चुनाव आयोग का राजनीतिक दलों को निर्देश- विकलांगों के लिए अपमानजनक शब्द न प्रयोग करें

चुनाव आयोग ने एक परामर्श जारी कर कहा कि किसी भी राजनीतिक दल के सदस्यों या उनके उम्मीदवारों द्वारा भाषण या अभियान में ऐसे शब्द, जिन्हें शारीरिक अक्षमता का अपमान समझा जा सकता है, प्रयोग न करें. इस तरह की भाषा के सामान्य उदाहरण- गूंगा, अंधा, काना, बहरा, लंगड़ा, लूला आदि बताए गए हैं.

(फोटो साभार: फेसबुक)

चुनाव आयोग ने एक परामर्श जारी कर कहा कि किसी भी राजनीतिक दल के सदस्यों या उनके उम्मीदवारों द्वारा भाषण या अभियान में ऐसे शब्द, जिन्हें शारीरिक अक्षमता का अपमान समझा जा सकता है, प्रयोग न करें. इस तरह की भाषा के सामान्य उदाहरण- गूंगा, अंधा, काना, बहरा, लंगड़ा, लूला आदि बताए गए हैं.

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नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने गुरुवार को राजनीतिक दलों से विकलांग लोगों के लिए समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए कहा, जिसमें राजनीतिक चर्चा में गूंगा, बहरा, लंगड़ा जैसे ‘सक्षमवादी’ (ableist) शब्दों का उपयोग नहीं करना शामिल है.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को इस आशय की एक परामर्श जारी करते हुए उनसे और उनके उम्मीदवारों से इसका अक्षरशः पालन करने का आग्रह किया.

आयोग ने एक बयान में कहा, ‘लोकतंत्र की बुनियाद चुनावी प्रक्रिया में सभी समुदायों के प्रतिनिधित्व में निहित है. भारत के चुनाव आयोग के लिए शारीरिक रूप से किसी अक्षमता का सामना करने वाले (विशेष तौर पर सक्षम) व्यक्तियों की समान भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सुलभ और समावेशी चुनाव करवाना एक ऐसा पहलू रहा है, जिस पर समझौता नहीं किया जा सकता.’

आयोग ने कहा कि हाल ही में उसे विशेष तौर पर सक्षम लोगों के बारे में राजनीतिक चर्चा में अपमानजनक या आक्रामक भाषा के इस्तेमाल के बारे में पता चला है.

आयोग ने कहा, ‘किसी भी राजनीतिक दल के सदस्यों या उनके उम्मीदवारों द्वारा भाषण या अभियान में इस तरह के शब्दार्थ का उपयोग, विशेष तौर पर सक्षम जनों के अपमान के रूप में समझा जा सकता है. समर्थ भाषा के सामान्य उदाहरण गूंगा, मंदबुद्धि (पागल, सिरफिरा), अंधा (अंधा, काना), बहरा, लंगड़ा (लंगड़ा, लूला, अपाहिज) आदि शब्द हैं. ऐसे अपमानजनक भाषा के प्रयोग से बचना जरूरी है. राजनीतिक विमर्श/अभियान में विशेष तौर पर सक्षम लोगों को न्याय और सम्मान दिया जाना चाहिए.’

दिशानिर्देशों में कहा गया है कि राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों को किसी भी सार्वजनिक भाषण के दौरान अपने लेखन या राजनीतिक अभियानों में मानवीय अक्षमता के संदर्भ में विकलांगता से संबंधित शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहिए और विकलांगता से संबंधित टिप्पणियों से सख्ती से बचना चाहिए जो आक्रामक हो सकते हैं या रूढ़िवादिता और पूर्वाग्रहों को कायम रख सकती हैं.

इसमें चेतावनी दी गई है, ‘ऐसी भाषा, शब्दावली, संदर्भ, उपहास, अपमानजनक संदर्भ या विशेष तौर पर सक्षम व्यक्ति का अपमान… का कोई भी उपयोग विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 92 के प्रावधानों को आकर्षित कर सकता है.’

दिशानिर्देशों में आगे कहा गया है कि राजनीतिक दल सदस्यों और कार्यकर्ताओं के स्तर पर अधिक विशेष तौर पर सक्षम लोगों को शामिल करने का प्रयास कर सकते हैं, वे भाषण, सोशल मीडिया पोस्ट, विज्ञापन और प्रेस विज्ञप्ति सहित सभी अभियान सामग्री की समीक्षा करें ताकि सक्षम भाषा के किसी भी उदाहरण की पहचान की जा सके और उसे सुधारा जा सके.

आयोग ने उनसे पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए शारीरिक अक्षमता पर एक प्रशिक्षण मॉड्यूल प्रदान करने का भी आग्रह किया है.