ओडिशा: ज़मीन मुआवज़े की मांग को लेकर रेंगाली बांध पर ‘जल सत्याग्रह’ जारी

ओडिशा के अंगुल ज़िले के रेंगाली बांध पर 45 साल पहले बांध के निर्माण के लिए दी गई ज़मीन के लिए पर्याप्त मुआवज़े की मांग को लेकर क़रीब सौ लोग पिछले 12 दिनों से जल सत्याग्रह कर रहे हैं. उनकी मांग उस भूमि रिकॉर्ड (पट्टा) को नियमित करने की भी है, जो उन्हें पुनर्वास उद्देश्य के लिए सरकार से मिला था.

रेंगाली बांध पर जल सत्याग्रह करते लोग. (फोटो साभार: satyapatha.com)

ओडिशा के अंगुल ज़िले के रेंगाली बांध पर 45 साल पहले बांध के निर्माण के लिए दी गई ज़मीन के लिए पर्याप्त मुआवज़े की मांग को लेकर क़रीब सौ लोग पिछले 12 दिनों से जल सत्याग्रह कर रहे हैं. उनकी मांग उस भूमि रिकॉर्ड (पट्टा) को नियमित करने की भी है, जो उन्हें पुनर्वास उद्देश्य के लिए सरकार से मिला था.

रेंगाली बांध पर जल सत्याग्रह करते लोग. (फोटो साभार: satyapatha.com)

नई दिल्ली: ओडिशा के अंगुल जिले के रेंगाली बांध पर 45 साल पहले बांध के निर्माण के लिए दी गई जमीन के लिए पर्याप्त मुआवजे की मांग को लेकर लगभग 100 लोग पिछले 12 दिनों से जल सत्याग्रह कर रहे हैं.

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, राजधानी भुवनेश्वर से लगभग 250 किमी दूर अंगुल जिले के पल्लाहारा ब्लॉक के अंतर्गत गुरुसुलेई में रेंगाली बांध के पानी में जल सत्याग्रह कर रहे प्रदर्शनकारी दिन में घुटनों तक और कभी गर्दन तक पानी में डूबे खड़े रहते हैं और रात में तट पर लौट आते हैं.

ब्राह्मणी नदी पर बना रेंगाली बांध हीराकुंड जलाशय के बाद दूसरा सबसे बड़ा जलाशय है.

मुआवजे के अलावा उन्होंने अपने नाम पर भूमि रिकॉर्ड (पट्टा) को नियमित करने की भी मांग की, जो उन्हें बैराज के निर्माण के लिए दी गई जमीन के बदले पुनर्वास उद्देश्यों के लिए सरकार से मिला था.

जल सत्याग्रहियों में से एक 71 वर्षीय गोपाल चंद्र बिस्वाल ने अखबार को बताया, ‘मुझे अभी भी वे दिन याद हैं जब ब्राह्मणी नदी पर रेंगाली बांध के निर्माण के लिए हमारे परिवार को बेदखल कर दिया गया था. हमारे परिवार ने 47 एकड़ जमीन सरकार को दी थी. उस समय राज्य सरकार ने औने-पौने दाम पर जमीन ले ली थी. पुलिस के अत्याचारों के डर से दूसरों की तरह हमारा परिवार भी उस समय चुप रहा.’

बिस्वाल एक किसान हैं. उन्होंने आगे कहा, ’47 एकड़ जमीन के बदले राज्य सरकार ने हमें लगभग 2 लाख रुपये और 6 एकड़ जमीन दी थी. भूमि हमारी जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रही है. इसके अलावा हमारा उचित पुनर्वास नहीं किया गया है और हम बार-बार इस मुद्दे को उठा रहे हैं. लेकिन हमारी मांगों पर अभी तक ध्यान नहीं दिया गया है.’

पल्लाहारा के विस्थापित लोगों के अध्यक्ष डॉ. संतोष कुमार देहुरी ने कहा, ‘263 गांवों के 13,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं. राज्य सरकार ने 35,128.69 एकड़ जमीन छीन ली. लोगों को पर्याप्त मुआवजा नहीं दिया गया.’

देहुरी ने कहा, ‘हम पर्याप्त मुआवजे का मुद्दा लगातार उठाते रहे हैं. एक विरोध के बाद मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने 2010 में रेंगाली परियोजना की वजह से भूमि खोने वालों के लिए 50,000 रुपये प्रति एकड़ देने की घोषणा की थी. लेकिन सरकार ने अभी तक वह मुआवजा जारी नहीं किया है. इस बार हमने 1 दिसंबर से अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू किया.’

एक अन्य आंदोलनकारी अशोक मोहंती ने कहा, ‘पुनर्वास के दौरान राज्य सरकार ने जमीन दी और K2 पट्टे (अस्थायी पट्टे) जारी किए. चूंकि अस्थायी पट्टों को स्थायी पट्टों में परिवर्तित नहीं किया गया है, इसलिए हम न तो जमीन बेच सकते हैं और न ही इसका किसी उद्देश्य के लिए उपयोग कर सकते हैं. अगर हमें अपना धान मंडी (डिपो) में बेचना है तो भी स्थायी पट्टे की जरूरत होती है.’

जमीन गंवाने वालों ने धमकी दी है कि यदि सरकार प्रति एकड़ 50,000 रुपये देने और भूमि रिकॉर्ड को अस्थायी से स्थायी में परिवर्तित करने के मुद्दे को हल करने में विफल रहती है तो वे ‘जल समाधि’ ले लेंगे.

केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के साथ यह मुद्दा उठाया है और उनसे उनकी लंबित मांगों को पूरा करने के लिए कदम उठाने का आग्रह किया है.

यह पूछे जाने पर कि उन्होंने यह मुद्दा अब क्यों उठाया, एक आंदोलनकारी ने कहा, ‘यह चुनाव का समय है. सभी राजनीतिक दल हमारा समर्थन करेंगे. उम्मीद है कि सरकार हमारी बात सुनेगी. हम अवसर चूकना नहीं चाहते.’

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सोमवार को मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को पत्र लिखकर रेंगाली बहुउद्देश्यीय परियोजना के विस्थापित लोगों की सात सूत्री मांगों को पूरा करने और मुआवजा बढ़ाने का अनुरोध किया था.

प्रधान ने कहा कि रेंगाली बांध परियोजना, जिसे हीराकुंड बांध के बाद राज्य में दूसरी सबसे बड़ी परियोजना के रूप में जाना जाता है, ओडिशा को सिंचाई और जलविद्युत उत्पादन में मदद कर रही है.

प्रधान ने लिखा, ‘लेकिन जो लोग बांध परियोजना के कारण विस्थापित हुए हैं वे अभी भी सम्मानजनक जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.’ उन्होंने कहा कि 1973 में बने रेंगाली बांध के कारण देवगढ़ जिले और अंगुल जिले के पल्लाहारा और तालचेर ब्लॉक के 263 गांवों के 13,000 परिवार प्रभावित हुए थे.

प्रधान ने विस्थापित लोगों के प्रति राज्य सरकार पर ‘सौतेला रवैया’ अपनाने का आरोप लगाया.

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि सिंचाई और जलविद्युत उत्पादन में परियोजना के लाभों के बावजूद विस्थापित लोगों की स्थिति वैसी ही बनी हुई है. प्रधान ने स्थायी भूमि अधिकार, मुआवजा और प्रत्येक विस्थापित परिवार के एक सदस्य के लिए स्थायी नौकरी सहित सात सूत्रीय मांगों को पूरा करने की मांग की है.