जर्मनी की फोटो प्रदर्शनी बिएननेल फर एक्चुएल फोटोग्राफी के 2024 के संस्करण के क्यूरेटर शाहिदुल आलम ने फिलिस्तीन के समर्थन में फेसबुक पर कुछ पोस्ट किए थे, जिन्हें यहूदी विरोधी मान लिया गया और आयोजन रद्द कर दिया गया. क्यूरेटर की ओर से एक बयान में कहा गया है कि यह नस्लवादी और भेदभावपूर्ण है. फासीवाद वर्तमान में लौट रहा है.
नई दिल्ली: शाहिदुल आलम, तंजीब वहाब और मुनीम वासिफ द्वारा क्यूरेट समसामयिक फोटो प्रदर्शनी बिएननेल फर एक्चुएल फोटोग्राफी का 2024 संस्करण फिलिस्तीन के समर्थन में शाहिदुल के फेसबुक पोस्ट के कारण रद्द कर दिया गया है.
23 नवंबर को एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से क्यूरेटर को इसकी सूचना दी गई. प्रदर्शनी का 10वां संस्करण मार्च 2024 में जर्मन शहरों मैनहेम, लुडविगशाफेन और हीडलबर्ग में आयोजित होने वाला था.
बिएननेल की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, जिसे पहली बार आर्ट अखबार द्वारा छापा गया था, इस फैसले का कारण गाजा में इजरायली सेना के अभियान के बारे में आलम द्वारा सोशल मीडिया पर किए गए आलोचनात्मक पोस्ट थे.
कार्यक्रम के आयोजकों ने एक बयान में आरोप लगाया कि आलम के फेसबुक पेज में ‘ऐसी सामग्री है, जिसे यहूदी विरोधी के रूप में पढ़ा जा सकता है’, यह आरोप आलम और उनके सहयोगियों ने खारिज किया है.
उन्होंने एक बयान में कहा, ‘हमें बिएननेल को क्यूरेट करने के लिए आमंत्रित किया गया था, क्योंकि उन्होंने दावा किया था कि वे हमारी आवाज चाहते थे और हम दुनिया को कैसे देखते हैं, इस पर हमारा दृष्टिकोण चाहते थे. लेकिन अब ऐसा प्रतीत होता है कि हमारी आवाजें केवल उनकी शर्तों पर आमंत्रित की गईं, उनकी शर्तों के अधीन.’
आलम ढाका में रहने वाले एक फोटो जर्नलिस्ट हैं, जो 7 अक्टूबर से सोशल मीडिया पर सक्रिय रूप से पोस्ट कर रहे हैं, जब हमास के आतंकवादियों ने इजरायली क्षेत्र पर हमला किया था और जिसके परिणामस्वरूप लगभग 1,200 लोगों की मौत हो गई थी और 200 से अधिक लोगों को बंधक बना लिया गया था.
बिएननेल आयोजकों ने एक बयान जारी कर कहा कि उन्होंने आलम और महोत्सव के अन्य क्यूरेटर बांग्लादेशी फोटोग्राफर तंजीम वहाब और मुनेम वासिफ को लेकर चिंता व्यक्त की है, ताकि ‘इजरायल के प्रति जर्मनी की विशेष ऐतिहासिक जिम्मेदारी और इजरायल के अस्तित्व के अधिकार के प्रति उन्हें संवेदनशील बनाया जा सके.’
हालांकि, आलम ने फिलिस्तीन समर्थक सामग्री पोस्ट करना जारी रखा, क्योंकि वह ‘खुद को एक कार्यकर्ता के रूप में देखते हैं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मांग करते हैं.’ अखबार ने बताया है कि इस बीच, वहाब और वासिफ ने कहा है कि वे आलम के बिना बिएननेल में शामिल नहीं होंगे.
आयोजकों ने आशंका जताई है कि इसके परिणाम दूरगामी होंगे. यह पूरे आयोजन के भविष्य को खतरे में डालता है.
क्यूरेटर ने एक बयान में कहा, ‘15 अक्टूबर से हम गाजा में चल रहे युद्ध अपराधों से संबंधित शाहिदुल आलम द्वारा फेसबुक अकाउंट पर किए गए सोशल मीडिया पोस्ट के संबंध में बिएननेल प्रबंधन के साथ कई बार चर्चा कर चुके हैं. हालांकि, पोस्ट इजरायली सरकार की कार्रवाइयों पर प्रतिक्रियास्वरूप थे, लेकिन बिएननेल ने गलत तरीके से इन्हें यहूदी-विरोध के बराबर बता दिया. हमारा मानना है कि सरकार और लोगों की आलोचना के बीच अंतर करने में विफलता गैर-जिम्मेदाराना है और सार्वजनिक चर्चा की ईमानदारी के लिए हानिकारक है.’
उन्होंने आगे पूछा, ‘क्या हमने सवाल करने, विरोध करने या सामूहिक रूप से शोक मनाने का बुनियादी मानवाधिकार खो दिया है?’
उन्होंने अपने बयान में आगे कहा, ‘शाहिदुल आलम और कई अन्य लोगों को बलि का बकरा बनाने का यह घृणित रूप पूरी तरह से सेंसरशिप है; यह नस्लवादी और भेदभावपूर्ण है. जर्मनी में आजकल जिस सहजता और निर्दयता से इस प्रकार के आरोप लगाए जाते हैं, उससे पता चलता है कि फासीवाद वर्तमान में लौट रहा है.’
यह घोषणा जर्मनी के कसेल में अंतरराष्ट्रीय कला उत्सव डॉक्युमेंटा से जुड़े इसी तरह के विवाद के ठीक एक हफ्ते बाद आई है. उक्त विवाद के परिणामस्वरूप खोज समिति के सभी छह सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया था.
मुंबई के लेखक और क्यूरेटर रंजीत होसकोटे को भी 2019 में बहिष्कार, खुलासे और प्रतिबंध याचिका के समर्थन के कारण यहूदी-विरोध के आरोपों का सामना करना पड़ा था. आरोपों के बाद उन्होंने यह कहते हुए पद छोड़ दिया था, ‘मुझे दृढ़ता से लगता है कि मुझे कंगारू कोर्ट की कार्यवाही का सामना करना पड़ा है.’
आलम ने होसकोटे के चार सहयोगियों के सामूहिक त्याग पत्र को जर्मनी की ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अस्पष्ट स्थिति’ का पर्दाफाश बताया.
क्यूरेटर और क्यूरेटोरियल सलाहकारों के पूरे बयानों को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.