निर्वाचन आयोग के अनुसार, शाम क़रीब साढ़े सात बजे तक भाजपा 31 सीटें जीत चुकी है और 23 पर आगे चल रही है. वहीं कांग्रेस के हिस्से में अब तक 18 सीटें आई हैं और 17 पर यह आगे चल रही है.
नई दिल्ली: पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को तीन में जीत मिलना तय है. छत्तीसगढ़ भी इनमें से एक है.
निर्वाचन आयोग के अनुसार, शाम करीब साढ़े सात बजे तक भाजपा 31 सीटें जीत चुकी है और 23 पर आगे चल रही है. वहीं कांग्रेस के हिस्से में अब तक 18 सीटें आई हैं और 17 पर यह आगे चल रही है.
निवर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पाटन सीट पर आगे चल रहे हैं, वहीं उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव अंबिकापुर सीट से पिछड़ रहे हैं. राजधानी रायपुर की सातों विधानसभा सीटों में से भाजपा दो जीत चुकी है और पांच पर बढ़त बनाए हुए है.
भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार किसानों के लिए कृषि ऋण माफी और धान की खरीद कीमतों में वृद्धि के अपने विजयी फॉर्मूले पर उम्मीदें लगाकर सत्ता में वापसी करना चाह रही थी.
इससे पहले 2018 के चुनावों में राज्य में रमन सिंह के नेतृत्व वाले भाजपा का 15 वर्षों का शासन समाप्त हो गया था, जिसके पीछे के प्रमुख कारणों में धान किसानों के बीच असंतोष और सत्ता विरोधी लहर को गिना जाता है, जिसके चलते कांग्रेस भाजपा को सत्ता से हटाने में कामयाब रही थी और राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से 68 जीतने में सफल रही थी, जबकि भाजपा 15 पर सिमट गई थी.
इस बार भाजपा ने अपना चुनाव अभियान भूपेश बघेल सरकार के भ्रष्टाचार के इर्द-गिर्द केंद्रित किया था और इस बार वह किसानों को लुभाने का भी प्रयास करती नजर आई थी. पार्टी ने अपने घोषणा-पत्र में 3,100 रुपये प्रति क्विंटल पर धान खरीदने का वादा किया, जो मौजूदा सरकार में दी जा रही कीमत से 500 रुपये अधिक है.
उधर, कांग्रेस ने भाजपा के घोषणापत्र को अपने वादों की ‘नकल‘ बताया था, लेकिन बाद में उसने भी धान की कीमत बढ़ा दी और 3,200 रुपये प्रति क्विंटल कीमत पर धान खरीदने का वादा किया.
कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए न्याय (किसानों, भूमिहीन मजदूरों और वृद्धावस्था पेंशन के लिए न्यूनतम मजदूरी योजना), गोधन योजना, ग्रामीण औद्योगिक पार्क जैसी अन्य जन-केंद्रित योजनाओं से भी उम्मीद लगा रही थी. इसने बघेल सरकार के ‘छत्तीसगढ़ियावाद’, राम वन गमन पथ और विभिन्न मंदिरों और देवगुड़ियों के निर्माण के माध्यम से क्षेत्रीय गौरव में भी निवेश किया है, जिसको लेकर कहा जाता है कि इसने भाजपा के हाथों से धर्म का मुद्दा छीन लिया है.
भाजपा ने चुनाव में भूपेश बघेल सरकार के भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाने के साथ-साथ कांग्रेस पर बस्तर संभाग के आदिवासी बहुल इलाकों में ‘जबरन धर्मांतरण‘ कराने और कांग्रेस सरकार में बढ़ते माओवादी हमलों का भी आरोप लगाया था. इसके अलावा भाजपा ने विवाहित महिलाओं को वित्तीय सहायता, 500 रुपये में एलपीजी सिलेंडर आदि जैसे आश्वासन देकर कांग्रेस को चुनौती दी थी.
भाजपा बिना मुख्यमंत्री पद के चेहरे के चुनाव में उतरी और कहा कि पार्टी ‘सामूहिक नेतृत्व’ के सिद्धांत पर काम करती है.