जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले को बरक़रार रखने के शीर्ष अदालत के फैसले पर निराशा व्यक्त करते हुए केंद्रशासित प्रदेश के राजनीतिक दलों के नेताओं ने कहा कि फैसले वाले दिन उन्हें नज़रबंद कर दिया गया था. नेताओं ने कहा कि यह फैसला अप्रत्याशित नहीं था.
नई दिल्ली: भारत संघ के साथ जम्मू-कश्मीर के संवैधानिक संबंधों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बीते सोमवार (11 दिसंबर) को केंद्र शासित प्रदेश में शांत और सधी हुई प्रतिक्रिया देखी गई.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला सुनाए जाने के बाद पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने एक वीडियो संबोधन जारी किया.
उन्होंने कहा, ‘ये हमारी हार नहीं है, बल्कि भारत के विचार (Idea of India) की हार है. इस मुल्क की हार है. धोखा उन्होंने किया, हमने तो नहीं किया. अनुच्छेद 370 को ‘अस्थायी’ बताते हुए उन्होंने देश की कमजोर कर दिया, जबकि उन शक्तियों को बल मिला है, जिन्होंने जम्मू कश्मीर के भारत में विलय को ‘अस्थायी’ बताया था.’
The people of J&K are not going to lose hope or give up. Our fight for honour and dignity will continue regardless. This isn’t the end of the road for us. pic.twitter.com/liRgzK7AT7
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) December 11, 2023
यह आरोप लगाते हुए कि उन्हें सोमवार को नजरबंद कर दिया गया था, महबूबा ने कहा, ‘संसद में केंद्र सरकार का अवैध निर्णय (5 अगस्त, 2019 को) और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे दी गई कानूनी मंजूरी भारत के विचार के लिए मौत की सजा से कम नहीं है, लेकिन हम अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्वक लड़ाई जारी रखेंगे.’
महबूबा जम्मू कश्मीर के उन तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों में शामिल थीं, जिन्हें जम्मू कश्मीर को विभाजित करने और इसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने के केंद्र सरकार के फैसले से पहले अगस्त 2019 में ऐहतियातन हिरासत में ले लिया गया था.
अदालत के फैसले के बाद पीडीपी ने जम्मू कश्मीर के लोगों के साथ एकजुटता दिखाते हुए एक सप्ताह के लिए सभी राजनीतिक गतिविधियों को निलंबित कर दिया है.
जम्मू कश्मीर के एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी आरोप लगाया कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले सोमवार सुबह घर में नजरबंद कर दिया गया था.
सोशल साइट एक्स पर एक लाइव प्रसारण में उमर ने कहा कि उनके श्रीनगर स्थित घर के मुख्य द्वार पर ताला लगा दिया गया था और उन्हें मीडिया से बात करने से रोक दिया गया था. उन्होंने दावा किया कि अधिकारियों ने मीडियाकर्मियों को लौटा दिया.
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) December 11, 2023
उन्होंने कहा, ‘हमने न्याय की उम्मीद के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. मैं अदालत के फैसले का सम्मान करता हूं. हम असफल हो सकते हैं, फैसला निराशाजनक हो सकता है, लेकिन यह एक अस्थायी धक्का है. हमारी लड़ाई राजनीतिक है और हम इसे कानून के दायरे में लड़ेंगे.’
उन्होंने आगे कहा, ‘भाजपा 70 साल बाद अपने राजनीतिक मकसद को हासिल करने में सफल रही. हम भी राजनीतिक रूप से प्रयास करते रहेंगे कि 5 अगस्त 2019 को जो कुछ भी हमसे छीना गया, वह हमें वापस मिल जाए. दोबारा अदालत का दरवाजा खटखटाना संभव है या नहीं, यह हमारे वकीलों द्वारा फैसले के विवरण पर गौर करने के बाद तय किया जाएगा.’
जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने और केंद्र सरकार को अगले साल सितंबर तक केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव कराने के निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अब्दुल्ला ने कहा, ‘चुनाव कोई गंभीर मुद्दा नहीं है और राज्य का दर्जा भी हमारे लिए कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है. हमें इस तरह के फैसले की उम्मीद नहीं थी, लेकिन शायद हम अगली बार सफल होंगे.’
