मध्य प्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाए जाने समेत अन्य ख़बरें

द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.

(फोटो: द वायर)

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मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत से जीत दर्ज करने के हफ्तेभर से अधिक समय बाद भाजपा ने मोहन यादव को मुख्यमंत्री के तौर पर चुना है. एनडीटीवी के अनुसार, उज्जैन दक्षिण सीट से विधायक मोहन यादव ओबीसी वर्ग से आते हैं और शिवराज सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री का कार्यभार संभाल चुके हैं. पार्टी ने दो अन्य विधायकों- जगदीश देवड़ा और राजेंद्र शुक्ला को उपमुख्यमंत्री बनाया है. मंदसौर जिले की मल्हारगढ़ से  बार विधायक रहे देवड़ा शिवराज सरकार में वित्त मंत्री थे. रीवा सीट से विधायक राजेंद्र शुक्ला भी 2013 की शिवराज सरकार में मंत्री रह चुके हैं. वहीं, मुरैना की दिमनी सीट से चुनाव जीतने वाले केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया है. भाजपा ने राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से 163 सीटों पर विजयी रही है. बहुमत का आंकड़ा 116 था. कांग्रेस के खाते में 66 सीट आई हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अगस्त 2019 में  जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और सूबे को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के निर्णय को वैध बताया है. रिपोर्ट के अनुसार, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था और इसे निरस्त करने वाला संवैधानिक आदेश पूरी तरह से वैध है. इसके साथ ही अदालत ने 30 सितंबर, 2024 से पहले सूबे में विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया है. इस सवाल पर कि क्या जम्मू-कश्मीर के भारत संघ में शामिल होने पर इसकी आंतरिक संप्रभुता बरकरार रही, पर अदालत ने कहा कि ऐसा नहीं है. अदालत ने लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनने को भी वैध माना है. फैसले में यह भी कहा गया कि इस संबंध में राष्ट्रपति द्वारा शक्ति का उपयोग वैध था और दुर्भावनापूर्ण नहीं था. कोर्ट ने जोड़ा कि अनुच्छेद 370 को हटाने की अधिसूचना देने की राष्ट्रपति की शक्ति जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के भंग होने के बाद भी बनी रहती है. पीठ ने यह भी जोड़ा कि केंद्र के हर फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती. इस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 2 अगस्त, 2023 से शुरू हुई सुनवाई के बाद 5 सितंबर को अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. अगस्त में हुई सुनवाई से पहले यह मामला अदालत में तीन साल से अधिक समय तक निष्क्रिय पड़ा रहा था, जहां इस साल से पहले इसकी आखिरी लिस्टिंग मार्च 2020 में हुई थी.

टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा ने लोकसभा से उनके निष्कासन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. बार एंड बेंच के अनुसार, यह घटनाक्रम तब सामने आया जब जय देहाद्राई और निशिकांत दुबे के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में दायर मानहानि का मामला सोमवार सुबह सुनवाई के लिए आया. भाजपा सांसद निशिकांत दुबे द्वारा मोइत्रा पर लगाए गए ‘कैश फॉर क्वेरी’ के आरोपों को लेकर लोकसभा की एथिक्स कमेटी की सिफ़ारिश पर उन्हें शुक्रवार को सदन से निष्काषित कर दिया गया था. महुआ ने इन आरोपों का खंडन किया था और कमेटी की कार्रवाई को ‘कंगारू कोर्ट’ करार दिया था. विपक्षी दलों ने भी इस कदम की एक स्वर में इसकी आलोचना की थी. भाजपा सांसद विनोद सोनकर की अगुवाई वाली एथिक्स कमेटी पर भी पक्षपातपूर्ण रवैया बरतने के आरोप लगे हैं.

ईडी ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को छठा समन भेजते हुए रांची में जमीन की कथित धोखाधड़ी वाली ख़रीदफ़रोख़्त से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग जांच के संबंध में पूछताछ के लिए एजेंसी के सामने पेश होने के लिए कहा है. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, मामले से वाकिफ़  बताया कि मुख्यमंत्री को मंगलवार को रांची स्थित एजेंसी के जोनल कार्यालय में पेश होना है. इससे पहले झारखंड हाईकोर्ट ने एजेंसी द्वारा भेजे गए पांचवें समन के खिलाफ सोरेन की याचिका खारिज कर दी. सोरेन ने पहले सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, हालांकि शीर्ष अदालत ने उन्हें उच्च न्यायालय जाने को कहा था. सोरेन ने हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती नहीं दी है.

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने कहा है कि करगिल युद्ध के विरोध पर उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया गया था. रिपोर्ट के अनुसार, चार साल के स्वैच्छिक निर्वासन के बाद पाकिस्तान लौटे शरीफ़ ने कहा कि उन्हें उस समय पाकिस्तान की सेना का नेतृत्व करने वाले (दिवंगत) जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने सत्ता से बेदखल कर दिया था, क्योंकि उन्होंने करगिल युद्ध का विरोध करने के साथ ही भारत और अन्य प्रमुख पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध रखने का सुझाव दिया था. मई 1999 में तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य के करगिल में संघर्ष की शुरुआत हुई थी. उस समय पाकिस्‍तानी सेना के समर्थन से कुछ आतंकी जम्‍मू कश्‍मीर में दाखिल हो गए थे. लगभग तीन महीने बाद जुलाई 1999 में युद्ध खत्‍म  हुआ था.

एक अध्ययन में सामने आया है कि कोविड संक्रमण फैलाने वाला वायरस सार्स-सीओवी-2 (SARS-CoV-2) संक्रमण के 18 महीने बाद तक कुछ व्यक्तियों के फेफड़ों में पाया  गया. एनडीटीवी के अनुसार, इंस्टिट्यूट पाश्चर की एक टीम ने फ्रांसीसी सार्वजनिक शोध संस्थान के सहयोग से एक पशु मॉडल में फेफड़ों की कोशिकाओं पर अध्ययन किया. नेचर इम्यूनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित इसके परिणाम न केवल यह दर्शाते हैं कि सार्स-सीओवी-2 संक्रमण के बाद 18 महीने तक कुछ व्यक्तियों के फेफड़ों में पाया जा सकता है, बल्कि यह भी कि इसका बना रहना संभवतः जन्मजात इम्युनिटी के विफल होने से जुड़ा है. शोधकर्ताओं का कहना है कि कुछ वायरस शरीर में संक्रमण पैदा करने के बाद शरीर में अज्ञात तरीके से बने रहते हैं,  जिन्हें ‘वायरल रिज़र्वोयर’ कहा जाता है. जैसा कि एचआईवी में होता है, जो कुछ इम्यून सेल में छिपा रहता है और किसी भी समय पुनः सक्रिय हो सकता है. उन्होंने कहा कि ऐसा ही सार्स-सीओवी-2 वायरस के साथ भी हो सकता है जो कोविड-19 का कारण बनता है.

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