सिल्कयारा सुरंग में निर्माण के दौरान पिछले 5 वर्षों में 19 से 20 बार ढहने की घटनाएं हुई थीं: रिपोर्ट

राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड के निदेशक ने बताया कि भूस्खलन की घटनाएं हर सुरंग निर्माण के दौरान होती हैं, लेकिन इस बार हम बदकिस्मत रहे, क्योंकि मज़दूर फंस गए थे. उत्तराखंड के सिल्कयारा में बीते 12 नवंबर को निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा ढहने से इसमें फंसे 41 श्रमिकों को 17 दिनों के कड़े संघर्ष के बाद बाहर निकाला गया है.

उत्तराखंड के सिल्कयारा स्थित निर्माणाधीन सुरंग, जहां 41 मजदूर फंस गए थे. (फोटो साभार: एक्स/@airnewsalerts)

राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड के निदेशक ने बताया कि भूस्खलन की घटनाएं हर सुरंग निर्माण के दौरान होती हैं, लेकिन इस बार हम बदकिस्मत रहे, क्योंकि मज़दूर फंस गए थे. उत्तराखंड के सिल्कयारा में बीते 12 नवंबर को निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा ढहने से इसमें फंसे 41 श्रमिकों को 17 दिनों के कड़े संघर्ष के बाद बाहर निकाला गया है.

उत्तराखंड के सिल्कयारा स्थित निर्माणाधीन सुरंग, जहां 41 मजदूर फंस गए थे. (फोटो साभार: एक्स/@airnewsalerts)

नई दिल्ली: एक रिपोर्ट में पता चला है कि उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में ढही सिल्कयारा सुरंग, जो केंद्र की महत्वाकांक्षी चार धाम परियोजना का हिस्सा है, अपने निर्माण के पिछले पांच वर्षों के दौरान ढहने के कारण लगभग ‘19 से 20 बार’ दुर्घटनाओं का शिकार हुई है.

सिल्कयारा में बीते 12 नवंबर को निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा ढहने से फंसे 41 श्रमिकों को 17 दिनों के कड़े संघर्ष के बाद बीते 28 नवंबर को सुरक्षित बाहर निकाला गया था.

‘रैटहोल माइनर’ कहे जाने वाले एक दर्जन विशेषज्ञों द्वारा 26 घंटे से अधिक समय तक मैनुअल खुदाई के बाद अंतत: उन्हें सुरंग से बाहर निकाल लिया गया था.

इस परियोजना की देखरेख करने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) के निदेशक (प्रशासन और वित्त) अंशू मनीष खलखो को टाइम्स ऑफ इंडिया ने यह कहते हुए उद्धृत किया कि, ‘लगभग 19-20 छोटे से मध्यम स्तर की ढहने की घटनाएं सुरंग निर्माण के दौरान हुई थीं.’

उन्होंने कहा, ‘ऐसी घटनाएं हर सुरंग निर्माण परियोजना के दौरान होती हैं, लेकिन इस बार हम बदकिस्मत रहे, क्योंकि मजदूर फंस गए थे.’

यह सुरंग नाजुक हिमालयी इको-ज़ोन में चार धाम मार्ग का हिस्सा है, जिससे उत्तराखंड में चार महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थ स्थलों – गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिरों – के बीच हर मौसम में चल सकने वाली सड़क बनने की उम्मीद है.

अखबार ने सुरंग निर्माण से जुड़े एक अन्य अधिकारी का बयान भी दिया है, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर जानकारी दी है. उन्होंने कहा, ‘क्षेत्र के चुनौतीपूर्ण भूविज्ञान और महत्वपूर्ण चट्टान विरूपण के कारण सुरंग में कई बार ढहने की घटनाएं सामने आईं’.

इस महत्वपूर्ण परियोजना के लिए कोई ‘पर्यावरण आकलन प्रभाव’ अध्ययन न किया जाना, पहले से ही मौजूद चिंताओं में शामिल होने की संभावना है.

