जाति जनगणना पर आरएसएस का यूटर्न, कहा- वह ख़िलाफ़ नहीं, इसका उपयोग समाज के उत्थान के लिए हो

बीते दिनों विदर्भ क्षेत्र के सह-संघचालक श्रीधर घाडगे ने जाति जनगणना पर सवाल उठाते हुए कहा था कि इससे कुछ लोगों को राजनीतिक तौर पर फायदा हो सकता है, लेकिन यह राष्ट्रीय एकता के लिए ठीक नहीं है. अब आरएसएस ने ज़ोर देते हुए कहा है कि संगठन की राय थी कि इसका उपयोग समाज के समग्र विकास के लिए किया जाना चाहिए.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/Rashtriya Swayamsevak Sangh)

बीते दिनों विदर्भ क्षेत्र के सह-संघचालक श्रीधर घाडगे ने जाति जनगणना पर सवाल उठाते हुए कहा था कि इससे कुछ लोगों को राजनीतिक तौर पर फायदा हो सकता है, लेकिन यह राष्ट्रीय एकता के लिए ठीक नहीं है. अब आरएसएस ने ज़ोर देते हुए कहा है कि संगठन की राय थी कि इसका उपयोग समाज के समग्र विकास के लिए किया जाना चाहिए.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/Rashtriya Swayamsevak Sangh)

नई दिल्ली: अपने एक वरिष्ठ पदाधिकारी द्वारा जाति आधारित जनगणना का विरोध करने के कुछ दिनों बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने बीते गुरुवार (21 दिसंबर) को कहा है कि ऐसी किसी भी जनगणना का उपयोग समाज के उत्थान के लिए किया जाना चाहिए.

संघ ने जोर देते हुए कहा कि राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी कारण से सामाजिक सौहार्द्र बाधित न हो.

यह बयान क्षति नियंत्रण के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक और विदर्भ प्रांत के प्रमुख श्रीधर घाडगे द्वारा जाति जनगणना की आवश्यकता पर सवाल उठाने के बाद आया है. उन्होंने कहा था कि हालांकि इससे कुछ लोगों को राजनीतिक तौर पर फायदा हो सकता है, लेकिन यह राष्ट्रीय एकता के लिए अच्छा नहीं है.

बीते 19 दिसंबर को नागपुर में हुए एक कार्यक्रम के दौरान घाडगे ने विधायकों की सभा में कहा था, ‘हमें इसमें कोई फायदा नहीं बल्कि नुकसान दिखता है. यह असमानता की जड़ है और इसे बढ़ावा देना उचित नहीं है.’

आरएसएस की ओर से जाति आधारित जनगणना का विरोध केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पिछले महीने यह टिप्पणी किए जाने के बाद आया है कि बिहार सरकार द्वारा आयोजित ऐसी जनगणना के मद्देनजर भाजपा जाति आधारित जनगणना का विरोध नहीं करती है.

शाह के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए घाडगे ने कहा था कि किसी भी मुद्दे पर राजनीतिक दलों का अपना रुख हो सकता है, लेकिन आरएसएस यह स्पष्ट करना चाहता है कि वह जाति आधारित जनगणना का समर्थन नहीं करता है.

उन्होंने कहा था, ‘आरएसएस सामाजिक समानता को बढ़ावा दे रहा है. हमारे देश में जाति के नाम पर फूट पड़ती है. यदि जाति समाज में असमानता की जड़ है, तो आरएसएस का मानना ​​है कि जाति-आधारित जनगणना जैसे कार्यों से इसे और अधिक नहीं बढ़ाया जाना चाहिए.’

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, सोशल मीडिया के जरिये संघ का आधिकारिक रुख स्पष्ट करते हुए संगठन के प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर ने कहा कि आरएसएस किसी भी तरह के भेदभाव और असमानता से मुक्त हिंदू समाज बनाने के अपने लक्ष्य की दिशा में लगातार काम कर रहा है.

उन्होंने कहा, ‘यह सच है कि विभिन्न ऐतिहासिक कारणों से समाज के कई वर्ग आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक दृष्टिकोण से वंचित रह गए हैं. उनके उत्थान के लिए सरकारें समय-समय पर विभिन्न योजनाएं बना रही हैं और आरएसएस ने हमेशा इसका समर्थन किया है.’

उन्होंने कहा कि आरएसएस की राय थी कि जाति जनगणना का उपयोग समाज के समग्र विकास के लिए किया जाना चाहिए और सभी दलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह सामाजिक सद्भाव और एकता को नुकसान न पहुंचाए.

आरएसएस दलित अधिकारों के खिलाफ: कांग्रेस

कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दल जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं, जो हाल के विधानसभा चुनावों के दौरान एक चुनावी मुद्दा भी बन गया था.

बीते गुरुवार को कांग्रेस ने घाडगे के बयान की सोशल साइट एक्स पर आलोचना की.

कांग्रेस की ओर से कहा गया, ‘आरएसएस, जो भाजपा को चलाता है, हमेशा जाति जनगणना के खिलाफ रहा है. इस पर आरएसएस और भाजपा का रुख बिल्कुल साफ है. दलितों और पिछड़ों को उनका हक किसी भी कीमत पर नहीं मिलना चाहिए. इस घृणित सोच के कारण पिछले 100 वर्षों में दलित या पिछड़े वर्ग से एक भी आरएसएस अध्यक्ष नहीं हुआ.’

इसमें कहा गया कि देश में सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए जाति जनगणना बहुत महत्वपूर्ण है. इस तरह के सर्वेक्षण से शोषित, वंचित, दलित और पिछड़े वर्गों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करने के लिए नीतियां बनाई जा सकती हैं. आरएसएस और भाजपा इसी बात से डरते हैं.

द हिंदू के अनुसार, आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि विपक्ष को बिना होमवर्क किए बोलने की आदत है. उन्होंने बताया कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कई मौकों पर पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए आरक्षण का समर्थन किया है.

उन्होंने कहा, ‘पिछले कई वर्षों से अपने वार्षिक दशहरा भाषण में मोहन भागवत छुआछूत और जाति व्यवस्था से संबंधित समाज में व्याप्त अन्य बुराइयों जैसी चीजों से छुटकारा पाने के आदर्श वाक्य पर जोर देते रहे हैं.’