यूपी: कुशीनगर में हुई ख़ुदकुशी माइक्रोफाइनेंस क़र्ज़ों में फंसे ग्रामीण गरीबों की त्रासदी की बानगी है

बीते हफ्ते कुशीनगर ज़िले के सेवरही क्षेत्र के मिश्रौली गांव की एक 30 वर्षीय आरती ने माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के एजेंट द्वारा क़र्ज़ वसूली के लिए किए जा रहे उत्पीड़न से आजिज़ आकर ज़हर खा लिया, जिसके बाद अस्पताल में उनकी मौत हो गई. गांव में ऐसी कंपनी के ऋणजाल में फंसने वाली आरती अकेली नहीं हैं. 

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ऋणजाल में फंसी मिश्रौली गांव की महिलाएं. बैकग्राउंड में लोन कार्ड. (सभी फोटो: मनोज सिंह)

बीते हफ्ते कुशीनगर ज़िले के सेवरही क्षेत्र के मिश्रौली गांव की एक 30 वर्षीय आरती ने माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के एजेंट द्वारा क़र्ज़ वसूली के लिए किए जा रहे उत्पीड़न से आजिज़ आकर ज़हर खा लिया, जिसके बाद अस्पताल में उनकी मौत हो गई. गांव में ऐसी कंपनी के ऋणजाल में फंसने वाली आरती अकेली नहीं हैं.

ऋणजाल में फंसी मिश्रौली गांव की महिलाएं. बैकग्राउंड में लोन कार्ड. (सभी फोटो: मनोज सिंह)

गोरखपुर: माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कर्ज में फंसी प्रवासी मजदूर की पत्नी 30 वर्षीय आरती ने 14 दिसंबर को जहर खाकर जान दे दी. कर्ज देने वाली माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के एजेंट कर्ज की वसूली के लिए इसी सुबह महिला के घर पहुंच गए और फिर उसके मायके पहुंचकर दबाव बनाने लगे थे. उत्पीड़न से तंग आकर महिला घर से निकल गई और जहर खाने के बाद अपने पति को फोन कर कहा कि कर्ज की किश्त न दे पाने के कारण बेइज्जती हो रही है, इसलिए अपनी जान दे रही है.

यह घटना उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के सेवरही क्षेत्र के मिश्रौली गांव की है. प्रवासी मजदूर की पत्नी की आत्महत्या की घटना में परिजनों ने थाने में माइक्रोफाइनेंस कंपनी के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाते हुए तहरीर दी है.

इस घटना के बाद मिश्रौली सहित कई गांवों में गरीब महिलाओं के माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कर्जजाल में फंसने और कर्ज अदायगी के लिए जेवर-जमीन गिरवी रखने का मामला सामने आया है. यह भी पता चला है कि माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के एजेंट रिर्जव बैंक द्वारा जारी दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर कर्ज वसूली के लिए उत्पीड़नात्मक कार्रवाई कर रहे हैं, साथ ही एक ही व्यक्ति को को कई-कई माइक्रोफाइनेंस कंपनियां ऊंचे ब्याज दर पर कर्ज दे रही हैं.

आरती को पांच माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने कृषि कार्य एवं मवेशी खरीदने के लिए कर्ज दिए थे. आरती ने कर्ज की रकम प्रधानमंत्री आवास के तहत बन रहे आवास के निर्माण में लगा दिए क्योंकि आवास निर्माण के लिए सरकार से मिले 1.20 लाख रुपये कम पड़े. एक कंपनी का कर्ज चुकाने के लिए दूसरी कंपनी और फिर तीसरी कंपनी से कर्ज लिया और फिर वह कर्जजाल के ऐसे दुष्चक्र में फंसीं कि बाहर निकलने का रास्ता खुदकुशी ही नजर आया.

आरती के पति धर्मनाथ यादव दिल्ली के नजफगढ़ में ठेके पर मजदूरी करते हैं, जहां शराब की खाली बोतलों को साफ करने का काम मिला हुआ है. चार-चार घंटे का ओवरटाइम करने के बाद भी वे महीने के 15-16 हजार रुपये ही कमा पाते हैं. इस कमाई का अधिकतर हिस्सा कर्ज चुकाने में जा रहा था, जिससे यह परिवार बुरी तरह तंग था.

