मणिपुर: जहां आठ लाशें विधानसभा चुनाव में मुद्दा हैं

मणिपुर के चूराचांदपुर के जिला अस्पताल के मुर्दाघर में पिछले करीब 550 दिनों से आठ लाशें दफनाए जाने का इंतजार कर रही हैं. इस बार के विधानसभा चुनाव में यह प्रमुख मुद्दा है.

/

मणिपुर के चूराचांदपुर ज़िला अस्पताल के मुर्दाघर में करीब पिछले 550 दिनों से आठ लाशें दफनाए जाने का इंतज़ार कर रही हैं. इस बार के विधानसभा चुनाव में यह प्रमुख मुद्दा है.

manipur 4
चूराचांदपुर जिले में प्रदर्शन में हिस्सा लेती आदिवासी महिला. (फाइल फोटो: अखिल कुमार)

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान जब कब्रिस्तान और श्मशान का मुद्दा उठा तो बहुतों ने कहा कि मुर्दे वोट भले ही न देते हों लेकिन वोट की राजनीति को प्रभावित जरूर करते हैं. यह बात मणिपुर विधानसभा चुनाव में आपको देखने को मिल जाएगी.

मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्र में स्थित जिले चूराचांदपुर में आठ लाशें करीब पिछले 550 दिनों से दफनाए जाने का इंतजार कर रही हैं. यह घटना अमानवीय है लेकिन इस पर राजनीति भी खूब हो रही है. न्याय की मांग को लेकर रखी गईं ये लाशें इस बार मणिपुर विधानसभा में विभिन्न सियासी दलों के समीकरण को बिगाड़ भी रही हैं.

दरअसल मणिपुर के महाराजा सर चूराचांद सिंह के नाम पर रखे गए चूराचांदपुर जिले में 31 अगस्त, 2015 को विधानसभा द्वारा पास किए गए तीन विधेयकों के विरोध में लोग सड़क पर उतर गए थे, जहां पुलिस ने नौ लोगों को गोली मार दी थी. इन नौ लोगों में एक नाबालिग भी शामिल था, जिसकी लाश को बाद में दफना दिया गया.

गौरतलब है कि 31 अगस्त 2015 को को मणिपुर विधानसभा द्वारा तीन विधेयक- मणिपुर जन संरक्षण विधेयक-2015, मणिपुर भू-राजस्व एवं भूमि सुधार (सातवां संशोधन) विधेयक-2015 और मणिपुर दुकान एवं प्रतिष्ठान (दूसरा संशोधन) विधेयक-2015 पारित किए गए थे.

मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों ने इन कानूनों का पहाड़ी क्षेत्र की आदिवासी जातियों ने विरोध किया था. इन आदिवासियों को डर था कि नया कानून आने के बाद पहाड़ी क्षेत्र में ग़ैर-आदिवासी बसने लगेंगे, जिन पर अभी रोक लगी है. पहाड़ी क्षेत्र के लोग ज़्यादा स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं. मारे गए लोग इसी के लिए हो रहे प्रदर्शन का हिस्सा थे. यह प्रदर्शन अब तक जारी है.

दरअसल मणिपुर के चूराचांदपुर, चंदेल, उखरुल, सेनापति, और तमेंगलाॅन्ग जिले पहाड़ी क्षेत्र में आते हैं. वहीं थॉबल, बिष्णुपुर, इंफाल ईस्ट और इंफाल वेस्ट जिले घाटी में आते हैं.

manipur 3
सरकारी अस्पताल के मुर्दाघर में आठ युवकों की लाश पिछले डेढ़ साल से रखी है. (फाइल फोटो: अखिल कुमार)

चूराचांदपुर ज़िला पहाड़ी क्षेत्र का सबसे विकसित ज़िला है. साथ ही चूराचांदपुर विधानसभा क्षेत्र में 53 हजार वोटर है. यह मणिपुर का सबसे बड़ा विधानसभा क्षेत्र है. यहां पर इस बार मुख्य मुकाबला पूर्व कांग्रेसी नेता और वर्तमान में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) प्रत्याशी फुंगजथंग तोनसिंग और भाजपा प्रत्याशी वी हंगखालियान के बीच है.

दोनों ही प्रत्याशी पैती समुदाय के हैं. चूराचांदपुर में पैती समुदाय का वर्चस्व है. दोनों ही पैती समुदाय की भावनाओं को आहत नहीं करना चाहते हैं, इसलिए फुंगजथंग तोनसिंग ने सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और एनपीपी से चुनाव लड़ रहे हैं. तोनसिंग कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे हैं और प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख भी रह चुके हैं. इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां पर कोई भी प्रत्याशी नहीं उतारा है. चूराचांदपुर में 27,000 पैती समुदाय का वोट है. इसके अलावा हमार, सिमते, मेइतई, मिजो, कुकी, मेईतेई मुस्लिम जनजातियां है.

द वायर की डिप्टी एडिटर और हाल ही में चूराचांदपुर जिले से वापस लौटी संगीता बरूआ पिशारोती बताती हैं, ‘यह मसला हमारी संवेदनहीनता का नमूना है. साथ ही चूराचांदपुर जिले की छह विधानसभा सीटों में यही मुख्य मुद्दा भी है, लेकिन मुझे नहीं लगता है कि चुनाव बाद इन लाशों का मसला हल होने वाला है. कांग्रेस के खिलाफ लोगों में यहां गुस्सा है और भाजपा इसे भुनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन सिर्फ इतने सीटों से राज्य में सरकार नहीं बनने वाली है. दूसरी बात भाजपा भी इन लोगों के मसले को सही तरीके से एड्रेस करेगी ऐसा विश्वास भी लोगों के बीच में नहीं है.’

manipur2
मृतकों के लिए प्रार्थना करती महिलाएं. (फाइल फोटो: अखिल कुमार)

वे आगे कहती हैं, ‘इस पूरे मसले को राज्य सरकार ने सही तरीके से नहीं लिया. जिस एक लाश को दफनाया गया है उसके पीछे भी राज्य की कांग्रेस सरकार का हाथ बताया गया है. दूसरी ओर प्रदर्शनकारी जिस तरह की स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं वह किसी भी सरकार द्वारा अभी तुरंत दिया जाना संभव नहीं है.’

फिलहाल आगामी 04 मार्च और 08 मार्च को मणिपुर में चुनाव हो जाएंगे, लेकिन ज़िला अस्पताल में इतने दिनों से रखे आठ लोगों के शव हमारी संवेदनहीनता की याद दिलाते रहेंगे. इस मामले को आदिवासी बनाम ग़ैर-आदिवासी, पहाड़ी क्षेत्र बनाम घाटी, हिंदू बनाम ईसाई या फिर वोट बैंक की राजनीति के फायदे-नुकसान से ऊपर उठकर देखना होगा.