पालमपुर के एक व्यवसायी ने अपनी शिकायत में रंगदारी से जुड़े एक मामले में उन्हें और उनके परिवार को मिल रहीं धमकियों को लेकर पुलिस महानिदेशक और कांगड़ा के एसपी की भूमिका पर सवाल उठाया था.
शिमला: हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने मंगलवार को राज्य सरकार को राज्य पुलिस प्रमुख (डीजीपी) और कांगड़ा के पुलिस अधीक्षक के तबादले का निर्देश दिया ताकि वे एक व्यवसायी की जबरन वसूली और जान को खतरे संबंधी शिकायत की जांच को प्रभावित न करें.
एनडीटीवी के मुताबिक, अपने आदेश में अदालत ने यह भी कहा कि वह मामले में ‘असाधारण परिस्थितियों’ के कारण हस्तक्षेप कर रही है, विशेष रूप से तब, जब प्रतिवादी गृह सचिव ने मामले में पेश सामग्री की ओर से आंखें मूंद ली हैं.
पालमपुर के व्यवसायी निशांत शर्मा ने 28 अक्टूबर को दायर अपनी शिकायत में उन्हें, उनके परिवार और संपत्ति को खतरा होने का आरोप लगाया था. उन्होंने डीजीपी संजय कुंडू की भूमिका पर भी सवाल उठाया था, जिन्होंने कथित तौर पर उन्हें फोन करके शिमला आने के लिए कहा था.
मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और जस्टिस ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने कहा, ‘उन्हें (डीजीपी और कांगड़ा एसपी को) अन्य पदों पर स्थानांतरित करें जहां उन्हें मामले में जांच को प्रभावित करने का कोई अवसर न हो.’
आदेश में कहा गया है, ‘इस मामले में आज की तारीख तक हमारे पास उपलब्ध सामग्री को देखते हुए हम संतुष्ट हैं कि मामले में हस्तक्षेप करने के लिए असाधारण परिस्थितियां मौजूद हैं, खासकर तब जब प्रतिवादी गृह सचिव ने उक्त सामग्री पर किसी कारणवश आंखें मूंद ली हैं.’
अदालत ने पाया कि शिकायतकर्ता से 28 अक्टूबर को एक ईमेल के माध्यम से शिकायत प्राप्त होने के बावजूद कांगड़ा एसपी ने जानबूझकर 16 नवंबर तक एफआईआर दर्ज करने में देरी करने के बाद जांच में बहुत कम प्रगति दिखाई.
इससे पहले 10 नवंबर को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कारोबारी की शिकायत पर संज्ञान लेते हुए शिमला और कांगड़ा के एसपी को शिकायत के संबंध में कोर्ट में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया था.
अपनी शिकायत में व्यवसायी शर्मा ने अपने साझेदारों से उन्हें, उनके परिवार के सदस्यों और संपत्ति को खतरा होने का आरोप लगाया था. उन्होंने 25 अगस्त को हरियाणा के गुड़गांव में उन पर हुए एक हमले का हवाला देते हुए कहा था कि इसमें एक पूर्व आईपीएस अधिकारी समेत हिमाचल प्रदेश के दो प्रभावशाली लोग शामिल थे.
उन्होंने आरोप लगाया था, ‘हमले के बाद मैं कांगड़ा जिले के पालमपुर आया लेकिन डीजीपी ने मुझे अपने आधिकारिक नंबर से फोन किया और मुझे शिमला आने के लिए मजबूर किया और उसी दिन दो अपराधियों ने मुझे धर्मशाला के मैक्लॉडगंज में रोका और मेरे ढाई साल के बच्चे और पत्नी को नुकसान पहुंचाने की धमकी दी.’
उन्होंने दावा किया था, ‘मैं धर्मशाला में कांगड़ा के एसपी के घर गया और उन्हें अपनी दुर्दशा बताई, उन्हें अपनी शिकायत दी लेकिन अभी तक कुछ नहीं किया गया है.’
उन्होंने कहा था, ‘मैं एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच और डीजीपी समेत सभी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग करता हूं. यही एकमात्र तरीका है जिससे आप जबरन वसूली करने वालों के इस पूरे गिरोह को पकड़ पाएंगे.’
इससे पहले डीजीपी की शिकायत पर निशांत शर्मा के खिलाफ उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने और उनकी छवि खराब करने की कोशिश के आरोप में मानहानि का मामला दर्ज किया गया था.
अपनी शिकायत में डीजीपी संजय कुंडू ने कहा था कि शर्मा ने 29 अक्टूबर को डीजीपी को उनके आधिकारिक ईमेल पर एक पत्र लिखा था, जिसकी प्रतिलिपि अन्य अधिकारियों को भेजी थी, जिसमें उन्होंने उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने और उनकी छवि खराब करने के इरादे से झूठे आरोप लगाए थे.
व्यवसायी के खिलाफ आईपीसी की धारा 211 (नुकसान पहुंचाने के इरादे से किए गए अपराध का झूठा आरोप), 469 (प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से जालसाजी), 499 (मानहानि) और 500 के तहत मामला दर्ज किया गया था.