विपक्ष का कहना है कि वह इस बात से निराश है कि सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर राज्य को विखंडित करने और उसका दर्जा घटाकर दो केंद्र शासित प्रदेश बनाने के सवाल पर फैसला नहीं किया. जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले पर बरक़रार रखने के शीर्ष अदालत के फैसले पर कांग्रेस ने कहा कि वह इससे ‘सम्मानपूर्वक असहमति जताती’ है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा सोमवार (11 दिसंबर) को अपने फैसले में जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने वाले संवैधानिक आदेश को बरकरार रखने के बाद विपक्षी दलों ने देश में संघवाद के भविष्य पर सवाल उठाए हैं.
अदालत ने अगस्त 2019 में जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के माध्यम से पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के नरेंद्र मोदी सरकार के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाया था.
सोमवार शाम (11 दिसंबर) राष्ट्रीय राजधानी में कांग्रेस ने कहा कि वह शीर्ष अदालत के आदेश से ‘सम्मानपूर्वक असहमति जताती’ है.
पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘प्रथमदृष्टया जिस तरह अनुच्छेद 370 को हटाया गया था, उस तरीके पर हम फैसले से सम्मानपूर्वक असहमति जताते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘हम अगस्त 2019 के सीडब्ल्यूसी (कांग्रेस वर्किंग कमेटी) के संकल्प को दोहराते हैं कि अनुच्छेद 370 तब तक सम्मान के योग्य है, जब तक कि इसे भारत के संविधान के अनुसार सख्ती से संशोधित नहीं किया जाता.’
पार्टी ने यह भी कहा कि वह ‘निराश’ है कि अदालत ने इस सवाल पर फैसला नहीं किया कि क्या संसद किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल सकती है.
लाइव लॉ के मुताबिक, जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम-2019 की वैधता अदालत के समक्ष मुद्दों में से एक थी, लेकिन अदालत ने भारत के सॉलिसिटर जनरल की इस दलील के मद्देनजर इस पर कोई फैसला नहीं सुनाया कि जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाएगा.
हालांकि, अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 3, जो राज्य के एक हिस्से को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की अनुमति देता है- का हवाला देते हुए लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश के निर्माण को बरकरार रखा.
चिदंबरम ने कहा, ‘हम इस बात से भी निराश हैं कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य को विखंडित करने और उसका दर्जा घटाकर दो केंद्र शासित प्रदेश करने के सवाल पर फैसला नहीं किया.’
संवाददाता सम्मेलन में मौजूद राज्यसभा सांसद और वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अनुच्छेद 3 के तहत पूरे राज्य को केंद्र शासित प्रदेश नहीं बनाया जा सकता है.
उन्होंने कहा, ‘राज्य के दर्जे के मुद्दे को लेकर इस फैसले में एक अजीब विरोधाभास है.’
उन्होंने कहा, ‘संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत आप किसी राज्य के एक हिस्से को केंद्र शासित प्रदेश बना सकते हैं, या किसी राज्य को दो या तीन राज्यों में विभाजित कर सकते हैं. लेकिन अनुच्छेद 3 में शर्त है कि इसका कुछ हिस्सा राज्य में रहना चाहिए. आप पूरे राज्य को सिर्फ केंद्र शासित प्रदेश नहीं बना सकते.’
उन्होंने कहा, ‘इस निर्णय में विरोधाभास यह है कि आपने पूरे राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया है. और एक केंद्र शासित प्रदेश के बारे में आपने कहा है कि हम वैधता पर निर्णय नहीं ले रहे हैं, क्योंकि हमें आश्वासन दिया गया है कि पूर्ण राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाएगा. अन्य केंद्र शासित प्रदेश के मामले में यह माना गया है कि यह वैध है. इसलिए जब तक इस पूरे क्षेत्र का एक हिस्सा राज्य नहीं बनता, तब तक यह अनुच्छेद 3 के तहत मान्य नहीं हो सकता.’
उन्होंने फैसले में संवैधानिक त्रुटि की बात कही.
अन्य विपक्षी दलों ने भी पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने की वैधता पर फैसला देने से अदालत के इनकार पर सवाल उठाया है.
मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता सीपीआई (एम) ने एक बयान जारी कर कहा कि यह फैसला चिंतित करने वाला है और हमारे संविधान की संघीय संरचना के लिए गंभीर परिणाम रखता है , जो इसकी मूलभूत विशेषताओं में से एक है.
पार्टी के पोलित ब्यूरो के बयान में चिंता व्यक्त की गई है कि फैसला केंद्र सरकार को एकतरफा ‘नए राज्यों के गठन, क्षेत्रों, सीमाओं या मौजूदा राज्यों के नामों में बदलाव’ की अनुमति देता है. इससे संघवाद और निर्वाचित राज्य विधायिकाओं के अधिकारों को गंभीर नुकसान हो सकता है.’
एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ‘राज्य को डिग्रेड करके केंद्र शासित प्रदेश बनाना जम्मू कश्मीर के लोगों के साथ एक बड़ा धोखा है और यह केंद्र सरकार को अन्य राज्यों को केंद्र शासित प्रदेश बनाने से नहीं रोकेगा.’
