पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार, 17वीं लोकसभा के दौरान 172 विधेयकों को चर्चा हुई के बाद पारित किया गया, जिनमें से लोकसभा में 86 और राज्यसभा में 103 विधेयकों पर दो घंटे से भी कम समय की चर्चा हुई. 172 विधेयकों में लोकसभा में केवल 16 और राज्यसभा में 11 विधेयकों पर 30 से अधिक सदस्यों ने चर्चा की.
नई दिल्ली: थिंक टैंक पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च द्वारा संकलित आंकड़ों से पता चलता है कि 17वीं लोकसभा द्वारा अब तक पारित किए गए आधे विधेयकों पर दो घंटे से भी कम समय तक चर्चा हुई और उनमें से केवल 16 प्रतिशत को संसदीय स्थायी समितियों को भेजा गया.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के विश्लेषण में बताया गया है कि 17वीं लोकसभा के कार्यकाल के दौरान 172 विधेयकों पर चर्चा हुई और उन्हें पारित किया गया, जिनमें से लोकसभा में 86 विधेयक और राज्यसभा में 103 विधेयकों पर दो घंटे से भी कम समय तक चर्चा हुई.
इन 172 विधेयकों में से लोकसभा में केवल 16 और राज्यसभा में 11 विधेयकों पर 30 से अधिक सदस्यों ने बहस में भाग लिया.
यह रिपोर्ट शीतकालीन सत्र- 17वीं लोकसभा के आखिरी पूर्ण सत्र- के समापन के एक दिन बाद आई.
इसमें कहा गया कि शीतकालीन सत्र में कोई भी विधेयक सदन समितियों को नहीं भेजा गया. समितियों को भेजे गए बिलों का अनुपात 15वीं लोकसभा के दौरान 71 प्रतिशत और 16वीं लोकसभा में 25 प्रतिशत से घटकर 17वीं लोकसभा के दौरान 16 प्रतिशत हो गया है.
यह एकमात्र ऐसी लोकसभा बनने की राह पर है जिसमें कोई उपाध्यक्ष नहीं चुना गया है. संविधान लोकसभा को चुनाव के बाद यथाशीघ्र उपाध्यक्ष चुनने का आदेश देता है.
शीतकालीन सत्र के 14 से 21 दिसंबर के बीच लोकसभा से 100 सांसदों और राज्यसभा से 46 को निलंबित किया गया. यह प्रत्येक सदन की सदस्य संख्या का 19 प्रतिशत है और अब तक किसी भी लोकसभा कार्यकाल में निलंबन की सबसे अधिक संख्या है.
निलंबित सदस्यों द्वारा पूछे गए सभी प्रश्नों को प्रतिक्रिया के लिए सूचीबद्ध प्रश्नों की सूची से हटा दिया गया. 14 दिसंबर, जिस दिन सांसदों के पहले समूह को निलंबित किया गया था, से लोकसभा में 12 प्रतिशत और राज्यसभा में 13 प्रतिशत प्रश्न रद्द कर दिए गए.
इस सत्र में लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा को नैतिक कदाचार के आधार पर निष्कासित कर दिया गया.