मराठा आरक्षण: बढ़ते सरकारी हस्तक्षेप का हवाला देते हुए आयोग के दो सदस्यों का इस्तीफ़ा

मराठा समुदाय के आर्थिक, सामाजिक पिछड़ेपन का अध्ययन करने के लिए गठित आयोग के नौ सदस्यों में से एक ने कहा कि सरकार आयोग से पूर्व-निर्धारित धारणा पर एक रिपोर्ट चाहती है कि मराठा पिछड़े हैं. यह एक स्वतंत्र आयोग है, जो डेटा और विश्लेषण के बाद ही निष्कर्ष देगा. सरकार किसी विशेष समुदाय को पिछड़े वर्ग में शामिल करने के लिए आयोग से डेटा देने के लिए कैसे कह सकती है?

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस. (फाइल फोटो साभार: फेसबुक)

मराठा समुदाय के आर्थिक, सामाजिक पिछड़ेपन का अध्ययन करने के लिए गठित आयोग के नौ सदस्यों में से एक ने कहा कि सरकार आयोग से पूर्व-निर्धारित धारणा पर एक रिपोर्ट चाहती है कि मराठा पिछड़े हैं. यह एक स्वतंत्र आयोग है, जो डेटा और विश्लेषण के बाद ही निष्कर्ष देगा. सरकार किसी विशेष समुदाय को पिछड़े वर्ग में शामिल करने के लिए आयोग से डेटा देने के लिए कैसे कह सकती है?

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस. (फाइल फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार के राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एमएसबीसीसी), जो एक अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण है, में इस्तीफों की शुरुआत हो चुकी है जिसकी वजह ‘सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों में निर्धारित 50% आरक्षण की सीमा से अधिक को उचित ठहराने वाले मराठा समुदाय के संदर्भ में असाधारण परिस्थितियों का पता लगाना बताया जा रहा है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 13 नवंबर को शिंदे द्वारा एमएसबीसीसी अध्यक्ष को लिखे गए पत्र के साथ संलग्न संदर्भ की शर्तों (टर्म ऑफ रेफेरेंस) की आयोग के कुछ सदस्यों द्वारा उल्लेख किया जा रहा है कि वे मराठा समुदाय के लिए कोटा को उचित ठहराने के लिए डेटा प्राप्त करने के लिए कह रहे हैं. इसके नौ सदस्यों में से दो ने पिछले सप्ताह ही इस्तीफा दे दिया, एक अन्य ने कहा कि वह इस्तीफे पर विचार कर रहे हैं. इन सभी की शिकायत ‘बढ़ता हस्तक्षेप’ है.

एक सदस्य बालाजी किलारिकर, जिन्होंने हाल ही में इस्तीफा दे दिया था, ने पैनल के ‘पक्षपातपूर्ण’ और ‘एजेंडा-संचालित’ कामकाज का हवाला दिया. पद छोड़ने वाले एक अन्य सदस्य लक्ष्मण हेक ने अपने इस्तीफे के कारण के रूप में सरकार के बढ़ते ‘हस्तक्षेप’ की ओर इशारा किया. एक और सदस्य जस्टिस (सेवानिवृत्त) चंद्रलाल मेश्राम ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि वह भी इस्तीफे पर विचार कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘हम सरकारी नौकर नहीं हैं. हमें सरकारी आदेशों के आधार पर काम नहीं करना चाहिए. मैंने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है, लेकिन हां, मैं इस्तीफा देने के बारे में सोच रहा हूं. मैं कुछ वरिष्ठों से चर्चा करूंगा और अगले दो-तीन दिनों में फैसला लूंगा.’

एक चौथे सदस्य, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, ने अख़बार को बताया कि आयोग की 1 दिसंबर की बैठक में असंतुष्ट सदस्यों ने केवल मराठों पर डेटा के संग्रह को अस्वीकार कर दिया और इसके बजाय सभी समुदायों के डेटा को इकट्ठा करने पर जोर दिया.

उन्होंने कहा, ‘सरकार आयोग से पूर्व-निर्धारित धारणा पर एक रिपोर्ट चाहती है कि मराठा पिछड़े हैं. यह एक स्वतंत्र आयोग है, जो डेटा एकत्र करेगा और उसका विश्लेषण करेगा और उसके बाद ही समुदाय के पिछड़ेपन पर कोई निष्कर्ष निकाला जाएगा. सरकार किसी विशेष समुदाय को पिछड़े वर्गों में शामिल करने के लिए आयोग से डेटा देने के लिए कैसे कह सकती है?’

