भाजपा सांसद और क़ानून पर संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष सुशील कुमार मोदी ने राज्यसभा में शीर्ष अदालत और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की संपत्ति की घोषणा की ज़रूरत का मुद्दा उठाते हुए कहा कि जिस तरह विधायक-सांसदों के बारे में जानना जनता का हक़ है, वैसे ही अदालतों में मुक़दमा लड़ने वाले वादी को भी न्यायाधीशों की संपत्ति जानने का अधिकार है.
नई दिल्ली: भाजपा सांसद और कानून पर संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष सुशील कुमार मोदी ने सोमवार को कहा कि सांसदों, विधायकों और सरकारी अधिकारियों की तरह सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को भी अनिवार्य रूप से अपनी संपत्ति का खुलासा करना चाहिए.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान बोलते हुए सुशील मोदी ने ‘शीर्ष अदालत और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की संपत्ति की घोषणा की जरूरत’ का मुद्दा उठाया.
उन्होंने कहा कि आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों को सेवा में आने पर और उसके बाद हर साल उनकी संपत्ति का खुलासा करना होता है.
उन्होंने कहा, ‘भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक भी संपत्ति की घोषणा करते हैं. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, विधायक और सांसद उम्मीदवारों को चुनावी हलफनामे में अपनी संपत्ति की घोषणा करनी होती है और फिर निर्वाचित होने के बाद उन्हें हर साल घोषणाएं जमा करनी होती हैं.’
सुशील मोदी ने कहा कि सांसदों और आईएएस अधिकारियों की तरह न्यायाधीशों के लिए भी एक तंत्र होना चाहिए. उनके इस सुझाव को सदन में सांसदों ने सराहा.
उन्होंने कहा कि या तो सरकार को मौजूदा कानून में संशोधन करना चाहिए या संशोधन लाना चाहिए या कॉलेजियम को इसे अनिवार्य बनाने के लिए एक तंत्र विकसित करना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘सार्वजनिक कार्यालय वाले और सरकारी खजाने से वेतन लेने वाले किसी भी व्यक्ति को अनिवार्य रूप से अपनी संपत्तियों का वार्षिक विवरण घोषित करना चाहिए, भले ही वे किसी भी पद पर हों. जैसे मतदाताओं को विधायकों और सांसदों की संपत्ति जानने का अधिकार है, वैसे ही वादियों को जजों की संपत्ति जानने का अधिकार है. इससे न्यायिक प्रणाली में जनता का भरोसा और मजबूत होगा. यदि टेंडर देने का निर्णय लेने वाले मंत्री को अपनी संपत्ति का खुलासा करना है, तो उस न्यायाधीश को क्यों नहीं जो यह तय करता है कि मंत्री का निर्णय सही है या गलत. दोनों सार्वजनिक प्राधिकार हैं जो जनता के काम में लगे हैं.’
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों द्वारा संपत्ति के स्वैच्छिक खुलासे की व्यवस्था है, लेकिन सोमवार सुबह देखे जाने तक शीर्ष अदालत की वेबसाइट को 2018 के बाद अपडेट नहीं किया गया था और केवल पांच उच्च न्यायालयों की वेबसाइटों पर कुछ न्यायाधीशों के कुछ विवरण थे.