अब अयोध्या बाबरी ध्वंस के दौर से निकलकर घरों, दुकानों के ध्वस्तीकरण के दौर में आ पहुंची है

आज अयोध्या की ‘बड़ी-बड़ी’ बातों ने कई ‘छोटी’ बातों को इतनी छोटी कर डाला है कि वे न पत्रकारों को नज़र आती हैं, न सरकारी अमले को. ऐसे में उन आम अयोध्यावासियों की तकलीफें अनदेखी की शिकार हैं, जो ‘ऊंची उड़ानों’ पर नहीं जाना चाहते या जिन्हें उन उड़ानों के इंतज़ामकार अपने साथ नहीं ले जाना चाहते. 

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इस साल की शुरुआत में अयोध्या में हुई एक ध्वस्तीकरण कार्रवाई. (फोटो साभार: फेसबुक/@AyodhyaDevelopmentAuthority)

आज अयोध्या की ‘बड़ी-बड़ी’ बातों ने कई ‘छोटी’ बातों को इतनी छोटी कर डाला है कि वे न पत्रकारों को नज़र आती हैं, न सरकारी अमले को. ऐसे में उन आम अयोध्यावासियों की तकलीफें अनदेखी की शिकार हैं, जो ‘ऊंची उड़ानों’ पर नहीं जाना चाहते या जिन्हें उन उड़ानों के इंतज़ामकार अपने साथ नहीं ले जाना चाहते.

इस साल की शुरुआत में अयोध्या में हुई एक ध्वस्तीकरण कार्रवाई. (फोटो साभार: फेसबुक/@AyodhyaDevelopmentAuthority)

अयोध्या में छह दिसंबर को अब वैसा कुछ नहीं होता, जैसा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नौ नवंबर, 2019 को सुनाए गए फैसले अथवा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पांच अगस्त, 2020 को किए गए राम मंदिर के भूमिपूजन से पहले हुआ करता था.

हो भी कैसे सकता है, जब उससे जुड़े ‘शौर्य दिवस’ और ‘यौमे गम’ बीते वक्त की बात हो गए हैं, ध्वंस, एकतरफा तौर पर, अनवरत चलने वाली प्रक्रिया बन गया है और अयोध्या बाबरी मस्जिद के ध्वंस के दौर से निकलकर घरों, दुकानों व प्रतिष्ठानों के ध्वस्तीकरण के दौर में आ पहुंची है, जिसकी बिना पर उसकी सड़कें चौड़ी-चकली, दूसरे शब्दों में कहें तो ‘टूरिस्ट फेंडली’ बनाई जा रही हैं. सब कुछ इतना एकतरफा हो गया है कि कई लोग कहते सुने जाते हैं कि ‘बाबरी मस्जिद का तो अब नाम भी मत लो.’

इस बीच अयोध्या को श्रद्धालुओं, तीर्थयात्रियों, दर्शनार्थियों व पर्यटकों वगैरह की सुख-सुविधाओं के लिए चमकाकर, नहीं-नहीं, ‘भव्य’ और ‘दिव्य’ बनाकर, ‘त्रेता की वापसी’ कराने में मुब्तिला जमातों के लिए छिपाना मुश्किल हो रहा है कि उन्होंने इस वापसी के तकिए पर कितनी ऊंची उड़ान का मंसूबा बना रखा है.

उनका यह मंसूबा आगामी 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘रामलला’ की प्राणप्रतिष्ठा के समारोह तक कैसे और कितना और उछलेगा, इसकी टोह लेने के लिए पत्रकार अयोध्या पहुंचने लगे हैं और साफ दिखता है कि उनमें से अनेक अभी भी उस बीमारी से निजात नहीं पा सके हैं, जिसके तहत अपनी सद्भावनाओं या दुर्भावनाओं के मद्देनजर वे मीडिया द्वारा प्रचारित अयोध्या का कोई ऐसा रूप, जिसका जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं होता, अपने दिलो-दिमाग में लेकर आते, पहुंचते ही उसे तलाशने लग जाते और कहीं नहीं पाते तो हताश होने लग जाते हैं.

