भारतीय दंड संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की जगह तीन नए विधेयक क्रमश: भारतीय न्याय संहिता विधेयक, भारतीय साक्ष्य अधिनियम विधेयक और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक लाए गए हैं. विशेषज्ञ इन विधेयकों और उनके द्वारा भारत की न्याय प्रणाली में लाए जाने वाले बदलावों को लेकर चिंतित हैं.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने मंगलवार (12 दिसंबर) को गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति द्वारा अनुशंसित बदलावों के लिए तीन नए आपराधिक कानून विधेयकों को वापस लेने के बाद फिर से पेश किया.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि विधेयकों को फिर से पेश किया गया, क्योंकि स्थायी समिति ने कई सुझाव दिए थे और विभिन्न आधिकारिक संशोधनों को आगे बढ़ाने के बजाय, नए विधेयक पेश किए गए हैं.
इन तीन नए विधेयकों पर चर्चा गुरुवार (14 दिसंबर) को होगी, ताकि विपक्षी सदस्यों को इनमें किए गए बदलावों का अध्ययन करने के लिए 48 घंटे का समय मिल सके.
शाह ने कहा, ‘अधिकतर व्याकरण संबंधी त्रुटियां हैं और लगभग चार से पांच बदलाव हैं. लेकिन हम लंबी चर्चा के लिए तैयार हैं और अगर विपक्ष के सदस्य ऐसे बदलावों का सुझाव देते हैं, जिन्हें शामिल करने की आवश्यकता है तो उन्हें संशोधनों के माध्यम से किया जा सकता है.’
विधेयकों पर मतदान और सरकार का जवाब शुक्रवार (15 दिसंबर) को होने की उम्मीद है.
भारतीय दंड संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की जगह क्रमश: नए तीन विधेयक भारतीय न्याय संहिता विधेयक, भारतीय साक्ष्य अधिनियम विधेयक और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक लाए गए हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, भाजपा के सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने कहा था कि सरकार को ‘मानसिक बीमारी’ के बजाय ‘विक्षिप्त दिमाग’ शब्द को वापस लाना चाहिए, क्योंकि मानसिक बीमारी का अर्थ ‘बहुत व्यापक’ है.
समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘समिति ने तदनुसार सिफारिश की है कि इस संहिता में ‘मानसिक बीमारी’ शब्द को जहां कहीं भी हो, उसे ‘विक्षिप्त दिमाग’ में बदल दिया जा सकता है, क्योंकि वर्तमान व्यक्ति परीक्षण चरण के दौरान समस्याएं पैदा कर सकता है, क्योंकि एक आरोपी व्यक्ति यह दिखा सकता है कि अपराध के समय वह शराब या नशीली दवाओं के प्रभाव में था और उस पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, भले ही उसने नशे के बिना अपराध किया हो.’
समिति ने कहा था कि नए विधेयक में अभी भी व्यभिचार (Adultery) को अपराध मानने वाली धारा शामिल होनी चाहिए – एक ऐसा अधिनियम जिसे 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था. हालांकि द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सरकार ने इस सिफारिश को स्वीकार नहीं किया है.
विशेषज्ञ नए आपराधिक विधेयकों और उनके द्वारा भारत की न्याय प्रणाली में लाए जाने वाले बदलावों को लेकर चिंतित हैं.
द वायर के लिए लिखे गए एक लेख में अधिवक्ता और कानूनी शिक्षाविद जी. मोहन गोपाल ने कहा था, ‘अगस्त, 2023 में संसद में पेश किए गए तीन विधेयकों में आपराधिक कानून में बारह बदलाव सरकार की शक्ति में और मजबूती प्रदान करेंगे. वह जब चाहे असहमति और विरोध को चुप करा सकती है और सार्वजनिक चर्चा बंद करा सकती है और उन सभी चैनलों को बंद करा सकती है, जो लोगों तक विरोधाभासी समाचार या विचार पहुंचाते हैं.’
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