मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है, हालांकि ये नतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए निराशाजनक हैं. पार्टी ने सिंधिया के कुल 16 समर्थकों को चुनावी मैदान में उतारा था, उनमें से 8 की हार हुई है. हारने वालों में तीन मंत्री और दो विधायक भी शामिल हैं.
नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बड़ी जीत हासिल की है. पार्टी 163 सीटों पर विजयी रही है, वहीं कांग्रेस के खाते में महज 66 सीट आई हैं. हालांकि, भाजपा की इस प्रचंड जीत के बीच भी राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिहाज से नतीजे निराशाजनक रहे हैं.
उनके आधे समर्थक हार गए हैं. पार्टी ने सिंधिया के कुल 16 समर्थकों को चुनावी मैदान में उतारा था, उनमें से 8 की हार हुई है. हारने वालों में तीन मंत्री और दो विधायक भी शामिल हैं.
हारने वाले मंत्रियों में पोहरी विधानसभा से सुरेश धाकड़ 49,481 मतों के भारी अंतर से हारे. बमोरी से महेंद्र सिंह सिसोदिया को 14,796 मतों से हार मिली. बदनावर से राज्यवर्द्धन सिंह दत्तीगांव महज 2,976 मतों से हारे. तीनों ही सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार जीते. बदनावर में दत्तीगांव को हराने का काम सिंधिया के विरोध में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए भंवर सिंह शेखावत ने किया.
विधायकों की बात करें, तो अंबाह से कमलेश जाटव 22,627 मतों से हारे और अशोकनगर से जजपाल जज्जी को 8,373 मतों से हार मिली.
इनके अलावा मुरैना से रघुराज सिंह कंषाना 19,871 मतों से; डबरा से इमरती देवी 2,267 मतों से और राघौगढ़ से हीरेंद्र सिंह (बंटी) 4,505 मतों से चुनाव हारे.
हीरेंद्र सिंह को छोड़कर बाकी सभी सातों 2020 में सिंधिया के साथ बगावत करने वाले विधायकों में शामिल थे. कंषाना और इमरती देवी को 2020 के उपचुनावों में भी हार मिली थी.
सिंधिया समर्थक 11 विधायकों में से केवल 6 जीते
पार्टी द्वारा जिन 16 सिंधिया समर्थकों को मैदान में उतारा गया था, उनमें 11 वर्तमान विधायक शामिल थे, जिनमें 8 भाजपा सरकार में मंत्री भी थे. इन 11 में से 6 को ही जीत मिली, जिनमें 5 मंत्री और 1 विधायक शामिल हैं. सभी छह 2020 में सिंधिया के साथ दल बदलने वाले विधायकों में शामिल थे.
जीतने वाले 5 सिंधिया समर्थक मंत्रियों में ग्वालियर से प्रद्युम्न सिंह तोमर 19,140; मुंगावली से बृजेंद्र सिंह यादव 5,422; सुरखी से गोविंद से राजपूत 2,178; सांची से डॉ. प्रभुराम चौधरी 44,273 और सांवेर से तुलसी सिलावट 68,854 मतों से जीते. वहीं, हाटपिपल्या से विधायक मनोज चौधरी को भी 4,142 मतों से जीत मिली.
इसके अलावा, कोलारस सीट से महेंद्र यादव 50,973 मतों से जीते. उन्होंने कांग्रेस के उन बैजनाथ सिंह यादव को हराया, जो स्वयं सिंधिया समर्थक हुआ करते थे और चुनाव से ऐन पहले बड़े लाव-लश्कर के साथ भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे.
भितरवार में मोहन राठौड़ को 22,354 मतों से जीत मिली. मोहन राठौड़ ने कांग्रेसी दिग्गज लाखन सिंह यादव को हराया जो इस सीट पर लगातार तीन बार से जीतते आ रहे थे.