आरती ने 14 दिसंबर की दोपहर जब जहर खाया तब धर्मनाथ अपने कारखाने में काम कर रहे थे. सुबह फोन पर हुई बातचीत में आरती ने कहा था कि उसी दिन कर्ज की किश्त चुकानी है, पैसा भेज दें. धर्मनाथ ने दोपहर बाद तक पैसा भेजने की बात कही लेकिन माइक्रोफाइनेंस कंपनी का एजेंट सुबह ही उसके घर पहुंच गया और कर्ज अदायगी के लिए दबाव बनाने लगा.

दबाव बनाने के लिए एजेंट आरती के मायके बेनिया गांव भी पहुंच गए. वहां से फोन आने पर आरती बेहद परेशान हो गईं और घर पर बच्चों को अकेला छोड़ निकल गईं. दोपहर बाद गांव के लोगों को पता चला कि आरती ने सेवरही के ब्रह्मस्थान जाकर जहर खा लिया। उनके मायके वाले इलाज के लिए पहले बनरहा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और फिर जिला अस्पताल ले गए जहां उसे बचाया नहीं जा सका.

धर्मनाथ बताते हैं, ‘जब उसने जहर खा के फोन किया तब मैंने कहा कि उसने ऐसा क्यों किया, मैं पैसों का इंतजाम कर रहा था. मालिक कारखानेदार ने दोपहर दो बजे तक रुपये देने को कहा है. तब आरती ने कहा कि तुम इंतजाम नहीं कर पाओगे, लोग हम पर हंसेगे. हमारी बेइज्जती हो रही है. यह सब अब सहन नहीं हो रहा.’

आरती के पति धर्मनाथ यादव.

धर्मनाथ ने बताया कि इसके बाद उनकी आरती से बात नहीं हो पाई क्योंकि फोन बंद हो गया. उसने आरती की मां नैना देवी को फोन कर यह बात बताई, जिसके बाद वे लोग ब्रह्मस्थान पहुंचे और आरती को अस्पताल ले गए. वहां उसी रात उन्होंने दम तोड़ दिया.

पत्नी के जहर खाने की बात सुनते ही धर्मनाथ तुरंत घर के लिए चल पड़ा और जेब में सिर्फ सौ रुपये थे. उन्होंने साथी मजदूर से पांच सौ रुपये मांगे और अगले दिन मिश्रौली पहुंचे.

आरती और धर्मनाथ की वर्ष 2014 में शादी हुई थी. आरती अपने पीछे पति के साथ तीन छोटे बच्चों को छोड़ गई हैं. सबसे बड़ा बेटा सात वर्ष का है. उससे छोटी दो बेटियां- चार व दो वर्ष की हैं.

धर्मनाथ नदी कटान से विस्थापित हैं. वर्ष 2013 से पहले वे अपने चार भाइयों व माता-पिता के साथ पिपराघाट में नारायणी नदी और तटबंध के बीच झोपड़ी डालकर रहा करते थे. वहां उनके पास खेती की जमीन भी थी. उनके साथ करीब 60 परिवार भी यहां रहते थे. उनके टोले का नाम नान्हू टोला था. 2013 में नारायणी नदी की कटान से नान्हू टोले के अलावा तीन और टोले- फल टोला, लोकल टोला और गोवर्धन टोला पूरी तरह उजड़ गए. घर और खेती की जमीन नदी में समा गई. सरकार की ओर से नदी कटान के विस्थापितों को बसाने का वादा किया गया लेकिन सरकार-प्रशासन की ओर से कुछ नहीं किया गया. कटान विस्थापित जहां-तहां बस गए.

धर्मनाथ और उनके भाई मिश्रौली आ गए. धर्मनाथ के पिता ब्रह्मा यादव ने करीब चार कट्ठा जमीन खरीदी. यह जमीन गड्ढे वाली थी. यही पर झोपड़ी बनाकर सभी रहने लगे.

खेती और घर की जमीन नदी में समा जाने के बाद कटान विस्थापित परिवार बेहद तंगी में आ गए. नौजवानों को मजदूरी के लिए पलायन करना पड़ा. धर्मनाथ और उनके दो बड़े भाई जगरनाथ व बैजनाथ और छोटे भाई मजदूरी करने दिल्ली चले गए. मजदूरी के पैसे से दो जून की रोटी का इंतजाम तो हो गया लेकिन उन्हें झोपड़ी में ही रहना पड़ रहा था, जिससे काफी मुश्किलें आ रही थीं.

