सेना मेडल से सम्मानित लेफ्टिनेंट कर्नल करणबीर सिंह नट नवंबर 2015 में जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा ज़िले में आतंकवादियों से लड़ते हुए गंभीर रूप से घायल होने के बाद कोमा में चले गए थे. उन्होंने कुपवाड़ा के पास एक गांव में छिपे आतंकवादियों के ख़िलाफ़ तलाशी अभियान का नेतृत्व किया था. उनका इलाज पंजाब के जालंधर स्थित सैन्य अस्पताल में चल रहा था.
नई दिल्ली: सेना मेडल से सम्मानित लेफ्टिनेंट कर्नल करणबीर सिंह नट का पंजाब के जालंधर शहर स्थित सैन्य अस्पताल में बीते शनिवार (23 दिसंबर) को निधन हो गया. वह पिछले 8 वर्षों से कोमा में थे.
साल 2015 में जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में आतंकवादियों से लड़ते हुए गंभीर रूप से घायल होने के बाद कोमा में चले गए थे. पंजाब के सैनिक कल्याण निदेशक ब्रिगेडियर बीए ढिल्लन (सेवानिवृत्त) ने उनके निधन की पुष्टि की.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर 2015 में घटना के समय लेफ्टिनेंट कर्नल नट 160 प्रादेशिक सेना बटालियन (जेएके राइफल्स) के सेकेंड-इन-कमांड (2IC) के रूप में कार्यरत थे. उन्होंने कुपवाड़ा के पास एक गांव में छिपे आतंकवादियों के खिलाफ तलाशी अभियान का नेतृत्व किया था.
उन्हें मूल रूप से 1998 में ब्रिगेड ऑफ गार्ड्स में एक शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था. उन्होंने 2012 में सेवा से मुक्त होने से पहले 14 वर्षों तक रेजिमेंट में सेवा की. शॉर्ट सर्विस अधिकारी के रूप में सेवा पूरी करने के बाद वह प्रादेशिक सेना में शामिल हो गए थे.
लेफ्टिनेंट कर्नल नट के चेहरे, विशेषकर निचले जबड़े पर गंभीर चोटें आईं, जब 25 नवंबर, 2015 को नियंत्रण रेखा के करीब कुपवाड़ा जिले के हाजी नाका गांव में एक झोपड़ी में छिपे एक आतंकवादी ने उन पर गोलीबारी की थी. श्रीनगर के सैन्य अस्पताल और बाद में नई दिल्ली के आर्मी रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में डॉक्टरों ने उनकी जान बचाने के लिए उनकी गहन सर्जरी की थी.
लेफ्टिनेंट कर्नल नट का परिवार मूल रूप से बटाला शहर (पंजाब) के पास गांव ढाडियाला नट का रहने वाला है. उनके परिवार में उनकी पत्नी नवप्रीत कौर और बेटियां गुनीत और अशमीत हैं.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, नवप्रीत कौर ने कहा, ‘वह हमारे चेहरों को देखते थे और हमें ऐसा लगता था जैसे वह कुछ कहना चाहते हैं. लेकिन उन्होंने कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.’
उन्होंने कहा, ‘मेरी बड़ी बेटी को पता था कि क्या हुआ था, लेकिन अशमीत , जो इस घटना के समय सिर्फ डेढ़ साल की थी, इतने सालों तक मुझसे पूछती रही कि उसके पिता आखिरकार कब उठेंगे. लगभग चार साल पहले मैंने उसे सब कुछ बताया था. हमें ऐसा महसूस हुआ, जैसे इन आठ सालों में हर दिन मेरे पति शहीद हुए.’
उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन को याद करते हुए उनके पिता कर्नल जगतार सिंह नट ने कहा, ‘यह नवंबर 2015 था जब मेरे बेटे को एक आतंकवादी द्वारा चलाई गई गोलियों से गोली लग गई, जो कुपवाड़ा के घने जंगल में एक खाली झोपड़ी के अंदर छिपा हुआ था. मेरे बेटे ने भी जवाबी कार्रवाई की और उग्रवादी को मार गिराया था.’
उन्होंने कहा, ‘मुठभेड़ में घायल होने के बाद उसे हवाई मार्ग से आर्मी हॉस्पिटल रिसर्च एंड रेफरल, नई दिल्ली ले जाया गया था. हालांकि, उसे हाइपोक्सिया और कार्डियक अरेस्ट का सामना करना पड़ा. वह वहां डेढ़ साल तक रहा और बाद में उसे जालंधर के सैन्य अस्पताल में रेफर कर दिया गया.’
उन्होंने कहा, ‘बटाला में अपना घर अपने छोटे भाई के जिम्मे छोड़कर हम सभी यहां जालंधर में आकर बस गए, ताकि उसकी देखभाल कर सकें. सेना ने हमें आवास उपलब्ध कराया है.’