आपराधिक इतिहास वाले व्यक्तियों को वकील का लाइसेंस न दें: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार और राज्य बार काउंसिल को निर्देश दिया है कि जिस व्यक्ति के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज हैं, उसे प्रैक्टिस का लाइसेंस न मिले. यह आदेश एक शिकायत पर आया, जहां आरोप है कि 14 मामलों में नामजद और चार मामलों में दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को वकालत का लाइसेंस मिला है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो साभार: विकिपीडिया/Vroomtrapit)

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार और राज्य बार काउंसिल को निर्देश दिया है कि जिस व्यक्ति के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज हैं, उसे प्रैक्टिस का लाइसेंस न मिले. यह आदेश एक शिकायत पर आया, जहां आरोप है कि 14 मामलों में नामजद और चार मामलों में दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को वकालत का लाइसेंस मिला है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो साभार: विकिपीडिया/Vroomtrapit)

नई दिल्ली: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार और राज्य बार काउंसिल को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामले हैं, उसे कानून का प्रैक्टिस करने का लाइसेंस न मिले.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने 21 दिसंबर को यह निर्देश पवन कुमार दुबे द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जिसमें बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश को पिछले साल 25 सितंबर से लंबित उनकी याचिका का निपटारा करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.

दुबे के वकील सुरेंद्र चंद्रा द्विवेदी ने कहा, ‘पवन कुमार दुबे ने बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश में शिकायत दर्ज कराई थी कि वकालत करने का लाइसेंस प्राप्त करने वाले एक व्यक्ति ने 14 आपराधिक मामलों की लंबित होने के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई थी, जिनमें से चार मामलों में उसे दोषी ठहराया गया था.’

जस्टिस विनोद दिवाकर और जस्टिस एसडी सिंह की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि, ‘सही तथ्य जो भी हों, वर्तमान में शिकायत 25.9.2022 से बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के पास लंबित प्रतीत होती है. काफी समय बीत चुका है, अब तक इस पर उचित कार्रवाई हो जानी चाहिए थी.’

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘उसके अनुसार, तत्काल याचिका का निपटारा प्रतिवादी नंबर 3 को यह निर्देश देते हुए किया जाता है कि याचिकाकर्ता द्वारा लाई गई अनुशासनात्मक कार्यवाही को कानून के अनुसार यथासंभव शीघ्रता से, अधिकतम तीन महीने की अवधि के भीतर पूरा करें.’

अदालत ने कहा कि यह चिंताजनक है कि 14 मामलों के आपराधिक इतिहास वाले और चार मामलों में दोषी ठहराए गए व्यक्ति ने कानून का अभ्यास करने का लाइसेंस प्राप्त किया.

आदेश में कहा, ‘इस तरह के लाइसेंस को यदि उत्पन्न होने और/या जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो सामान्य रूप से समाज और विशेष रूप से कानूनी बिरादरी को नुकसान हो सकता है. अधिवक्ता अधिनियम ऐसे व्यक्ति को प्रैक्टिस के लिए प्रवेश पर रोक लगाता है.’

अदालत ने कहा कि प्रतिवादी नंबर 2 को यह सुनिश्चित करने के लिए एक प्रक्रिया विकसित करनी चाहिए थी कि लाइसेंस देने के लिए प्राप्त सभी नए आवेदन समयबद्ध तरीके से पुलिस सत्यापन प्रक्रिया के अधीन हों.

पीठ ने कहा, ‘सभी आवेदक जो आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे हैं और/या दोषी ठहराए गए हैं, वे अपने आवेदन करने के चरण में बार काउंसिल को ऐसे मामलों की लंबितता और/या सजा के किसी भी आदेश के बारे में सूचित करने के लिए बाध्य हैं. यदि किसी आवेदक द्वारा ऐसे महत्वपूर्ण विवरणों का खुलासा नहीं किया जाता है, तो उसके आवेदन को शुरुआत में ही खारिज कर दिया जा सकता है. उस हिसाब से देखा जाए तो यह आश्चर्य की बात है कि बार काउंसिल ने अभी तक अपना कानून लागू करने के लिए कोई प्रक्रिया विकसित नहीं की है.’

अदालत ने प्रतिवादियों 1 और 2 को आवश्यक निर्देश जारी करने और ‘पासपोर्ट जारी करने के लिए अपनाई जा रही/पालन की जा रही’ प्रक्रियाओं के समान लाइसेंस जारी करने के लिए सभी लंबित और नए आवेदनों के संबंध में संबंधित थानों से पुलिस रिपोर्ट मांगने का निर्देश दिया.

अदातल ने कहा, ‘इस तरह की उचित प्रक्रिया यह सुनिश्चित करेगी कि जिस व्यक्ति का आपराधिक इतिहास हो सकता है और जो उस जानकारी को छुपा सकता है, उसे लाइसेंस प्राप्त करने में बार काउंसिल को गुमराह करने से रोका जा सकता है. प्रतिकूल पुलिस रिपोर्ट के लंबित रहने तक जारी किया गया अनंतिम लाइसेंस ऐसी रिपोर्ट पेश किए जाने पर रद्द किया जा सकता है.’

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