चार भाइयों ने डेढ़ वर्ष पहले प्रधानमंत्री आवास योजना में आवास के लिए आवेदन किया. धर्मनाथ को आवास के लिए 1.20 लाख रुपये मिल गए तो उन्होंने घर बनवाना शुरू किया. गड्ढेदार जमीन के चलते नींव तक मिट्टी भरने में धर्मनाथ को काफी खर्च करना पड़ा. धर्मनाथ के अनुसार, 65 हजार रुपये केवल मिट्टी में खर्च हो गए और बाकी पैसे से केवल दीवार बन पाई. इसी दौरान आरती माइक्रोफाइनेंस कंपनियों द्वारा बनाए गए महिलाओं के समूह के संपर्क में आईं. मकान बनाने की आस में पहले 30 हजार रुपये का कर्ज लिया. हालांकि यह कर्ज उन्हें कृषि कार्य के नाम पर दिया गया. इस कर्ज से काम नहीं बना तो उसने एक-एक कर पांच माइक्रोफाइनेंस कंपनियों- चैतन्य इंडिया फिन क्रेडिट प्राइवेट लिमिटेड, भारत फाइनेंशियल इनक्लूजन लिमिटेड, सूर्योदय स्माल फाइनेंस बैंक लिमिटेड, आईआईएफएल समस्ता फाइनेंस लिमिटेड, उत्कर्ष स्माल फाइनेंस बैंक लिमिटेड से कर्ज लिया.

सूर्योदय स्माल फाइनेंस बैंक लिमिटेड ने आरती को भैंस खरीदने के नाम पर 16 फरवरी 2021 को 28 हजार रुपये का कर्ज दिया. इस कर्ज को 14 फीसदी फ्लैट ब्याज पर दिया गया था जिसे तीन मई 2023 को 1,500 रुपये की 24 किश्त में चुकाना था. आरती के घर से मिले इस कर्ज के दस्तावेज में सितंबर 2022 तक किश्तों के भुगतान की जानकारी मिलती है. इसके बाद अन्य किश्तों का भुगतान हुआ या आरती इसे चुका नहीं पायी, इस बारे में धर्मनाथ जानकारी नहीं दे पाए.

एक अन्य दस्तावेज से पता चलता है कि आरती को सूर्योदय स्माल फाइनेंस बैंक लिमिटेड ने आठ सितंबर 2022 को ‘एग्री एएच काउ’ के नाम पर 50 हजार रुपये का कर्ज दिया गया जिसे 2,700 रुपये की 24 किश्तों में अदा किया जाना था. आरती ने बीते छह दिसंबर को इस कर्ज की 2,700 रुपये की किश्त जमा की थी.

इसी तरह, आईआईएफएल समस्ता फाइनेंस लिमिटेड ने आरती को कृषि कार्य के लिए 28.25 फीसदी प्रभावी ब्याज दर पर 50 हजार रुपये का कर्ज दिया, जिसकी किश्त के 1,220 रुपये 14 दिसंबर को अदा करने थे. सनद रहे कि इसी दिन आरती ने आत्महत्या का घातक कदम उठाया. ऐसे ही उत्कर्ष स्माल फाइनेंस बैंक लिमिटेड ने आरती को तीन अगस्त 2022 को 26.88 फीसदी वार्षिक ब्याज पर एग्री इनपुट के नाम पर 30 हजार रुपये का कर्ज दिया, जिसे 730 रुपये की 52 किश्तों में चुकाया जाना था. आरती ने छह दिसंबर को इसकी किश्त भी जमा की थी और 20 दिसंबर को इसकी 35वीं किश्त जमा की जानी थी.