फिलहाल, उन्हें अयोध्या में कुछ भी भव्य और दिव्य नहीं दिख रहा, अचंभित करने वाला भी नहीं. लेकिन ऊंची उड़ान के आकांक्षी उन्हें आश्वस्त कर रहे हैं कि जल्दी ही दिखने लग जाएगा- इतना भव्य कि उसके बूते वे 2024 की ‘जंग’ फतह कर लेंगे. वैसे भी पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने उनके मंसूबों को इतनी शह दे ही है कि वे उनके विपरीत होने के अंदेशों के दिनों का अपना खुद का ही यह तर्क भूल गए हैं कि उनका 2024 के लोकसभा चुनाव की संभावनाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा. तब वे कहते थे कि विधानसभा व लोकसभा चुनावों के मुद्दे अलग-अलग होते हैं और मतदाता उनके आधार पर दोनों में अलग-अलग पैटर्न पर मतदान करना सीख गए हैं, मगर अब कह रहे हैं कि इन नतीजों से 2024 में उनकी जीत की हैट्रिक पक्की हो गई है.

यह और बात है कि इसके विपरीत अयोध्या के जमीनी हालात उसके अपने वक्त केे लोकप्रिय शायर स्मृतिशेष चंद्रमणि त्रिपाठी ‘सहनशील’ की गजल का यह शे’र याद ही दिला रहे हैं: बस्ती के सभी लोग हैं ऊंची उड़ान पै, किसकी निगाह जाएगी जलते मकान पै?

लेकिन गिनीज बुक में दर्ज 22.23 लाख दीयों वाले हालिया सरकारी दीपोत्सव की जगर-मगर की उतरने को नहीं आ रही खुमारी के बीच इस बात को उसके वातावरण में फैला दी गई ‘बड़ी-बड़ी’ बातों के बजाय कुछ ‘छोटी’ बातों के सहारे ही समझा जा सकता है.

‘बड़ी-बड़ी’ बातों में तो उन वंचितों की दुर्दशा तक नजर नहीं आती जो गरीबी और गिरानी से इस कदर ‘अभिशापित’ हैं कि दीपोत्सव के दीयों में भरे तेल को ललचाई आंखों से देखते रहते और उनके बुझते न बुझते अपने डिब्बों व बोतलों में उनका बचा-खुचा तेल अपने डिब्बों, शीशियों व बोतलों वगैरह में भरने झपट पड़ते हैं. इसकी ‘परंपरा’ पहले दीपोत्सव से ही आरंभ हो गई थी और इस बार तो कहते हैं कि इसके बावजूद नहीं टूटी कि इसके लिए कड़ी चौकसी बरती कि जलाए गए दीयों के कुछ देर जल जाने के बाद ही उनके तेल की ‘लूट’ शुरू हो.

लेकिन क्या कीजिएगा, ‘बड़ी-बड़ी’ बातों ने अब कई ‘छोटी’ बातों को इतनी छोटी कर डाला है कि वे न पत्रकारों को नजर आती हैं, न सरकारी अमले को. कारण यह कि पत्रकार ऊंची उड़ानों के करतब देखते रह जाते हैं और सरकारी अमला उन करतबों को दिखाने वालों की बड़ी-बड़ी बातों का भारी बोझ ढोने में हलकान हुआ रहता है. उसे मुख्यमंत्री, मंत्रियों, आला अफसरों और सरकारी पार्टी व राम मंदिर ट्रस्ट के नेताओं व पदाधिकारियों के किसी न किसी बहाने रोज-रोज होने वाले दौरे निपटाने और उनसे जुडे़ उनके कई नाज उठाने पड़ते हैं.

ऐसे में क्या आश्चर्य कि उन अयोध्यावासियों की तकलीफें अनदेखी की शिकार हैं, जो ‘ऊंची उड़ानों’ पर नहीं जाना चाहते या जिन्हें उन उड़ानों के इंतजामकार अपने साथ नहीं ले जाना चाहते. इनका दर्द इस अर्थ में दोहरा है कि एक ओर जहां उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है, दूसरी ओर वे अयोध्या में स्वर्ग उतार दिए जाने के सरकारी प्रचार से प्रभावित दूरदराज के उन ईर्ष्यालुओं की ईर्ष्या के भी शिकार हैं, जो सोचते हैं कि अयोध्या में होते तो वे भी उस स्वर्ग में विचरण करते!

ये ईर्ष्यालु अयोध्या में पढ़े जाने वाले अखबारों के गत रविवार के अंक ही पढ़ लेते तो उनकी गलतफहमी दूर हो जाती. उस दिन ये अखबार जहां यह बड़ी खबर लेकर आए कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को अयोध्या में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम इंटरनेशनल एयरपोर्ट के निरीक्षण के बाद बताया कि उसके टर्मिनल का डिजाइन राम मंदिर जैसा ही है और रामलला के 22 जनवरी के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से पहले वहां से उड़ाने आरंभ हो जाएगी, यह ‘छोटी’ खबर भी ले आए कि जिले की बीकापुर तहसील में लोगों की समस्याएं सुनने के लिए सरकारी तौर पर आयोजित संपूर्ण समाधान दिवस में अफसरों की बेरुखी से त्रस्त कशेरुवा बुजुर्ग गांव के 65 वर्षीय वृद्ध सूर्यमणि वर्मा ने अपने शरीर पर पेट्रोल छिड़ककर जान देने की कोशिश कर डाली.

