मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी ने बड़ी जीत दर्ज की है, वहीं तेलंगाना विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सत्तारूढ़ बीआरएस को हराया है.
नई दिल्ली: चार राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना विधानसभा के लिए हुए चुनाव के लिए मतगणना जारी है. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की जीत तय नज़र आ रही है. वहीं, तेलंगाना में सत्तारूढ़ बीआरएस ने हार स्वीकार करते हुए कांग्रेस को बधाई दी है.
चुनाव आयोग की वेबसाइट के अनुसार, दोपहर साढ़े तीन बजे तक छत्तीसगढ़ में भाजपा 53 और कांग्रेस 35 सीटों पर आगे है. राजस्थान में भाजपा 115 और कांग्रेस 69 सीटों पर आगे है. मध्य प्रदेश में भाजपा 165 और कांग्रेस 63 सीटों पर आगे है.
तेलंगाना में कांग्रेस 63, बीआरएस 40और भाजपा 09 सीटों पर आगे है.
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों पर बीते 17 नवंबर को मतदान हुआ था. इस दौरान 77.15 फीसदी मतदान दर्ज किया गया था, जो 2018 विधानसभा चुनावों की अपेक्षा करीब 2 फीसदी अधिक है.
वर्तमान में राज्य में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार है और उसके पास 127 विधायक हैं. वहीं, कांग्रेस के 96 विधायक हैं. पिछले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के 2, समाजवादी पार्टी (सपा) के एक और 4 निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी जीत दर्ज की थी.
राज्य में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के ही बीच है, जबकि इन दोनों ही दलों के कई बागी बसपा, सपा और आम आदमी पार्टी (आप) के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं. कई बड़े चेहरे निर्दलीय अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
भाजपा ने इस बार अपना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया था, जबकि कांग्रेस से प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ही चेहरा हैं. भाजपा ने चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा था.
पार्टी ने 3 केंद्रीय मंत्रियों समेत 7 सांसदों को भी चुनावी मैदान में उतारा है. राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय समेत केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल के नाम उम्मीदवारों की सूची में होने के चलते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के फिर राज्य की कमान संभालने को लेकर चुनाव प्रचार के दौरान कयास लगते रहे हैं.
भाजपा के लिए यह चुनाव पिछले चुनावों से अलग इसलिए रहा, क्योंकि इस बार प्रदेश की डोर केंद्र ने थाम रखी थी, अत: पार्टी को उम्मीद है कि ‘मोदी फैक्टर’ भी उसके पक्ष में काम करेगा.
दूसरी ओर, कांग्रेस को उम्मीद है कि भाजपा के चार कार्यकाल से उपजी सत्ता विरोधी लहर, शिवराज सरकार में हुए घोटाले और भ्रष्टाचार, वचन-पत्र में प्रदेश की जनता को दी गईं उसकी गारंटियां जैसे कि किसान कर्ज माफी, मुफ्त बिजली, सस्ता गैस सिलेंडर, महिलाओं को 1500 रुपये मासिक भत्ता आदि उसकी सत्ता में वापसी सुनिश्चित करेंगे.
छत्तीसगढ़ विधानसभा
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में छत्तीसगढ़ एकमात्र राज्य था, जहां दो चरणों में 90 सीटों पर मतदान हुआ. पहले चरण में जहां 7 नवंबर को वोट डाले गए, तो वहीं दूसरा चरण 17 नवंबर को संपन्न हुआ.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंकना चाहती है, जो किसानों के लिए कृषि ऋण माफी और धान की खरीद कीमतों में वृद्धि के अपने विजयी फॉर्मूले पर उम्मीदें लगाकर सत्ता में वापसी करना चाह रही है.
2018 के चुनावों में राज्य में रमन सिंह के नेतृत्व वाले भाजपा का 15 वर्षों का शासन समाप्त हो गया था, जिसके पीछे के प्रमुख कारणों में धान किसानों के बीच असंतोष और सत्ता विरोधी लहर को गिना जाता है.
