने कहा, ‘कहीं न कहीं, किसानों को धान की खेती के नुकसान समझने होंगे. क्या ऐसी कोई नीति हो सकती है जिसके द्वारा आप (सरकार) धान को हतोत्साहित कर सकें और पंजाब में अन्य फसलों को प्रोत्साहित कर सकें… पानी दुर्लभ होता जा रहा है और कुएं सूख रहे हैं.’
शीर्ष अदालत ने इससे पहले 7 नवंबर को पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया था कि लोगों के जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए तात्कालिक उपाय के रूप में पराली जलाना ‘तत्काल’ रोका जाए.
जस्टिस कौल ने कहा था, ‘प्रदूषण कोई राजनीतिक खेल नहीं है, जहां एक राज्य दूसरे राज्य पर दोष मढ़ देता है. यह (प्रदूषण) लोगों के स्वास्थ्य की हत्या है. आप दिल्ली में बच्चों को स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित देखते हैं.’
इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.