समाचार रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे यूरोपीय कंपनी बर्नार्ड ग्रुपे (Bernard Gruppe), ‘जो सुरंग निर्माण कर रही नवयुग इंजीनियरिंग को डिजाइन सेवाएं प्रदान कर रही है, ने पहले कहा था कि ‘(सुरंग स्थल पर) भूवैज्ञानिक स्थितियां निविदा दस्तावेजों (Tender Documents) में अनुमान से अधिक चुनौतीपूर्ण साबित हुई हैं.’

केंद्र सरकार के विशेषज्ञों की टीम नहीं पहुंची

टेलीग्राफ ने केंद्र सरकार के विशेषज्ञों की एक टीम के न आने के बारे में रिपोर्ट दी है, जो ‘बीते गुरुवार (30 नवंबर) को ढही हुई सुरंग की समीक्षा करने वाली थी कि निर्माण फिर से शुरू होने से पहले यह कितनी सुरक्षित है.’ उत्तराखंड सरकार के अधिकारियों ने गुरुवार को कहा, ‘टीम नहीं पहुंची है.’

उत्तराखंड सरकार के एक अधिकारी ने मीडिया को बताया, ‘हमें उन्हें (विशेषज्ञ टीम) रिसीव करने के लिए मौके पर मौजूद रहने के लिए कहा गया था, लेकिन टीम नहीं पहुंची.’ उन्होंने कहा कि टीम कब आ रही है, इसकी कोई जानकारी नहीं है.

चूंकि केंद्रीय टीम के आगमन को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है, इसलिए सुरंग परियोजना के लिए अनुबंध वाली निजी इंजीनियरिंग फर्म के अधिकारी ‘जल्द ही काम फिर से शुरू करने को लेकर आश्वस्त थे.’

द टेलीग्राफ के अनुसार, परियोजना में शामिल कंपनी के एक अधिकारी ने ऋषिकेश में संवाददाताओं से कहा, ‘हम अब सुरंग के निर्माण पर दोगुने उत्साह के साथ काम करेंगे.’

उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने हमारा मनोबल बढ़ाया है. हम 2024 के संसदीय चुनाव से पहले इस परियोजना को पूरा कर लेंगे.’

अखबार याद दिलाता है कि केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग राज्य मंत्री वीके सिंह ने बीते मंगलवार (28 नवंबर) को कहा था कि विशेषज्ञों की एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति परियोजना का ‘सुरक्षा ऑडिट’ करेगी, लेकिन उन्होंने इसके लिए कोई तारीख नहीं बताई थी.

सुरंग निर्माण की मंज़ूरी और ठेका

द वायर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि 2013 में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) ने 100 किमी से कम लंबी सड़क परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी माफ करने का फैसला किया था.

तीन साल बाद भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए ने इस छूट का उपयोग किया, भले ही मुख्य हिमालयन थ्रस्ट – जहां भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट के नीचे धकेलती है – न केवल उत्तराखंड से होकर गुजरती है बल्कि सुरंग स्थल के करीब भी आती है. जैसा कि कार्यकर्ता हिमांशु ठक्कर ने लिखा है, यह स्पष्ट ‘भूकंपीय प्रभाव’ पैदा करता है.

इस संक्षिप्त योजना प्रक्रिया में अपनी चिंताओं के लिए कोई जगह नहीं पाते हुए स्थानीय लोगों ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) और फिर सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन केंद्र द्वारा पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया को दरकिनार किए जाने को लेकर दोनों न्यायाधिकरणों ने कोई रोक-टोक नहीं की.

जब इन मामलों की सुनवाई चल रही थी, तब भी परियोजना चालू रही. फरवरी 2018 में कैबिनेट ने गंगोत्री और यमुनोत्री के बीच बरकोट-सिल्कयारा सुरंग को मंजूरी दी थी. जून 2018 में सरकार के स्वामित्व वाली राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) ने हैदराबाद स्थित नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी को सुरंग निर्माण का ठेका सौंपा ​था.

उसी वर्ष नवयुग ने सुरंग के डिजाइन और निर्माण के लिए बर्नार्ड ग्रुपे नामक इंजीनियरिंग कंसल्टेंसी को काम पर रखा था.

नवयुग को 2020 में सरकार की महत्वाकांक्षी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लिंक परियोजना भी दी गई थी. आप इस निर्माण कंपनी के बारे में यहां अधिक पढ़ सकते हैं.

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