इस कारण से कांग्रेस भाजपा को सत्ता से हटाने में कामयाब रही थी और राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से 68 पर विजय दर्ज की थी, जबकि 2013 में 49 सीटें जीतने वाली भाजपा को सिर्फ 15 सीटें मिल पाई थीं. जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने पांच सीटें जीती थी, जबकि बसपा के खाते में 2 सीटें आई थीं.
इस बार पहले चरण में छत्तीसगढ़ की 20 सीटों, जबकि दूसरे चरण में 70 सीटों पर मतदान हुआ. पहले चरण में 223 उम्मीदवार, जबकि दूसरे चरण में 958 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था. मतदान प्रतिशत 76.31 रहा था, जो 2018 विधानसभा चुनावों में दर्ज 76.88 प्रतिशत से थोड़ा कम है.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव (दोनों कांग्रेस से) और भाजपा के पूर्व सीएम रमन सिंह सहित कुल 1,181 उम्मीदवार मैदान में हैं. यहां भी मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है.
राजस्थान विधानसभा
राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों पर 25 नवंबर को मतदान हुआ था, जिसमें 75.45 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है.
राजस्थान में इस बार 75.45 प्रतिशत मतदान हुआ, जो 2018 के 74.71 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है. चुनाव में कुल 1,862 उम्मीदवार उतरे थे. राज्य की 200 सीटों में से 199 पर चुनाव हुए थे. चुनाव आयोग ने शेष बची एक सीट पर चुनाव स्थगित कर दिया है.
कांग्रेस पार्टी ने 2018 के चुनावों में भाजपा की 73 सीटों की तुलना में 100 सीटों के साथ जीत हासिल की थी. पार्टी के दिग्गज नेता अशोक गहलोत ने 2018 में तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी.
इससे पहले 2013 में भाजपा ने 163 सीटों के साथ भारी बहुमत हासिल किया था और वसुंधरा राजे ने दूसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में सरकार का नेतृत्व किया था. इस चुनाव में कांग्रेस महज 21 सीटों पर सिमट गई थी.
2018 के चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 100 सीटें जीती थी, लेकिन राजस्थान के एक निर्वाचन क्षेत्र रामगढ़ में चुनाव रद्द कर दिया गया, जिसके कारण एक निर्वाचन क्षेत्र की सीट खाली रह गई है.
2019 में बसपा के 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए, जिससे पार्टी की सीटें 105 तक पहुंच गई. इसके बाद अक्टूबर 2019 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने दो और सीटें जीतीं. फिर 2021 में कांग्रेस ने धारियावाड़ निर्वाचन क्षेत्र के उपचुनाव में जीत हासिल की, जिससे उसकी कुल सीटें 108 हो गईं.
इस राज्य में हर 5 साल में सरकार बदलने का रिवाज है और मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है.
तेलंगाना विधानसभा
119 विधानसभा सीटों वाले तेलंगाना में 30 नवंबर को मतदान हुआ था. मतदान प्रतिशत 71.34 फीसदी दर्ज किया गया था. करीब 10 वर्षों से सत्ता में काबिज मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) का मुकाबला मुख्य रूप से कांग्रेस से है. भाजपा भी राज्य में जगह बनाने की पुरजोर कोशिश में है.
2018 में तेलंगाना चुनाव में बीआरएस ने 88 सीटों पर कब्जा कर सरकार बनाई थी. कांग्रेस 19 सीटों पर विजय दर्ज करते हुए दूसरे स्थान पर रही थी और तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) को दो सीटें मिल सकी थीं. वहीं, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने 7 सीटें अपने नाम की थी, जबकि भाजपा को सिर्फ एक सीट से संतोष करना पड़ा था.
चुनाव मैदान में 2,290 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिनमें मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, उनके पुत्र मंत्री केटी रामा राव, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ए. रेवंत रेड्डी और भाजपा के लोकसभा सदस्य बंदी संजय कुमार और डी. अरविंद शामिल हैं.
सत्तारूढ़ बीआरएस ने सभी 119 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि, सीट-बंटवारे के समझौते के अनुसार, भाजपा और अभिनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी क्रमश: 111 और आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
कांग्रेस ने अपने सहयोगी सीपीआई को एक सीट दी है और 118 अन्य सीटों से खुद लड़ रही है. असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम ने 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं.