राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा कि वह जाति आधारित जनगणना की मांग का समर्थन नहीं करता. देश में जाति के नाम पर फूट पड़ती है, यदि जाति समाज में असमानता की जड़ है, तो आरएसएस का मानना है कि जाति आधारित जनगणना जैसे कार्यों से इसे और अधिक नहीं बढ़ाया जाना चाहिए.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने मंगलवार को कहा कि वह जाति आधारित जनगणना की मांग का समर्थन नहीं करता है और कहा कि इस तरह के कदम से देश में सामाजिक असमानताएं बढ़ेंगी.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने महाराष्ट्र राज्य विधानसभा और परिषद दोनों के सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और शिवसेना (शिंदे समूह) के विधायकों को संगठन का रुख स्पष्ट किया, जिन्होंने मंगलवार को नागपुर में आरएसएस के स्मृति मंदिर परिसर का दौरा किया.
आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक और विदर्भ प्रांत के प्रमुख श्रीधर घाडगे ने विधायकों की सभा में कहा, ‘हमें इसमें कोई फ़ायदा नहीं बल्कि नुकसान दिखता है. यह असमानता की जड़ है और इसे बढ़ावा देना उचित नहीं है.’
उन्होंने आगे कहा कि यदि जाति जनगणना के कथित लाभों को पर्याप्त रूप से समझाया जाए तो सरकार के साथ जुड़ने के लिए आरएसएस की तत्परता व्यक्त की जाएगी.
मंत्रियों और विधायकों के दौरे के दौरान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और संगठन महासचिव दत्तात्रेय होसबले नागपुर में नहीं थे. साथ ही आरएसएस परिसर के दौरे के दौरान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस विशेष रूप से अनुपस्थित थे.
महाराष्ट्र सरकार में एनसीपी की भागीदारी के बावजूद उपमुख्यमंत्री अजीत पवार सहित उनके धड़े कोई भी सदस्य इस यात्रा का हिस्सा नहीं था. एनसीपी (अजित पवार गुट) का प्रतिनिधित्व करने वाले अमोल मितकारी ने टिप्पणी की कि यह तय करना किसी विशेष पार्टी के अधिकार में है कि किसी विशिष्ट स्थान का दौरा किया जाए या नहीं.
उन्होंने कहा, ‘यह हर पार्टी का विशेषाधिकार है कि वह किसी विशेष स्थान पर जाए या नहीं. जबकि एनसीपी को भाजपा से निमंत्रण मिला था, हमारी ओर से कोई भी शामिल नहीं हुआ.’
मितकारी ने समझाया और बताया कि उपमुख्यमंत्री पवार ने लगातार कहा है कि वह अपने धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों से समझौता नहीं करेंगे क्योंकि उनका गुट गठबंधन सरकार में शामिल हो गया है.
आरएसएस की ओर से जाति आधारित जनगणना का विरोध केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पिछले महीने यह टिप्पणी किए जाने के बाद आया है कि बिहार सरकार द्वारा आयोजित ऐसी जनगणना के मद्देनजर भाजपा जाति आधारित जनगणना का विरोध नहीं करती है.
शाह के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए घाडगे ने कहा कि किसी भी मुद्दे पर राजनीतिक दलों का अपना रुख हो सकता है, लेकिन आरएसएस यह स्पष्ट करना चाहता है कि वह जाति आधारित जनगणना का समर्थन नहीं करता है.
उन्होंने कहा, ‘आरएसएस सामाजिक समानता को बढ़ावा दे रहा है. हमारे देश में जाति के नाम पर फूट पड़ती है. यदि जाति समाज में असमानता की जड़ है, तो आरएसएस का मानना है कि जाति-आधारित जनगणना जैसे कार्यों से इसे और अधिक नहीं बढ़ाया जाना चाहिए.’
संगठन के रुख पर वार्षिक ब्रीफिंग के दौरान घाडगे ने सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों के लिए सामाजिक समानता, जाति-आधारित जनगणना का विरोध, स्वदेशी, पारिवारिक मूल्यों और पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जागरूकता सहित प्रमुख बिंदुओं को रेखांकित किया.
इस बात पर सहमति जताते हुए कि जाति आधारित भेदभाव सदियों से मौजूद है और इसे पूरी तरह खत्म होने में समय लगेगा, आरएसएस पदाधिकारी ने कहा कि जनगणना केवल दरार को और गहरा कर सकती है.
ज्ञात हो कि आरएसएस पदाधिकारी हर साल नागपुर में होने वाले राज्य विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के दौरान विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर संघ के रुख के बारे में राज्य के विधायकों को जानकारी देते हैं.
स्मृति मंदिर यात्रा से अजीत पवार गुट के विधायकों की अनुपस्थिति पर घाडगे ने स्पष्ट किया कि वार्षिक यात्रा स्वैच्छिक है, जिसमें आरएसएस द्वारा कोई औपचारिक निमंत्रण नहीं दिया गया है. उन्होंने कहा कि इसमें भाग लेना विवेक पर निर्भर करता है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, एनसीपी (अजित पवार गुट) नेता और राज्य मंत्री छगन भुजबल ने कहा कि आरएसएस का विचार काल्पनिक है और व्यावहारिक रूप से संभव नहीं हो सकता है.
उन्होंने कहा, ‘जब लोग कानूनी उपाय या आरक्षण चाहते हैं, तो अदालतें जनसंख्या पर डेटा मांगती हैं. जाति जनगणना के बिना यह कैसे संभव हो सकता है?’
उल्लेखनीय है कि बिहार के जाति आधारित सर्वे के नतीजे जारी होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते अक्टूबर माह में कहा था कि विपक्ष देश को जाति के नाम पर विभाजित करने की कोशिश कर रहा है. भाजपा के कई नेता भी विपक्षी दलों के जातिगत जनगणना करवाने के वादों की आलोचना करते नजर आए थे.
इससे पहले आरएसएस के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य और भाजपा के पूर्व पदाधिकारी राम माधव ने भी बिहार जैसे राज्यों में विपक्षी सरकारों को चेतावनी दी थी कि जाति जनगणना से देश में सामाजिक अशांति फैल सकती है.