सुप्रीम कोर्ट ने बसपा सांसद अफ़ज़ल अंसारी की दोषसिद्धि को निलंबित किया

बसपा सांसद अफ़ज़ल अंसारी को 1 मई 2023 को लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था. वह उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. नवंबर 2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या और जनवरी 1997 में एक विहिप नेता के अपहरण और हत्या के मामले में अंसारी बंधुओं के ख़िलाफ़ गैंगस्टर एक्ट का केस दर्ज किया गया था.

अफजल अंसारी. (फोटो साभार: एएनआई)

बसपा सांसद अफ़ज़ल अंसारी को 1 मई 2023 को लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था. वह उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. नवंबर 2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या और जनवरी 1997 में एक विहिप नेता के अपहरण और हत्या के मामले में अंसारी बंधुओं के ख़िलाफ़ गैंगस्टर एक्ट का केस दर्ज किया गया था.

बसपा सासंद अफजल अंसारी. (फोटो साभार: एएनआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 2:1 के बहुमत से यूपी गैंगस्टर एक्ट के तहत बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सांसद अफजल अंसारी की सजा को निलंबित कर दिया है, जिससे उनकी लोकसभा सदस्यता बहाल करने की अनुमति मिल गई है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि वह सदन की कार्यवाही में भाग ले सकते हैं, लेकिन वोट नहीं डाल सकते या भत्ते प्राप्त नहीं कर सकते.

शीर्ष अदालत ने आगे स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट के समक्ष अपनी आपराधिक अपील के लंबित रहने के दौरान अंसारी को भविष्य में चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा. अगर वह निर्वाचित होते हैं, तो ऐसा चुनाव प्रथम आपराधिक अपील के परिणाम के अधीन होगा.

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से 30 जून 2024 से पहले उनकी आपराधिक अपील पर निर्णय लेने को भी कहा.

अफजल अंसारी को 1 मई 2023 को लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था. वह उत्तर प्रदेश के गाजीपुर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.

नवंबर 2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या और जनवरी 1997 में विश्व हिंदू परिषद के नेता नंद किशोर रूंगटा के अपहरण और हत्या के मामले में अंसारी बंधुओं के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट का मामला दर्ज किया गया था.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए बहुमत के फैसले में कहा गया कि दोषसिद्धि पर रोक केवल असाधारण परिस्थितियों में ही होनी चाहिए, खासकर जब दोषसिद्धि को लागू करने की अनुमति देने से अपूरणीय क्षति होगी और बाद में बरी होने पर दोषी को मुआवजा नहीं दिया जा सकता है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने कहा, ‘हम ऐसा मुख्य रूप से इस कारण से कहते हैं कि इस तरह की सजा को निलंबित करने से इनकार करने के संभावित प्रभाव बहुआयामी हैं. एक ओर यह अपीलकर्ता के निर्वाचन क्षेत्र को सदन में उसके वैध प्रतिनिधित्व से वंचित कर देगा, क्योंकि वर्तमान लोकसभा के शेष कार्यकाल को देखते हुए उपचुनाव नहीं कराया जा सकता है. इसके विपरीत, यह अपीलकर्ता को आरोपों के आधार पर अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने की क्षमता में भी बाधा डालेगा, जिसकी सत्यता की जांच हाईकोर्ट के समक्ष लंबित प्रथम आपराधिक अपील में पूरे साक्ष्य के पुन: मूल्यांकन पर की जानी है.’

अदालत ने यह भी कहा कि दोषी पाए जाने पर अपीलकर्ता को 10 साल तक चुनाव लड़ने से रोका जाएगा.

‘नैतिक पतन’ और राजनीति के अपराधीकरण के मुद्दे पर अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के आपराधिक इतिहास पर पर्याप्त संदेह हैं.

शीर्ष अदालत ने कहा कि उसे कानून का सख्ती से पालन करना होगा.

पीठ में शामिल असहमत जज जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा कि राजनेताओं को कोई तरजीह नहीं दी जा सकती.

उन्होंने कहा, ‘तथ्य यह है कि एक सांसद/विधायक द्वारा अदालत का दरवाजा खटखटाया जाता है, इसे इतने महत्व और अपरिहार्यता के साथ नहीं देखा जाना चाहिए कि उसकी स्थिति उसके पक्ष में झुक जाए. क्या यह उचित होगा कि एक दोषी, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो और किसी भी पद पर क्यों न हो, उसे एक विचाराधीन कैदी की तुलना में तरजीह दी जाए?’

उन्होंने आगे कहा, ‘क्या अदालतों को दोषसिद्धि पर रोक लगाने या अपील के तहत आदेश के निष्पादन को निलंबित करने के रास्ते से हटना चाहिए, जब रोक नहीं लगने पर दोषी का कोई मौलिक या अन्य संवैधानिक अधिकार निरस्त नहीं होगा? हमारे विचार से जैसा कि उपरोक्त कानूनी और संवैधानिक ढांचे के माध्यम से पता लगाया गया है, इनके जवाब निश्चित रूप से नकारात्मक होंगे.’

जस्टिस दत्ता ने एक सांसद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने की वकालत की, क्योंकि एक दोषी को संसद में भाग लेने की अनुमति देना संसद की गरिमा के लिए अपमानजनक है.

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