एक वीडियो संबोधन में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने मुफ्ती और अब्दुल्ला के ‘नजरबंद’ करने के दावों को खारिज करते हुए उन्हें ‘पूरी तरह से निराधार’ करार दिया. उन्होंने कहा, ‘राजनीतिक कारणों से किसी को भी नजरबंद या गिरफ्तार नहीं किया गया है. यह अफवाह फैलाने का प्रयास है.’
कश्मीर के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व के गृह क्षेत्र श्रीनगर जिले की पुलिस ने भी दावा किया कि किसी को भी नजरबंद नहीं किया गया था. हालांकि, मीडियाकर्मियों को गुपकर रोड से दूर भेज दिया गया, जहां अब्दुल्ला अपने पिता और लोकसभा सांसद फारूक अब्दुल्ला के साथ रहते हैं.
माकपा नेता एमवाई तारिगामी ने भी कहा कि उन्हें उनके आवास से ‘बाहर निकलने की अनुमति नहीं’ दी गई और मीडिया के दौरे पर भी रोक लगा दी गई.
I am not permitted to move out of my residnece. Media visits are prohibited. An armoured vehicle remains stationed outside my gate. pic.twitter.com/isvbqxUXL6
— M Y Tarigami (@tarigami) December 11, 2023
उदारवादी हुर्रियत के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक ने कहा कि फैसला ‘दुखद है लेकिन विशेष रूप से वर्तमान परिस्थितियों में अप्रत्याशित नहीं है.’
उन्होने कहा, ‘वे लोग जिन्होंने उपमहाद्वीप के विभाजन के समय जम्मू कश्मीर के विलय को सुगम बनाया और भारतीय नेतृत्व द्वारा उन्हें दिए गए वादों और आश्वासनों में अपना विश्वास दिखाया, उन्हें गहरा विश्वासघात महसूस करना चाहिए.’
कश्मीर घाटी के कुछ हिस्सों में सोमवार को सुरक्षा के कड़े कदम उठाए गए थे. कई स्थानों पर जांच चौकियां स्थापित की गईं थीं, जहां सुरक्षाकर्मियों ने वाहनों को रोका और आगे बढ़ने की अनुमति देने से पहले यात्रियों की तलाशी ली.
श्रीनगर शहर में एक व्यवसायी ने नाम न छापने की शर्त पर द वायर को बताया, ‘(कश्मीर में) कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला सुनाए जाने से पहले ही फैसले का सही अनुमान लगा लिया था. किसी अलग फैसले की उम्मीद नहीं थी और हम इसे बदलने के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं.’
पूर्व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने भी दावा किया कि जम्मू कश्मीर के लोग सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश नहीं हैं.
आजाद ने संवाददाताओं से कहा, ‘शीर्ष न्यायालय, जिसका कोई राजनीतिक संबंध नहीं है, से हमारी आखिरी उम्मीद थी. अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए जम्मू कश्मीर की ऐतिहासिक विशेषताएं थीं और अदालत के फैसले से हमारे लोगों और हमारी अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा.’
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन, जिन्हें भी मीडिया को संबोधित करने से रोका गया, ने फैसले पर निराशा व्यक्त की.
जम्मू़ कश्मीर के अंतिम डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह के पोते कर्ण सिंह ने जम्मू कश्मीर के लोगों से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करने और चुनावों पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया, जिनमें चार साल से अधिक की देरी हो चुकी है.
हालांकि, जम्मू के कुछ हिस्सों में खुशी के दृश्य देखे गए, जहां कुछ भाजपा नेता और कार्यकर्ता सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जश्न मनाने के लिए सड़कों पर नाचते और मिठाइयां बांटते नजर आए.
मालूम हो कि बीते 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और सूबे को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के निर्णय करने वाले संवैधानिक आदेश को बरकरार रखा है.
इस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 2 अगस्त, 2023 से शुरू हुई सुनवाई के बाद 5 सितंबर को अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
निर्णय सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा था कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था और इसे निरस्त करने वाला संवैधानिक आदेश पूरी तरह से वैध है.
इसके साथ ही अदालत ने चुनाव आयोग को 30 सितंबर, 2024 से पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया है.
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