सिंधिया के गढ़ ग्वालियर-चंबल ने भी उन्हें निराश किया
सिंधिया का प्रभाव क्षेत्र ग्वालियर-चंबल अंचल को माना जाता है. कांग्रेस काल में वह यहां के ‘सुपर सीएम’ कहे जाते थे. 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने उनकी अगुवाई में यहां की 34 में से 26 सीटें अपने नाम की थीं. 2020 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर अपने समर्थकों के साथ भाजपा का दामन थाम लिया था, जिसके बाद हुए उपचुनाव में सिंधिया की अगुवाई में भाजपा अंचल की 16 में से 7 सीटें हार गई थी. इनमें छह सिंधिया समर्थकों की सीटें भी शामिल थीं.
इस बार भी सिंधिया अंचल में कुछ खास प्रभाव नहीं छोड़ सके. हालांकि, 2018 की अपेक्षा अंचल में भाजपा के प्रदर्शन में काफी सुधार हुआ है. वर्तमान चुनाव में पार्टी ने 34 में से 19 सीटों पर दर्ज की है, जबकि 2018 में उसे केवल 7 सीटों पर जीत मिली थी.
लेकिन, सिंधिया को ध्यान में रखकर ग्वालियर-चंबल के नतीजे देखने पर पाते हैं कि भाजपा ने अंचल में उनके 11 समर्थकों को उम्मीदवार बनाया था, जिनमें केवल 4 ही जीत पाए और 7 को हार मिली.
दूसरी ओर, पार्टी और अन्य भाजपा नेताओं के कोटे से 23 टिकट बांटे गए थे, जिनमें से 15 को जीत मिली और 8 हारे.
कुल मिलाकर देखें तो सिंधिया को उनके ही गढ़ में जनता ने खारिज कर दिया. चुनाव पूर्व द वायर ने भी अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि भाजपा में पहुंचने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया का क़द उनके ही गढ़ में कम हुआ है.
राज्य सरकार में सिंधिया की घटती हिस्सेदारी
वर्ष 2020 में कुल 19 विधायकों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन में कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा था. उपचुनाव में सभी 19 सिंधिया समर्थकों को भाजपा ने उनकी विधानसभा सीटों से टिकट भी दिया. उनमें से 13 जीते थे और 6 हार गए थे. इन 13 में से 9 शिवराज सरकार में मंत्री भी बनाए गए थे.
इन 13 में से पार्टी ने एक मंत्री समेत दो विधायकों का टिकट काटा था, जिनमें मेहगांव सीट से मंत्री ओपीएस भदौरिया और भांडेर सीट से विधायक रक्षा सिरोनिया का नाम शामिल था. हालांकि, इनकी जगह उपचुनाव में हारे दो सिंधिया समर्थक विधायकों- मुरैना से रघुराज सिंह कंषाना और डबरा से इमरती देवी- को वापस चुनाव मैदान में उतारा था.
कुल मिलाकर पार्टी ने सिंधिया के साथ 2020 में दलबदल करने वाले 19 में से 13 विधायकों को इस बार चुनाव मैदान में उतारा था. पार्टी ने तीन अतिरिक्त सीटों (भितरवार, राघौगढ़ और कोलारस) पर भी सिंधिया समर्थकों पर भरोसा दिखाया था.
2020 के उपचुनाव में सिंधिया की जोर आजमाइश कुल 19 सीटों पर थी, वह इस चुनाव में घटकर 16 रह गई थी. वहीं, विधानसभा और सरकार में उनकी हिस्सेदारी क्रमश: 13 विधायक और 9 मंत्रियों की थी. अब विधानसभा में उनके समर्थक विधायक ही केवल 8 बचे हैं, जिनमें केवल छह विधायक वे शामिल हैं, जिन्होंने उनके साथ मिलकर कांग्रेस से बगावत करके भाजपा की सरकार बनवाई थी.
कुल मिलाकर देखें तो दल बदल करने के बाद से करीब साढ़े तीन साल में सिंधिया की ताकत मध्य प्रदेश विधानसभा में करीब 60 फीसदी कम हो गई है और वह 19 विधायकों से खिसककर 8 पर आ गई है.