शाम सात बजे मध्य प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से भाजपा 101 पर जीत चुकी है और 63 सीटों पर आगे है. वहीं कांग्रेस में अब तक 31 सीटें जीती हैं और 34 पर बढ़त बनाए हुए है. एक सीट पर भारत आदिवासी पार्टी आगे है.
नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बड़ी जीत की तरफ बढ़ रही है.
निर्वाचन आयोग की वेबसाइट के मुताबिक, शाम सात बजे प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से भाजपा 101 पर जीत चुकी है और 63 सीटों पर आगे है. वहीं कांग्रेस में अब तक 31 सीटें जीती हैं और 34 पर बढ़त बनाए हुए है. एक सीट पर भारत आदिवासी पार्टी आगे है.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने विधानसभा क्षेत्र बुदनी और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर दिमनी सीट से जीत चुके हैं. इंदौर-1 सीट से पार्टी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जीत के करीब हैं.
चुनाव परिणाम में मध्य प्रदेश की जनता का फैसला मुझे स्वीकार है। हमें विपक्ष में बैठने की जिम्मेदारी दी गई है और हम अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करेंगे। मध्य प्रदेश के सामने अभी सबसे बड़ा सवाल यही है कि मध्य प्रदेश के युवाओं का भविष्य सुरक्षित हो, हमारे किसानों को खुशहाली मिले।
मैं…— Kamal Nath (@OfficeOfKNath) December 3, 2023
प्रदेश में 77.15 फीसदी मतदान दर्ज किया गया था, जो कि 2018 विधानसभा चुनावों की अपेक्षा करीब 2 फीसदी अधिक था.
वर्तमान में राज्य में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार है और उसके पास 127 विधायक हैं. वहीं, कांग्रेस के 96 विधायक हैं. पिछले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के दो, समाजवादी पार्टी (सपा) के एक और 4 निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी जीत दर्ज की थी.
राज्य में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के ही बीच है, जबकि इन दोनों ही दलों के कई बागी बसपा, सपा और आम आदमी पार्टी के टिकट पर मैदान में हैं. कई बड़े चेहरे निर्दलीय भी मैदान में उतरे हैं और भाजपा एवं कांग्रेस दोनों के लिए ही सिर दर्द का कारण बन सकते हैं.
भाजपा ने इस बार अपना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया था, जबकि कांग्रेस से प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ही चेहरा हैं. भाजपा ने चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा था, वहीं पार्टी ने 3 केंद्रीय मंत्रियों समेत 7 सांसदों को भी चुनावी मैदान में उतारा. राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय समेत केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल के नाम उम्मीदवारों की सूची में होने के चलते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के फिर राज्य की कमान संभालने को लेकर चुनाव प्रचार के दौरान कयास लगते रहे.
पार्टी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुट के भी 16 नेताओं को टिकट दिया है. पार्टी को महिला मतदाताओं से अधिक उम्मीद है, जिनको ध्यान में रखकर चुनाव से ऐन पहले ‘लाडली बहना योजना’ शुरू की गई थी. पिछले दो साल से पार्टी की नीतियां आदिवासी समुदाय के इर्द-गिर्द घूमती रहीं, इसलिए आदिवासियों के लिए आरक्षित राज्य की 47 सीटें निर्णायक भूमिका में रह सकती हैं.
भाजपा के लिए यह चुनाव पिछले चुनावों से अलग इसलिए रहा क्योंकि इस बार प्रदेश की डोर केंद्र ने थाम रखी थी, अत: पार्टी को उम्मीद है कि ‘मोदी फैक्टर’ भी उसके पक्ष में काम करेगा.
दूसरी ओर, कांग्रेस को उम्मीद है कि भाजपा के चार कार्यकाल से उपजी सत्ता विरोधी लहर, शिवराज सरकार में हुए घोटाले और भ्रष्टाचार, वचन-पत्र में प्रदेश की जनता को दी गईं उसकी गारंटियां जैसे कि किसान कर्ज माफी, मुफ्त बिजली, सस्ता गैस सिलेंडर, महिलाओं को 1500 रुपये मासिक भत्ता आदि उसकी सत्ता में वापसी सुनिश्चित करेंगे.
हालांकि, दोनों ही दलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती बागियों से पार पाना है. टिकट वितरण के बाद, जहां कांग्रेस ने बगावत कर चुनाव लड़ने वाले 39 नेताओं को पार्टी से निष्कासित किया था, वहीं भाजपा में ऐसे नेताओं की संख्या 35 रही.