उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने का निर्णय उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण या जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करना.
नई दिल्ली: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोमवार को कहा कि राज्य के लिए समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार है और विशेषज्ञ समिति इसे जल्द ही राज्य सरकार को सौंपेगी.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, धामी ने हरिद्वार में संतों की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘यूसीसी का मसौदा तैयार करने के लिए हमने जिस विशेषज्ञ समिति को नियुक्त किया था, उसने अपना काम कर दिया है. हमें जल्द ही नए साल में इसका मसौदा मिल जाएगा और इसे लागू करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे.’
उन्होंने कहा कि यूसीसी लागू करने का निर्णय उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण या जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करना.
मालूम हो कि परंपरागत रूप से राम मंदिर के निर्माण और भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के साथ-साथ समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख वादों में से एक रहा है.
धामी ने हरिद्वार में जूना अखाड़े द्वारा आयोजित ‘दिव्य अध्यात्म महोत्सव’ में कहा, ‘अयोध्या में राम मंदिर या धारा 370 को हटाने की मांग कई वर्षों से देश में उठ रही थी. इसी तरह राज्य में भी पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले हमने दोबारा चुने जाने पर यूसीसी लाने का वादा किया था.’
धामी ने अपनी सरकार द्वारा लिए गए कुछ बड़े निर्णयों में राज्य में देश के सबसे कड़े नकल विरोधी और धर्मांतरण विरोधी कानूनों की शुरुआत का उल्लेख किया. उन्होंने ‘लैंड जिहाद’ के खिलाफ अपनी सरकार की निर्णायक कार्रवाई की भी बात की और कहा कि अभियान के दौरान 5,000 एकड़ से अधिक सरकारी भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराया गया है.
धामी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश में सांस्कृतिक पुनर्जागरण हो रहा है.
मालूम हो कि उत्तराखंड सरकार ने मई 2022 में उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया था.
मार्च 2022 में नवगठित सरकार की पहली कैबिनेट बैठक के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन के लिए विशेषज्ञों की एक समिति बनाने की घोषणा की थी.
समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि सभी लोग, चाहे वे किसी भी क्षेत्र या धर्म के हों, नागरिक कानूनों के एक समूह के तहत बंधे होंगे.
समान नागरिक संहिता को सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक समान समूह के रूप में संदर्भित किया जाता है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो.
वर्तमान में विभिन्न धर्मों के अलग-अलग व्यक्तिगत कानून (Personal Law) हैं.
इसका उल्लेख भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में किया गया है. जिस भाग चार में इसका उल्लेख किया गया है, उसमें राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (डीपीएसपी) शामिल हैं. ये प्रावधान लागू करने योग्य नहीं हैं, लेकिन कानून बनाने के लिए मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में काम करने के लिए हैं.
अनुच्छेद 44 कहता है, ‘राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा.’