क्या यूपी सरकार द्वारा हलाल सर्टिफाइड उत्पादों पर बैन दुर्भावना से प्रेरित है?

बीते महीने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने जन स्वास्थ्य का हवाला देते हुए हलाल सर्टिफिकेट के साथ बेचे जाने वाले खाद्य उत्पादों के उत्पादन, भंडारण और बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी. हालांकि, ऐसे उत्पाद में क्या ग़लत है, स्वास्थ्य की दृष्टि से क्या नुकसान हुआ, इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई है.

यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ, एक नमकीन के पैकेट पर लगा हलाल लेबल. (फोटो साभार: ट्विटर)

बीते महीने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने जन स्वास्थ्य का हवाला देते हुए हलाल सर्टिफिकेट के साथ बेचे जाने वाले खाद्य उत्पादों के उत्पादन, भंडारण और बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी. हालांकि, ऐसे उत्पाद में क्या ग़लत है, स्वास्थ्य की दृष्टि से क्या नुकसान हुआ, इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई है.

यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ, एक नमकीन के पैकेट पर लगा हलाल लेबल. (फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: 18 नवंबर को जारी उत्तर प्रदेश सरकार के एक कार्यकारी आदेश में यह कहा गया कि जन स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तर प्रदेश की सीमा के भीतर हलाल सर्टिफाइड खाद्य उत्पाद के निर्माण वितरण और विक्रय पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाया जाता है. केवल एक्सपोर्ट यानी देश से बाहर निर्यात किए जाने वाले खाद्य उत्पाद पर हलाल सर्टिफिकेशन की इजाजत रहेगी.

हालांकि, हलाल सर्टिफाइड खाद्य उत्पाद में क्या गलत है, स्वास्थ्य की दृष्टि से क्या गलत हो रहा है, इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई. यह नहीं बताया गया कि जो व्यवस्था सालोंसाल से चली आ रही है उसमें ऐसी क्या कमी आई कि प्रतिबंध लगाना पड़ रहा है? इस पर न कोई सरकारी कमीशन बैठा, न कोई नोटिस जारी हुआ, न ही कोई विचार विमर्श हुआ.

अमूमन किसी व्यवस्था पर प्रतिबंध तब लगाया जाता है जब उससे किसी तरह का नुकसान हो रहा है और अगर हलाल की व्यवस्था से नुकसान हो रहा है तो निर्यात में हलाल की व्यवस्था को छूट क्यों दी गई है? क्या मामला वह नहीं है जो दिखाया जा रहा है?

क्या है हलाल की अवधारणा

दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले सैयद शाहिद अशरफ समाजशास्त्री और इतिहासकार के बतौर जाने जाते हैं. उन्होंने बताया, ‘हमारे समाज में हलाल को लेकर के बहुत सारी गलत धारणाएं है. इन धारणाओं को तोड़े बिना इसे नहीं समझा जा सकता. हलाल अरबी भाषा का शब्द है जिसका मतलब होता है कि इस्लामी मान्यताओं के हिसाब से एक मुसलमान को किस तरह की जीवन शैली की इजाजत है. इसका उल्टा हराम होता है जिसका मतलब यह होता है कि इस्लामी मान्यताओं के हिसाब से एक मुसलमान को किस तरह की जीवनशैली की इजाजत नहीं है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इस्लामी मान्यताओं के हिसाब से मुसलमान को मददगार होना चाहिए, रोजाना इबादत करनी चाहिए, दूसरे का हक नहीं मारना चाहिए आदि- यह सब इस्लाम में हलाल के उदाहरण है. इस्लामी मान्यताओं के हिसाब से एक मुसलमान को शराब का सेवन नहीं करना चाहिए, झूठ नहीं बोलना चाहिए, उन जीवों को नहीं खाना चाहिए जो मांस का सेवन करते हैं आदि- यह सब इस्लाम में हराम के उदाहरण है. एक तरह से समझिए तो हलाल का मतलब होता है, वह जीवन शैली जो इस्लाम के मुताबिक एक मुसलमान को जीनी चाहिए. मोटे तौर पर समझिए, तो इसी आधार पर हलाल सर्टिफिकेशन की बुनियाद खड़ी है.’

वो बताते हैं, ‘पूरी दुनिया में जहां कहीं भी इस्लाम है वहां हलाल सर्टिफिकेशन की व्यवस्था है. केवल खाने-पीने के मामले में ही नहीं बल्कि दवाई के क्षेत्र में, सौंदर्य प्रसाधन के क्षेत्र में होटल के क्षेत्र में तकरीबन जीवन जीने के लिए जरूरी हर तरह की सुविधाओं के क्षेत्र में उन सामानों और सेवाओं का बाजार है जो हलाल सर्टिफाइड होती हैं. इसका मतलब यह होता है कि जो सामान और सेवा हलाल लेबल लगाकर बेची और खरीदी जा रही है, वह इस्लामी मान्यताओं के हिसाब से वैसी चीजों से नहीं बनी है, जिसकी इजाजत इस्लाम नहीं देता है. जैसे कि वह दवाइयां, खाद्य पदार्थ या सौंदर्य प्रसाधन जिसमें इस्लामी मान्यताओं के हिसाब से नकार दी गई चीजों का इस्तेमाल किया गया है तो उसे हलाल का सर्टिफिकेशन नहीं मिलता है.’

‘मुस्लिमों को उकसाने के लिए दिया गया आदेश’

उल्लेखनीय है कि मुस्लिम निकायों ने हलाल-सर्टिफिकेट उत्पादों के भंडारण और बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले की आलोचना की है.

जहां जमीयत उलेमा-ए-हिंद, जिसके पास हलाल सर्टिफिकेट इकाई है, ने दावा किया था कि सरकार ने इस कदम से पहले कोई नोटिस या परिपत्र नहीं भेजा था, वहीं जमात-ए-इस्लामी हिंद ने इस कदम को ‘हास्यास्पद और दुर्भाग्यपूर्ण’ करार दिया.

दोनों निकायों ने कहा कि यह नागरिकों की आस्था के अनुरूप भोजन करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है.

जमात के उपाध्यक्ष सलीम इंजीनियर का ने यहां तक कहा कि यूपी सरकार की कार्रवाई स्पष्ट रूप से मुस्लिम समुदाय और इस्लाम के खिलाफ नफरत पर आधारित है.

उन्होंने कहा, ‘यह समझ से परे है कि यूपी सरकार हलाल-प्रमाणित उत्पादों पर प्रतिबंध लगाकर समाज और राष्ट्र को क्या संदेश देना चाहती है. प्रदेश के मुख्यमंत्री राज्य के 24 करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसमें सभी धार्मिक संप्रदायों के अनुयायी शामिल हैं और यह सुनिश्चित करना उनकी संवैधानिक जिम्मेदारी है कि जाति और पंथ के बावजूद किसी के खिलाफ कोई भेदभाव न हो. प्रत्येक धर्म में कुछ चीजें होती हैं, जो उस विशेष धर्म के अनुयायियों के लिए निषिद्ध होती हैं और भारत का संविधान स्पष्ट रूप से उन्हें इसका पालन करने की अनुमति देता है.’

उन्होंने इस फैसले को एक विशेष धर्म के अनुयायियों के खिलाफ भेदभाव की बू बताते हुए कहा, ‘अगर यूपी सरकार के गलत फैसले को उचित माना जाए तो रेस्तरां के बाहर शुद्ध शाकाहारी लिखना, हर उत्पाद के कवर पर सामग्री का उल्लेख करना, मिठाइयों और अन्य उत्पादों पर शुगर-फ्री लिखना और मांस की दुकानों पर हलाल और झटका सभी को अवैध घोषित किया जाए.’

वरिष्ठ पत्रकार शीबा असलम फहमी ने द वायर  से बातचीत में कहा कि हलाल खाद्य उत्पाद से किसी भी तरह का नुकसान नहीं हो रहा है. अगर मुस्लिम हलाल सर्टिफाइड चीज खाते हैं तो इसमें किसी का नुकसान नहीं है. यह आदेश मुसलमानों को उकसाने के लिए दिया गया है.

उन्होंने कहा, ‘किसी भी खाद्य उत्पाद पर फूड सेफ्टी और स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) का सर्टिफिकेट तो लगता ही लगता है. खाने पीने के जिन सामानों पर सर्टिफिकेट के तौर पर हलाल का लेबल लगता है वहां भी एफएसएसएआई का सर्टिफिकेट लगता ही है. तो हलाल सर्टिफाइड उत्पाद का मतलब ऐसा तो नहीं होता कि वह केवल मुसलमानों के लिए बनाई जा रही है या इसका इस्तेमाल केवल मुस्लिम ही करेंगे, या यह एफएसएसएआई द्वारा प्रमाणित नहीं है.’

भारत की अर्थव्यवस्था तकरीबन तीन से चार ट्रिलियन डॉलर के बीच में है जबकि दुनियाभर में हलाल की अर्थव्यवस्था तकरीबन 7 ट्रिलियन डॉलर की आंकी जा रही है. आने वाले 3 सालों में यह बढ़कर 10 ट्रिलियन डॉलर तक जाने की संभावना है. तो इतने बड़े बाजार से भारत का बाहर रहना उचित होगा?

जमीयत के प्रवक्ता नियाज़ फारूकी, जो जमीयत के हलाल ट्रस्ट के सीईओ भी हैं, ने बताया कि अरब के देशों सहित दक्षिण एशिया के कई देश जैसे सऊदी अरब, इंडोनेशिया, मलेशिया यूएई में यह कानून है कि अगर प्रोडक्ट हलाल सर्टिफाइड नहीं होगा तो वे उस उत्पाद प्रोडक्ट को इंपोर्ट नहीं करेंगे. मतलब जो भी कंपनी भारत से इन देशों में अपना सामान एक्सपोर्ट करना चाहती है उसके लिए जरूरी है कि वह हलाल सर्टिफिकेशन हासिल करें. शर्त यह भी है कि जो भी संगठन हलाल सर्टिफिकेशन जारी करेगा उसको सऊदी अरब, इंडोनेशिया, मलेशिया, यूएई जैसे देशों से मान्यता हासिल होनी चाहिए जहां पर हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट इंपोर्ट किया जाना है.

वे आगे बताते हैं, ‘जमीयत को यह मान्यता हासिल है. हम अंतरराष्ट्रीय मानक के अंतर्गत हलाल सर्टिफिकेशन के शर्त को पूरा करते हैं. अभी हाल फिलहाल भारत सरकार ने भी यह योजना बनाई है कि जो भी हलाल सर्टिफिकेशन जारी करने वाली एजेंसी है उसे भारत सरकार की संस्था- नेशनल अक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर सर्टिफिकेशन बॉडीज़ अंडर क्वॉलिटी काउंसिल ऑफ इंडिया  में रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ेगा. हमने यहां भी रजिस्ट्रेशन करवाया हुआ है.

उन्होंने जोड़ा, ‘शायद लोगों को पता नहीं होगा मगर भारत सरकार यह कोशिश कर रही है कि जिन देशों में हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट को एक्सपोर्ट किया जाना है उन देशों से भारत सरकार के किसी संस्था को हलाल सर्टिफिकेशन जारी करने की मान्यता मिल जाए. मगर भारत सरकार को यह मान्यता नहीं मिल पा रही है. तो जमीयत जैसी हलाल सर्टिफिकेट जारी करने वाली संस्थाएं भी भारत सरकार के सहयोग और अनुमति से ही काम करती है. टाटा, नेस्ले, ब्रिटानिया, पतंजलि यह सभी बड़ी-बड़ी कंपनियां हलाल का लेबल लगाकर ही उन देशों में अपना उत्पाद बेचती हैं, जहां पर हलाल सर्टिफिकेशन की जरूरत है. ज्यादातर हलाल सर्टिफिकेशन एक्सपोर्ट किए जाने वाले सामानों पर ही जारी किया जाता है.’

‘हलाल सर्टिफाइड उत्पाद देश की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं’

सैयद शाहिद अशरफ कहते हैं, ‘यह बताने की कोशिश की जा रही है कि हलाल सर्टिफाइड खाद्य उत्पाद के जरिये अप्रत्यक्ष तौर पर एक भेदभाव मूलक व्यवस्था बनी है. मगर अगर आप इस तरीके से सोचेंगे कि संविधान के मुताबिक किसी भी धर्म के लोगों को अपने पसंद की जीवन जीने की आजादी है तो आपको किसी भी तरह का भेदभाव यहां पर नहीं दिखेगा. हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट को किसी भी धर्म के लोग बेच सकते हैं और किसी भी धर्म के लोग खरीद सकते हैं. यह इच्छा पर निर्भर है की किसे क्या पसंद है?’

वे आगे कहते हैं, ‘यह ठीक ऐसे ही है कि भारत में सरस्वती शिशु मंदिर जैसे स्कूल हैं, सरकारी स्कूल है, मिशनरी स्कूल हैं, सिख स्कूल है जिसको जहां पढ़ने का मन है वो वहां पढ़ सकता है. किसी पर किसी भी तरह की रोक-टोक नहीं है. इस लिहाज से हलाल के प्रोडक्ट भारत की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ भी नहीं जाते हैं. बल्कि भारत की धर्मनिरपेक्षता को और मजबूत करते हैं क्योंकि हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट के जरिये एक समुदाय को खाने-पीने और इस्तेमाल करने के लिए वह सामान मिल पा रहा है जो उसे अपने धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से जायज लगता है.’

वे उदहारण देते हुए जोड़ते हैं, ‘एक वक्त के लिए हलाल शब्द को हटा लीजिए- यह सोचिए कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एफएसएसएआई द्वारा प्रमाणित खाद्य उत्पाद पर कोई ऐसा लेबल लगता है जिसे पता चलता है कि हिंदू मान्यताओं के हिसाब से उचित खाद्य उत्पाद है. उसे खाद्य उत्पाद को खरीदने बेचने खाने की आजादी सबको है तो क्या इसे गलत कहा जाएगा? क्या इसे भारत की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ कहा जाएगा? बिल्कुल नहीं.’

उन्होंने बात ख़त्म करते हुए कहा कि हलाल की व्यवस्था धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ या भेदभाव मूलक तब होती, जब हलाल सर्टिफाइड खाद्य उत्पाद को बेचने खरीदने की आजादी केवल और केवल मुसलमानों को दी जाती, मगर ऐसा नहीं है.

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