भारत फाइनेंशियल इनक्लूजन लिमिटेड ने आरती को 19 जनवरी 2023 को 30 हजार रुपये का ऋण दिया था, जिसकी किश्त 500 रुपये साप्ताहिक थी. आरती इस कर्ज की सात दिसंबर की किश्त नहीं चुका पाई थीं. इस तरह उसे 14 दिसंबर को इस कर्ज के एक हजार रुपये देने थे. आरती को चैतन्य इंडिया फिन क्रेडिट प्राइवेट लिमिटेड ने भी कर्ज दिया था. कर्ज की रकम के बारे में आरती के पति धर्मनाथ ठीक-ठीक बता नहीं सके.

इन सभी माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने कर्ज देते समय प्रक्रिया शुल्क व अन्य अपफ्रंट शुल्क भी लिए थे जो पांच सौ से 1,400 रुपये तक थी.

परिवार में आरती अकेली ऋणी नहीं थीं

आरती की जेठानी मीना और देवरानी राजल ने भी माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से कर्ज लिया है. मीना ने भी कर्ज की रकम को प्रधानमंत्री आवास योजना का धन मिलने की प्रत्याशा में मकान निर्माण में लगा दिया. उन्हें प्रधानमंत्री आवास भी नहीं मिला. आज उन पर करीब दो लाख रुपये का कर्ज है और उन्हें 6,700 रुपये हर महीने किश्त देने पड़ रहे है. ये किश्त हफ्तावार , पाक्षिक और मासिक हैं.

मीना कहती हैं, ‘कर्ज में ऐसे फंस गए हैं कि अब पेट काटकर जीना पड़ रहा है. हम सोचे थे कि घर बना जाएगा लेकिन घर भी नहीं बन पाया. अब लिंटर लगाने के लिए कहां से पैसा लाएंगे. अब तो दिन रात यही सोचते हैं कि किसी तरह कर्ज से छुटकारा मिल जाए. आगे से हम इसमें नहीं पड़ेंगे.’

मीना कहती हैं कि उनकी देवरानी कर्ज में डूब जाने से बहुत परेशान थीं. ‘उ बहुत परेशान रहली कि बहुतै कर्जा हो गईल. ऐही टेंशन में दिन रात नाचते रहली. कबो घर में ठीक से खाना भी नाही खा पावत रहली. हमेश किश्त क चिंता धइले रहत रहल. औरत के करेजा केतना होखे ला. ऐही टेंशन में चल गईली.’

आरती की जेठानी मीना.

मीना के पति जगरनाथ यादव भी दिल्ली में मजदूरी करते हैं. मीना की चार बेटियां हैं. मजदूरी के अलावा और कोई सहारा नहीं. नदी में समाए खेत में कभी-कभी गेहूं हो जाता है. नदी कटान के विस्थापन की पीड़ा बयां करते हुए कहती हैं, ‘खेत बारी दरिया में चल गईल. उजड़ के यहां अइलीं जा तब कर्ज क विपत आ गईल. ‘

धर्मनाथ के छोटे भाई शेषनाथ ने भी प्रधानमंत्री आवास पाने की आस में घर बनाना शुरू क्या किया और कर्ज में फंसते चले गए. उन्होंने बताया कि उनकी जमीन आठ फुट गड्ढे में हैं. इसे भरने के लिए 65 हजार रुपये लगाकर 130 ट्राली मिट्टी पटवाई. नींव चलाने में पांच क्विंटल सरिया व चार ट्राली ईंट लगे. नींव तैयार करने में ही ढाई से तीन लाख रुपये लग गए. इसके लिए उनकी पत्नी राजल देवी ने माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से एक-एक कर ढाई लाख रुपये कर्ज ले लिए. इस समय उन्हें इसे चुकाने के लिए हर महीने 12 हजार रुपये देने पड़ रहे है. पूरी कमाई कर्ज चुकाने में जा रही है.

धर्मनाथ के बड़े भाई बैजनाथ भी दिल्ली में मजदूरी करते हैं. उनकी पत्नी गुड़िया ने माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से कर्ज लिया है. वह 1,230 रुपये, 1,100 रुपये और 1,270 रुपये की तीन किश्तें हर 15 दिन पर और 3,210 रुपये की एक किश्त हर महीने भरती हैं. उन्होंने भी कर्ज की रकम मकान बनाने में लगा दी और मकान अब भी अधूरा पड़ा है.

