क़तर में नौसेना प्रशिक्षण और अन्य सेवाएं देने वाली एक कंपनी के साथ काम कर रहे भारत के आठ पूर्व नौसेना अधिकारियों को बीते अक्टूबर माह में एक स्थानीय अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई थी. भारत सरकार ने इसके ख़िलाफ़ अपीलीय अदालत का रुख़ किया था.
नई दिल्ली: आठ पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारियों को मौत की सजा सुनाने के दो महीने बाद, कतर की अपीलीय अदालत ने गुरुवार (28 दिसंबर) को उनकी मौत की सजा को अलग-अलग अवधि के कारावास में बदल दिया.
रिपोर्ट के अनुसार, विदेश मंत्रालय ने एक बयान में ‘दहरा ग्लोबल केस में कतर की अपीलीय अदालत के फैसले का जिक्र किया, जिसमें सजा कम कर दी गई है.’
मंत्रालय ने कहा कि कतर में भारतीय राजदूत विपुल के साथ पूर्व नौसेना अधिकारियों के परिवार के सदस्य भी उस समय अपीलीय अदालत में मौजूद थे, जब आदेश जारी किया गया.
यह कहते हुए कि विस्तृत फैसले की अभी प्रतीक्षा है, विदेश मंत्रालय ने कहा कि वह ‘अगले कदम पर निर्णय लेने के लिए कानूनी टीम के साथ-साथ परिवार के सदस्यों के साथ निकट संपर्क में है.’
इस बार भी हमेशा की तरह मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि वह ‘इस मामले की कार्यवाही की गोपनीय और संवेदनशील प्रकृति के कारण’ इस समय कोई और टिप्पणी नहीं करेगा.
इसने आगे कहा, ‘हम मामले की शुरुआत से ही उनके साथ खड़े हैं और हम सभी कांसुलर (दूतावास संबंधी) और कानूनी सहायता देना जारी रखेंगे. हम कतरी अधिकारियों के साथ भी इस मामले को उठाना जारी रखेंगे.’
इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि पूर्व सैन्य अधिकारियों की सजा किस सीमा तक कम की गई है, लेकिन समझा जा रहा है कि उन्हें अलग-अलग अवधि की जेल की सजा सुनाई गई है.
यह आठ लोग कैप्टन नवतेज सिंह गिल, कैप्टन बीरेंद्र कुमार वर्मा, कैप्टन सौरभ वशिष्ठ, कमोडोर अमित नागपाल, कमोडोर पूर्णेंदु तिवारी, कमोडोर सुगुनाकर पकाला, कमोडोर संजीव गुप्ता और नाविक रागेश शामिल हैं. पूर्णेंदु तिवारी को 2019 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार से सम्मानित किया था.
बीते 26 अक्टूबर को क़तर की एक अदालत ने इन पूर्व नौसेना अधिकारियों को मौत की सजा सुनाई थी, जो एक साल से अधिक समय से हिरासत में रखे गए थे. ये लोग एक निजी फर्म- दहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजीज एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज के लिए काम कर रहे थे, जो कतर के सशस्त्र बलों को प्रशिक्षण और उससे संबंधित सर्विस दिया करती थीं. उन्हें अगस्त 2022 में बिना किसी आरोप के हिरासत में लिया गया था.
हालांकि आरोपों को कभी भी सार्वजनिक नहीं किया गया, लेकिन मीडिया रिपोर्टों ने उन पर जासूसी का आरोप लगाए जाने की संभावना का संकेत दिया था. भारत ने फैसले पर हैरानी व्यक्त की थी, लेकिन तब भी उसने कोई टिप्पणी करने से परहेज किया था.
लगभग 4 सप्ताह बाद अपीलीय अदालत ने पूर्व सैनिकों की मौत की सज़ा के ख़िलाफ़ भारत सरकार की अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था.