उन्होंने सोशल साइट एक्स पर लिखा, ‘स्पष्ट कर दूं कि बोम्मई फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संघवाद संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है. संघवाद का अर्थ है कि राज्य की अपनी आवाज है और अपने क्षेत्र में उसे कार्य करने की पूर्ण स्वतंत्रता है. ऐसा कैसे हो सकता है कि विधानसभा की जगह संसद बोल सकती है? ऐसा कैसे हो सकता है कि संसद उस प्रस्ताव को पारित करे, जिसे संविधान में विधानसभा द्वारा पारित किए जाने का उल्लेख है? मेरे लिए, जिस तरह से 370 को हटाया गया वह संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन था.’
#Article370
1. In 2019, the CJI spoke at a seminar and said that “public deliberation will always be a threat to those who achieved power in its absence.” The question is whether you can abrogate the special status of a state by putting the whole state in curfew, while it is…— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) December 11, 2023
उन्होंने कहा, ‘मैंने एक बार पहले यह कहा था और इसे फिर से कहूंगा. एक बार इसे वैध कर दिया गया, तो केंद्र सरकार को चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद या मुंबई को केंद्र शासित प्रदेश बनाने से कोई नहीं रोक सकता. लद्दाख को देखिए, इसे उपराज्यपाल चला रहे हैं और यहां कोई लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व नहीं है.’
शिवसेना जैसे दलों ने फैसले का स्वागत किया है, लेकिन जल्द से जल्द चुनाव कराने की मांग की है.
जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक 2023 पर राज्यसभा में बोलते हुए शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि उनकी पार्टी शीर्ष अदालत के फैसले का ‘तहे दिल से स्वागत करती है’ और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को याद दिलाया कि 2019 में विधेयक पेश करते समय उन्होंने शांति बहाल करने और जल्द से जल्द चुनाव कराने का वादा किया था.
Wholeheartedly welcome the SC decision on Article 370. Now I hope with this decision, we would have elections announced for J&K immediately and ensure that democratic rights and voices of the citizens are heard.
— Priyanka Chaturvedi🇮🇳 (@priyankac19) December 11, 2023
एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने लिखा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ ही अब तत्काल चुनावों की घोषणा की जानी चाहिए ‘और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों और आवाज़ों को सुना जाए.’
कांग्रेस ने भी सितंबर 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया.
चिदंबरम ने कहा, ‘कांग्रेस ने हमेशा केंद्र शासित जम्मू कश्मीर के पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग की है. हम इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं. पूर्ण राज्य का दर्जा तुरंत बहाल किया जाना चाहिए. लद्दाख के लोगों की आकांक्षाएं भी पूरी होनी चाहिए. हम विधानसभा चुनाव कराने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का स्वागत करते हैं. हालांकि, हमारा मानना है कि चुनाव तुरंत होने चाहिए.’
आम आदमी पार्टी (आप), जिसने 2019 में अनुच्छेद 370 पर केंद्र सरकार के कदम का स्वागत किया था, ने केंद्र शासित प्रदेशों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
इस बीच, सोमवार को राज्यसभा में जम्मू कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक-2023 पर चर्चा के दौरान काफी हंगामा हुआ.
विपक्षी सदस्यों ने जब शीर्ष अदालत के फैसले पर सवाल उठाए तो राज्यसभा अध्यक्ष और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि फैसले के खिलाफ बोलना ठीक नहीं है. जब न्यायपालिका ने किसी विशेष मुद्दे पर व्यापक और निर्णायक रूप से विचार किया है तो हमें उसका पालन करने की जरूरत है. देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ कोई कैसे बोल सकता है? हम इस तरह एक फैसले का उपहास नहीं उड़ा सकते.
इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फैसले की सराहना की है.
उन्होंने सोमवार को एक्स पर लिखा, अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आज का निर्णय ऐतिहासिक है, जो 5 अगस्त 2019 को संसद में लिए गए फैसले पर संवैधानिक मुहर लगाता है. इसमें जम्मू कश्मीर और लद्दाख के हमारे भाई-बहनों के लिए उम्मीद, उन्नति और एकता का एक सशक्त संदेश है. माननीय कोर्ट के इस फैसले ने हमारी राष्ट्रीय एकता के मूल भाव को और मजबूत किया है, जो हर भारतवासी के लिए सर्वोपरि है.
आर्टिकल 370 हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आज का निर्णय ऐतिहासिक है, जो 5 अगस्त, 2019 को संसद में लिए गए फैसले पर संवैधानिक मुहर लगाता है। इसमें जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के हमारे भाई-बहनों के लिए उम्मीद, उन्नति और एकता का एक सशक्त संदेश है। माननीय कोर्ट के इस फैसले ने हमारी…
— Narendra Modi (@narendramodi) December 11, 2023
उन्होंने कहा, मैं जम्मू कश्मीर और लद्दाख के अपने परिवारजनों को विश्वास दिलाना चाहता हूं कि आपके सपनों को पूरा करने के लिए हम हर तरह से प्रतिबद्ध हैं. हम यह सुनिश्चित करने के लिए संकल्पबद्ध हैं कि विकास का लाभ समाज के हर वर्ग तक पहुंचे. अनुच्छेद 370 का दंश झेलने वाला कोई भी व्यक्ति इससे वंचित न रहे.
उन्होंने आगे कहा, आज का निर्णय सिर्फ एक कानूनी दस्तावेज ही नहीं है, बल्कि यह आशा की एक बड़ी किरण भी है. इसमें उज्ज्वल भविष्य का वादा है, साथ ही एक सशक्त और एकजुट भारत के निर्माण का हमारा सामूहिक संकल्प भी है.
इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.