खाद्य सुरक्षा और पोषण पर संयुक्त राष्ट्र की 2023 की रिपोर्ट में 2020-22 के दौरान भारत की कुपोषित आबादी का अनुपात 16.6 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है. साथ ही, रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2021 में भारत के 1 अरब से अधिक लोग स्वस्थ आहार का इंतजाम करने में असमर्थ थे.
नई दिल्ली: खाद्य सुरक्षा और पोषण पर संयुक्त राष्ट्र की 2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि 74.1 फीसदी भारतीय या भारत के एक अरब से अधिक लोग 2021 में स्वस्थ आहार का इंतजाम करने में असमर्थ थे. यह आंकड़े भारत सरकार के उस दावे पर सवाल उठाते हैं कि देश में केवल 81.3 करोड़ लोगों की ही खाद्य सहायता की ज़रूरत है.
द टेलीग्राफ के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र की पांच एजेंसियों की यह रिपोर्ट इस सप्ताह की शुरुआत में जारी की गई थी. रिपोर्ट में 2020-22 के दौरान भारत की कुपोषित आबादी का अनुपात 16.6 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, तुलना करें तो बांग्लादेश में लगभग 66 प्रतिशत, पाकिस्तान में 82 प्रतिशत, ईरान में 30 प्रतिशत, चीन में 11 प्रतिशत, रूस में 2.6 प्रतिशत, अमेरिका में 1.2 प्रतिशत और ब्रिटेन में 0.4 प्रतिशत लोग 2021 में स्वस्थ आहार लेने में असमर्थ थे.
यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) और अन्य एजेंसियों द्वारा तैयार की गई है. केंद्र ने देश में अल्पपोषित लोगों के अनुपात के रूप में 16.6 प्रतिशत के एफएओ रिपोर्ट के अनुमान को चुनौती देते हुए कहा है कि यह आंकड़ा एक सर्वेक्षण पर आधारित है जिसमें आठ प्रश्न और 3,000 उत्तरदाताओं का सैंपल सर्वे शामिल था.
केंद्र ने कहा है, ‘भारत जैसे बड़े देश के लिए एक छोटे से नमूने से एकत्र किए गए डेटा का उपयोग भारत में अल्पपोषितों (जनसंख्या) के अनुपात की गणना करने के लिए किया गया है, जो न केवल गलत और अनैतिक है, बल्कि इसमें स्पष्ट पूर्वाग्रह की भी बू आती है.’
इससे पहले केंद्र ने अक्टूबर में ग्लोबर हंगर इंडेक्स (वैश्विक भुखमरी सूचकांक) में भारत की कम रैंकिंग – 125 देशों में 111वां पायदान – को दुर्भावनापूर्ण और त्रुटिपूर्ण बताया था.
अपनी खाद्य सहायता योजनाओं में, सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) का हवाला दिया है जो 81.3 करोड़ लोगों को कवर करते हुए प्रति परिवार प्रति माह 5 किलो मुफ्त खाद्यान्न – चावल या गेहूं – प्रदान करती है. पिछले महीने केंद्रीय कैबिनेट ने इस योजना को पांच साल के लिए मंजूरी दी थी.
हार्वर्ड विश्वविद्यालय में जनसंख्या स्वास्थ्य और भूगोल के प्रोफेसर एसवी सुब्रमण्यम, जो भारत में भोजन की कमी का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों में से हैं, ने द टेलीग्राफ को बताया, ‘भारत में भूख और भोजन की कमी के अनुमान के बारे में केंद्र की वाजिब चिंताओं के आलोक में, 81.3 करोड़ लोगों को खाद्य सहायता की जरूरत का अनुमान भी आश्चर्यजनक रूप से अधिक है, क्योंकि यह अल्पपोषण की व्यवहारिक संख्या से अधिक है.’
केंद्र ने कहा है कि 81.3 करोड़ लोगों को योजना के दायरे में लाने के बीच राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने पीएमजीकेएवाई के तहत खाद्यान्न वितरण के लिए लगभग 80.4 करोड़ लाभार्थियों की पहचान की है.
वहीं, खाद्य सुरक्षा के लिए अभियान चलाने वाले एक गैर-सरकारी नेटवर्क, भोजन का अधिकार अभियान (आरएफसी) के सदस्यों, ने कहा कि एफएओ का अनुमान कि 1.043 अरब लोग स्वस्थ आहार नहीं ले सकते, यह हमारे भी आकलन के अनुरूप है कि एक अरब से अधिक लोगों को खाद्य सहायता की आवश्यकता है.
आरएफसी के राष्ट्रीय समन्वयक राज शेखर ने कहा, ‘81.3 करोड़ का अनुमान 2011 की जनगणना पर आधारित है- अगली जनगणना दो साल से लंबित है.’ उन्होंने जोड़ा, ‘नई जनगणना के बिना कई जरूरतमंद, कमजोर लोगों के पास राशन कार्ड नहीं होंगे जो उन्हें पीएमजीकेएवाई के लाभों का हकदार बनाएंगे.’
शेखर ने कहा कि आरएफसी ने कई बार सरकार को पत्र लिखकर खाद्य सहायता सामग्री में विस्तार के लिए अनुरोध किया था ताकि स्वस्थ आहार के लिए आवश्यक दाल, खाना पकाने का तेल और सब्जियों जैसी अन्य वस्तुओं को शामिल किया जा सके. उन्होंने कहा, ‘कुछ राज्यों ने ऐसी चीजें शामिल की हैं, लेकिन हमें केंद्र से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.’
भोजन की कमी की जो बात विशेषज्ञ कह रहे हैं वह केंद्र के स्वयं के राष्ट्रव्यापी पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षणों में भी सामने आई है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2021 पर आधारित एक अध्ययन में पाया गया कि सबसे गरीब 20 प्रतिशत सामाजिक-आर्थिक परिवारों में, 40 प्रतिशत से अधिक महिलाएं, यहां तक कि गर्भवती महिलाएं भी डेयरी उत्पादों का सेवन नहीं करती हैं. इसमें यह भी पाया गया कि देश में 50 प्रतिशत से अधिक महिलाएं और 40 प्रतिशत पुरुष विटामिन-ए वाले फलों का सेवन नहीं करते हैं.