निर्माता-निर्देशक गांधी ने कहा, समाज के विभिन्न वर्गों से रचनात्मक लोगों को जिस तरह धमकियां मिल रही हैं, उससे रचनात्मक स्वतंत्रता ख़तरे में है.
पणजी: राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मकार आनंद गांधी का कहना है कि देश में इस समय कलाकारों के मौलिक अधिकारों पर आघात होते देखकर उन्हें बेचैनी महसूस हो रही है.
37 साल के निर्माता-निर्देशक ने कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों से व्यवसायिक और स्वतंत्र दोनों तरह की फिल्मों को जिस तरह की धमकियां मिल रही हैं, उससे रचनात्मक स्वतंत्रता खतरे में है.
उन्होंने एक खास बातचीत में कहा, कलाकारों, अभिनेता-अभिनेत्रियों, फिल्मकारों, पत्रकारों यहां तक कि छात्रों को भी लगातार धमकियां दी जा रही हैं. इन समुदायों को खुलेआम धमकियां मिलना एक स्वीकृत चलन बन गया है. हमें चुप्पी, स्व-निरीक्षण और इन धमकियों को स्वीकारने की तरफ धकेला जा रहा है.
शिप ऑफ थीसियस फिल्म के निर्देशक ने कहा, एक निर्माता के तौर पर मैं किसी सामयिक या सामाजिक मुद्दे से जुड़ी फिल्म पर काम करने को लेकर बेहद चिंतित हूं. इस तरह के माहौल से मुझे बेचैनी होती है. मैं अपने देश में कानून की नीति से प्रभावित हो रहा हूं. इस देश में मौलिक अधिकार एवं कानून-व्यवस्था की स्थिति इस समय खतरे में है. जब मैं अपराधियों को वैधता मिलते देखता हूं तो बेचैन हो उठता हूं.
ऐन इनसिग्निफिकेंट मैन के निर्माता ने कहा कि कुछ छिटपुट तत्वों के बहस को कानून-व्यवस्था की स्थिति में बदलने के कारण बातचीत की गुंजाइश ही नहीं बची है.
गांधी ने कहा, जो हिंसा चल रही है, उसे एक निश्चित वैधता मिली है. कुछ समूहों ने बहस या विरोध प्रदर्शन की सीमा पार कर ली है. इन चीजों ने सेंसरशिप को लेकर बातचीत की सीमा भी पार कर ली है. ये वे लोग हैं जो हिंसा भड़का रहे हैं और राजनीतिक दलों के नेता निंदा करने की बजाए उनका समर्थन कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, यह कानून व्यवस्था की स्थिति है. यह अब विरोध प्रदर्शनों या अतिसंवेदनशीलता पर आधारित बातचीत नहीं रही. गांधी ने अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह, गोवा के पैनोरमा खंड से हटाई गई मलयाली फिल्म एस दुर्गा का समर्थन करते हुए कहा, निर्णायक समिति (आईएफएफआई पैनोरमा खंड) ने फिल्म का समर्थन किया. मैंने लंदन फिल्मोत्सव में फिल्म देखी थी. यह फिल्म देखी जानी चाहिए.