राजस्थान: क़ायम रहा सरकार बदलने का रिवाज, गहलोत ने इस्तीफ़ा सौंपा

राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों पर 25 नवंबर को मतदान हुआ था. चुनाव आयोग के अनुसार, रविवार शाम साढ़े सात बजे भाजपा को कुल 115 सीटों पर जीत मिल चुकी है और 1 सीट पर इसने बढ़त बनाई हुई है. कांग्रेस 67 सीट जीत चुकी हैं और 02 पर यह आगे है.

(फोटो साभार: फेसबुक/@BJP4India)

राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों पर 25 नवंबर को मतदान हुआ था. चुनाव आयोग के अनुसार, रविवार शाम साढ़े सात बजे भाजपा को कुल 115 सीटों पर जीत मिल चुकी है और 1 सीट पर इसने बढ़त बनाई हुई है. कांग्रेस 67 सीट जीत चुकी हैं और 02 पर यह आगे है.

नई दिल्ली: ‘बदलेगा राज या बदलेगा रिवाज’ की चर्चा के बीच राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों पर 25 नवंबर को मतदान हुआ था. जिसमें 75.45 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. गौरतलब है कि राज्य में हर 5 साल में सरकार बदलने का रिवाज है और इस बार यह फिर से दोहाराया गया है.

चुनाव आयोग के अनुसार, रविवार शाम साढ़े सात बजे भाजपा को कुल 115 सीटों पर जीत मिल चुकी है और 1 सीट पर इसने बढ़त बनाई हुई है. कांग्रेस 67 सीट जीत चुकी हैं और 02 पर यह आगे है. 7 निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत मिली है और एक प्रत्याशी आगे है. बसपा ने दो और भारत आदिवासी पार्टी ने तीन सीटें जीती हैं.

अब तक के आंकड़ों में सरदारपुरा से अशोक गहलोत, झालरापाटन से वसुंधरा राजे सिंधिया, टोंक से सचिन पायलट जीत चुके हैं. तिजारा से भाजपा के महंत बालकनाथ, लक्ष्मणगढ़ से कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा जीते हैं. आमेर से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया कांग्रेस प्रत्याशी से हार गए हैं. वहीं, उदयपुर से कांग्रेस के गौरव वल्लभ हार गए हैं. झोटवाड़ा से भाजपा सांसद राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़ और विद्याधर नगर से दीया कुमारी जीत चुके हैं.

गहलोत सरकार ने सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं पर काफी खर्च किया था, लेकिन बुनियादी ढांचे के विकास और रोजगार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बहुत कम जगह छोड़ी. इसलिए, राज्य के मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इन मोर्चों पर गहलोत की विफलताओं को उजागर करने पर ध्यान केंद्रित किया.

साथ ही, भाजपा का चुनाव अभियान भ्रष्टाचार विरोध और हिंदुत्व पर केंद्रित रहा. भाजपा ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने में कथित विफलता और सरकारी नौकरियों के लिए आयोजित प्रवेश परीक्षाओं में लगातार पेपर लीक के लिए गहलोत के खिलाफ प्रचार किया.

पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के भी आरोप लगाए, जिसमें उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की नृशंस हत्या को लगातार उठाया. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने अधिकांश चुनावी भाषणों में कन्हैया लाल की हत्या पर बात करने का हर संभव प्रयास किया.

हालांकि, दोनों ही दल अपने-अपने संगठना के भीतर पनपी समस्याओं से ही जूझते देखे गए. मोदी-शाह की जोड़ी और पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्य में भाजपाकी सबसे कद्दावर नेता वसुंधरा राजे सिंधिया के बीच चल रहे विवाद के बीच भाजपा मुख्यमंत्री का चेहरा पेश नहीं कर पाई.

इसके अलावा, चुनावी टिकट बांटते समय पार्टी अपने कार्यकर्ताओं और सिंधिया के वफादारों को चुनने के बीच उलझ गई. यहां तक कि कई विद्रोहियों ने बड़ी संख्या में विधानसभा सीटों पर भाजपा के आधिकारिक उम्मीदवारों को चुनौती देनी शुरू कर दी.

कांग्रेस को भी गहलोत और पार्टी के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण नेता सचिन पायलट के बीच लंबे समय से चली आ रही प्रतिद्वंद्विता का सामना करना पड़ा. हालांकि, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकाकार्जुन खड़गे ने दोनों नेताओं को अपने-अपने गढ़ों में अपने-अपने उम्मीदवारों को चुनने की अनुमति देकर दोनों के बीच अंतिम समय में समझौता कराया, लेकिन यह कदम एकजुटता के प्रयास की तुलना में क्षति-नियंत्रण अभ्यास की तरह अधिक लग रहा था.

बता दें कि राजस्थान की सभी विधानसभा सीटें विभिन्न पांच क्षेत्रों में विभाजित हैं- मारवाड़ (61 सीटें), शेखावाटी (21), ढूंढार (58), हाड़ौती (17), और मेवाड़ (43).

2018 में, ढूंढार और शेखावाटी क्षेत्रों में कांटे की टक्कर वाले चुनाव में कांग्रेस को बढ़त मिली थी. ऐतिहासिक रूप से, राजस्थान में भाजपा को कांग्रेस पर स्पष्ट बढ़त हासिल है. भाजपा के पास कांग्रेस की तुलना में एक बड़ा सामाजिक दायरा है जहां से वह अपना समर्थन प्राप्त करती है, जिसके कारण हारने पर भी वह सम्मानजनक संख्या प्राप्त कर लेती है.

दूसरी तरफ, कांग्रेस जब भी हारी तो बुरी तरह हारी. 2013 में भाजपा के 163 की तुलना में उसे 21 सीट मिलीं. जबकि 2008 और 2018 में जब 2008 और 2018 में भाजपा हारी तो उसे क्रमश: 78 और 73 सीट मिलीं, जबकि कांग्रेस को क्रमश: 96 और 100 सीटें.

वोट शेयर के मामले में भी भाजपा के साथ ऐसा ही है, परिणाम की परवाह किए बिना उसे लगभग हमेशा 40 फीसदी के आसपास वोट मिलते रहे हैं, जबकि कांग्रेस 33 से 38 फीसदी के बीच झूलती रही है.