गांव की अन्य महिलाएं भी फंसी हैं कर्ज के जाल में

गांव की ही दलित समुदाय से आने वाली आशा देवी ने एक बीघा जमीन बटहिया पर ली थी ताकि खेती कर घर का खर्च चला सके. उन्होंने खेती के लिए खाद,पानी, बीज का इंतजाम करने के लिए माइक्रोफाइनेंस कंपनी से एक लाख रुपये का कर्ज लिया. कर्ज की किश्त भरने के लिए उन्होंने फिर दो बार 50-50 हजार रुपये के कर्ज लिए. अब वे 2700, 1230, 805, 2030 और 2100 रुपये यानी हर महीने 6,765 रुपये कर्ज चुकाने में जा रहा है. उन्हें बटहिया की जमीन भी छोड़नी पड़ी है.

आशा के पति वीरेंद्र चंडीगढ़ में कबाड़ के कारखाने में काम करते हैं. उन्हें प्रधानमंत्री आवास मिला था. सरकार से मिले 1.20 लाख रुपये कम पड़े तो माइक्रोफाइनेंस कंपनी से लिए कर्ज की रकम भी उसमें लगा दी. आज यह परिवार भी बेहद तंगहाली में जी रहा है.

ऐसे ही एक अन्य महिला गुड्डी ने माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से 50 हजार, 35 हजार, 45 हजार और 28 हजार रुपये के चार कर्ज लिए हैं, जिसके लिए उन्हें क्रमशः 1230, 860, 2410 और पांच सौ रुपये की किश्तें चुकानी पड़ती हैं. गुड्डी के पति संजय चौहान दिल्ली में मजदूरी करते हैं.

गुड्डी को भी 14 दिसंबर को 2,410 रुपये की किश्त चुकानी थी लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे. माइक्राफाइनेंस कंपनी का एजेंट उन पर दबाव बनाने लगा कि कर्ज की किश्त चुकाने के लिए घर का कोई सामान बेच दे. गुड्डी के पास ऐसा कोई सामान भी नहीं था जिसे वे बेच सकें तो एजेंट उनकी पांच हजार की सिलाई मशीन जबरन उठा ले गया. इसी बीच आरती के आत्महत्या की खबर गांव पहुंची, तो वह सिलाई मशीन आरती के घर छोड़ भाग गया.

मिश्रौली गांव में एक समूह से जुड़ी 32 महिलाएं माइक्रोफाइनेंस कंपनियों की जाल में फंसी हैं. मालती, पूनम, लाइची, राजपति, जगिया, सुभावती, मीना, दुर्गावती, उर्मिला, रिंकू, ज्ञानती, शिवकुमारी सहित तमाम महिलाओं ने चार से पांच माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से कर्ज लिए हुए हैं. समूह की मुखिया समिंतर देवी ने भैंस खरीदने के लिए 50 हजार रुपये का कर्ज लिया और फिर 45 हजार रुपये का. उन्होंने बताया कि यह समूह 10 महिलाओं से शुरू हुआ था. अब इससे 32 महिलाएं जुड़ी हैं.

क्या हैं आरबीआई के नियम

भारतीय रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों के अनुसार, ऋण की वसूली के लिए उधारकर्ता को धमकी नहीं दी जा सकती और न ही अभद्र भाषा का प्रयोग किया जा सकता है. उधारकर्ता को लगातार काॅल नहीं किया जा सकता. सुबह नौ बजे के पहले और शाम छह बजे के बाद उधारकर्ता को काॅल नहीं किया जा सकता. कर्ज वसूली के लिए रिश्तेदार, दोस्त व सहकर्मियों को परेशान नहीं किया जा सकता।

हालांकि, माइक्रोफाइनेंस कंपनियां इन नियमों का खुले तौर पर उल्लंघन कर रही हैं.

मिश्रौली गांव की महिलाओं ने बताया कि माइक्रोफाइनेंस कंपनी के एजेंट छह-सात लोगों के साथ घर पर आ धमकते हैं और जब तक पैसे नहीं मिल जाते, जाते नहीं हैं. कई बार वे रिश्तेदारों के घर भी पहुंच जाते हैं. घर का सामान बेचकर कर्ज चुकाने का दबाव बनाते हैं. कर्ज की कुछ किश्तों को चुकाने के बाद उसी पर नया कर्ज भी दे देते हैं. इस तरह से हर महिला को चार से पांच माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने कर्ज देकर उन्हें कर्जजाल में फांस दिया है. हालत यह है कि कर्ज को चुकाने के लिए कर्ज लिए जा रहे हैं. नाते-रिश्तेदारों से उधारी ली जा रही है और जेवर-जमीन गिरवी रखी जा रही है.

माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के ऋणजाल में फंसी महिलाओं में से अधिकतर को अपने जेवर गिरवी रखने पड़े हैं. सुमित्रा और राजपति ने बताया कि उन्होंने चार-चार थान जेवर गिरवी रखे हैं. लाइची ने दो जेवर गिरवी रख 20 हजार रुपये लेकर कर्ज की किश्त चुकाई है. गुड्डी देवी ने मंगलसूत्र, पायल गिरवी रखे हैं.

आशा देवी कहती हैं, ‘हमार पांच बिक्खो गिरवी रखा गईल बा. इहां एको जनी अइसन नाहीं बांटी जेकर बिक्खो सोनार के यहां रखा नाहीं गइल बा. एक बार बिक्खो गिरवी रखा जाला त छूट भी नाहीं पावल जाला. परब त्योहार शादी बियाह के मौके पर कास्टमेटिक पहिनल जाला.’

लोन संबंधी कागज़ात लिए गांव की महिलाएं.

कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं तमकुहीराज के विधायक रहे अजय कुमार लल्लू ने आत्महत्या की इस घटना पर कहा है कि गांव-गांव में माइक्रोफाइनेंस कंपनियां लोन देने के नाम पर आम जनता के लिए काल बन गई हैं.

उन्होंने ट्विटर (अब एक्स) पर लिखा, ‘जनपद कुशीनगर के सेवरही ब्लॉक के मिश्रौली ग्राम सभा निवासी धर्मनाथ यादव जी की पत्नी माइक्रोफाइनेंस कंपनी उत्कर्ष फाइनेंस, सूर्योदय बैंक, समता फाइनेंस बैंक, चैतन्य इंडिया फाइनेंस बैंक सहित अन्य फाइनेंस कंपनियों से कर्ज लिया था. जिसका वह किश्तवार भुगतान भी करती रही हैं. रुपये की तंगी के कारण वे किसी महीने किश्त चुकाने में असमर्थ रहीं. इस दौरान उक्त कंपनियों ने खूब प्रताड़ित किया, दबाव बनाया, सामाजिक उलाहना भी दी जिसके कारण आरती देवी ने आत्महत्या कर ली. प्रताड़ना की पराकाष्ठा देखिए कि पीड़िता का शव पोस्टमार्टम के बाद दरवाजे पर था लेकिन माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों के निर्देश पर कर्मचारियों ने जबरन किश्त की वसूली की. लाश से भी वसूली, माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के अत्याचार की यह सीमा है.’

उधर, भाकपा माले नेता परमहंस सिंह, किसान महासभा के बैरिस्टर कुशवाहा, मनोरमा ने आरती की खुदकुशी की घटना पर फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि कर्ज वसूली के लिए उत्पीड़न किए जाने के कारण आरती को खुदकुशी करनी पड़ी.

माले नेताओं ने माइक्रोफाइनेंस कंपनी पर हत्या का केस दर्ज करने, माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के द्वारा गरीबों को दिए गए सभी कर्ज माफ करने, आरती के परिजनों को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने और माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के लाइसेंस की जांच आरबीआई के दिशानिर्देशों के आलोक में कराने की मांग की है.

मिश्रौली गांव के लोग नदी कटान की त्रासदी के बाद अब कर्जजाल की त्रासदी का सामना कर रहे हैं. यदि उन्हें नदी कटान से विस्थापित होने के बाद सरकार की मदद मिली होती तो वे कर्जजाल में नहीं फंसते. अपनी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए वे कर्ज के ऐसे दलदल में फंसते गए हैं जिससे निकलने का को रास्ता नजर नहीं आ रहा.

आरती की खुदकुशी और मिश्रौली गांव की महिलाओं के कर्जजाल में फंसने की यह कहानी माइक्रोफाइनेंस के जरिये महिलाओं के सशक्तिकरण और उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के तमाम दावों पर बड़ा प्रश्नचिह्न भी है.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)