टर्म ऑफ रेफेरेंस ने पैनल से मराठा समुदाय के सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन का निर्धारण करने और उन्हें पिछड़े वर्गों में शामिल करने के लिए ऊपर बताए गए मानदंडों को लागू करके ताजा परिमाणनीय और अन्य डेटा, जानकारी एकत्र करने और अतीत में एकत्र किए गए डेटा और जानकारी की जांच और निरीक्षण करने के लिए भी कहा है.

इस संदर्भ में चौथे सदस्य ने यह भी बताया कि मराठा समुदाय के पिछड़ेपन पर जस्टिस (सेवानिवृत्त) एमजी गायकवाड़ के तहत आयोग की पिछली रिपोर्ट को शीर्ष अदालत ने स्वीकार नहीं किया था. उन्होंने कहा, ‘अब सरकार के लिए यह उचित नहीं है कि वह हमें निर्देशित करे कि वे क्या सुनना चाहते हैं.’

अपने त्याग पत्र में किलारिकर ने कहा था कि, ‘स्थिति को हल करने के लिए महाराष्ट्र राज्य का एक व्यापक जाति-आधारित सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण करना बेहतर है जो समाज के हर वर्ग को अपनी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का एहसास करने में सक्षम करेगा.’ उन्होंने यह भी कहा था कि मराठा और पिछड़े वर्गों को आरक्षण के उनके दावे और इसी तरह की अन्य मांगों के संबंध में वोट की राजनीति से अलग प्रामाणिक और विश्वसनीय जानकारी के साथ ईमानदारी से सूचित करने की जरूरत है.

इससे पहले 13 नवंबर को आयोग के अध्यक्ष को लिखे अपने पत्र में मुख्यमंत्री शिंदे ने पैनल से मराठा समुदाय को पिछड़े वर्ग के रूप में शामिल करने के अनुरोध की जांच करने का आग्रह किया था. उनके पत्र के साथ संलग्न विस्तृत 10 बिंदु में दर्ज टर्म ऑफ रेफेरेंस में पैनल को सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक, पिछड़ेपन का पता लगाने और आरक्षण लाभ के लिए जिम्मेदार असाधारण परिस्थितियों और स्थितियों को परिभाषित करने के लिए मानदंड और पैरामीटर निर्धारित करने थे.

उल्लेखनीय है कि राज्य में मराठा आरक्षण के लिए मनोज जरांगे पाटिल के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शन और समुदाय की ओर से सरकार पर लगातार दबाव के कारण सरकार को यह काम नए सिरे से एमएसबीसीसी को सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ा.

हालांकि, आयोग के एक अन्य सदस्य ने कहा कि राज्य ने केवल 50% आरक्षण के आंकड़े को पार करने के लिए आयोग की मुहर मांगी है. वह उस स्थिति का जिक्र कर रहे थे जो मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा 1992 में इंद्रा साहनी फैसले में निर्धारित 50% की सीमा का उल्लंघन करने के कारण मराठा आरक्षण को रद्द करने के बाद उत्पन्न हुई थी.

उधर, राज्य में विपक्षी दल लगातार राज्य सरकार से आरक्षण की सीमा 50% से ऊपर बढ़ाने के लिए केंद्र के साथ काम करने की मांग कर रहे हैं. केंद्र में भाजपा के साथ और महाराष्ट्र में एनसीपी (अजित पवार गुट) और शिवसेना (शिंदे गुट) के साथ गठबंधन में राज्य सरकार ने पहली बार मराठों को आरक्षण देने के लिए केंद्र के साथ संयुक्त रूप से काम करने की इच्छा व्यक्त की है.

उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने पिछले दिनों कहा था कि सरकार बिहार जाति सर्वेक्षण प्रक्रिया का अध्ययन करेगी, लेकिन सरकार की ओर से किसी ने भी 50% आरक्षण सीमा बढ़ाने की बात नहीं की.

ज्ञात हो कि मनोज जारंगे पाटिल के नेतृत्व में महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन ने राज्य सरकार को मराठों को ओबीसी प्रमाण पत्र देने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए मजबूर किया है. इसके चलते ओबीसी ने विरोध प्रदर्शन किया है और चेतावनी दी है कि अगर आरक्षण में उनकी हिस्सेदारी कम की गई तो वे आंदोलन करेंगे. मराठा आरक्षण को लेकर राज्य सरकार की सुप्रीम कोर्ट में उपचारात्मक याचिका लंबित है और उसे आयोग से राज्य में मराठों के पिछड़ेपन का डेटा चाहिए.

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