जो अफसर पहले उसकी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे, उसकी इस कोशिश के बाद फौरन हरकत में आए और अफरा-तफरी के बीच उन्हें पुलिस हिरासत में दे दिया. इन वृद्ध का कहना था कि उनके थाने की पुलिस द्वारा संरक्षित कुछ लोग एसडीएम कोर्ट के स्थगनादेश का उल्लंघन कर उनकी भूमि कब्जाकर उस पर घर बना ले रहे हैं और कोई उनके विरुद्ध उसकी फरियाद नहीं सुन रहा.

अखबारों के अनुसार, एक ट्रेनी एसडीएम ने उसकी इस बात की ताईद करते हुए बताया कि गत 16 अगस्त को उसके पक्ष में स्थगनादेश जारी कर पुलिस को उसका अनुपालन कराने को कहा गया था, मगर पुलिस ने ऐसा नहीं किया. अब इस मामले की जांच और दोषियों पर कार्रवाई के लिए पांच सदस्यों की कमेटी बनाई गई है. लेकिन कोई बताने वाला नहीं है कि इस कमेटी का उन वृद्ध के लिए क्या हासिल है?

दूसरी ओर भेलसर में आयोजित समाधान दिवस में जिलाधिकारी और कई अन्य अधिकारी पहुंचे ही नहीं, जिसके चलते 151 फरियादियों में से सिर्फ 13 की समस्याओं का समाधान हो सका. मायूस फरयादियों में चर्चा थी कि जिलाधिकारी भला कैसे आते, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह अयोध्या आए हुए थे. उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एयरपोर्ट और राम मंदिर निर्माण की प्रगति की जानकारी लेनी थी और निरीक्षण वगैरह के अलावा हनुमानगढ़ी व रामलला के दरबार में दर्शन-पूजन करना और 42वें रामायण मेले का पोस्टर जारी करना था.

ऐसे वीवीआईपी दौरों से जुड़ी एक और ‘छोटी’ बात यह है कि जब भी कोई वीवीआईपी आता है हनुमानगढ़ी के आस-पास के मार्गों को आम श्रद्धालुओं, तीर्थयात्रियों और पर्यटकों वगैरह के लिए बंद कर दिया जाता है, जिससे उनकी सांसत हो जाती है.

स्थानीय दैनिक ‘जनमोर्चा’ के अनुसार शनिवार को योगी, सिंधिया और वीके सिह के दौरे के वक्त भी उनके पहुंचने से आधा घंटा पहले ही हनुमानगढ़ी के मुख्य द्वार पर भारी पुलिस बल तैनातकर लोगों का आना-जाना रोक दिया गया था. आकस्मिकता के वशीभूत कुछ लोगों ने रोक के बावजूद उधर से जाने की कोशिश की, तो उन्हें पुलिसकर्मियों के हाथों अपमानित होना पड़ा.

ठेलों और पटरी दुकानदारों का तो आजकल अयोध्या में कोई ठिकाना ही नहीं रह गया है कि उन्हें कब कहां से दफा हो जाने का फरमान सुना दिया जाए और वाहनों को कब अचानक रूट डायवर्जन झेलना पड़ जाए. सड़कें चौड़ी करने और सीवरलाइन बिछाने के काम में हड़बड़ी में नन्हें-मुन्नों के स्कूलों के आस-पास भी गड्ढे खोदकर छोड़ दिए जा रहे हैंं और पिछले दिनों ऐसे गड्ढों के कारण हुई उन दुर्घटनाओं से भी कोई सबक नहीं लिया गया है, जिनमें जानें तक जा चुकी हैं.

ऐसे में सोचिए जरा: 22 जनवरी के रामलला के प्राणप्रतिष्ठा समारोह से पहले उसमें और उसके बाद अयोध्या आने वालों के लिए सब-कुछ चाक-चौबंद या कि भव्य और दिव्य करने की हड़बड़ी में आम अयोध्यावासियों की समस्याओं व असुविधाओं की ओर इस तरह पीठ किए रखना छोटी बात है या बड़ी और है तो क्यों है?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

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