महाराष्ट्र: पुणे की अकादमी में पांच साल से कोई कोच नहीं, महिला पहलवान ख़ुद ही कर रही हैं ट्रेनिंग

पुणे की जोग महाराज व्यायामशाला को भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) द्वारा अपने अधिकार में लेने के बावजूद लगभग पांच वर्षों से कोई कोच नहीं मिला है. महाराष्ट्र राज्य कुश्ती संघ ने 'मिशन ओलंपिक' 2020 और 2024 के लिए महिला पहलवानों की ट्रेनिंग के लिए इसे राज्य के मुख्य केंद्र के तौर पर मान्यता दी थी.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/Maharashtra State Wrestling Association)

पुणे की जोग महाराज व्यायामशाला को भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) द्वारा अपने अधिकार में लेने के बावजूद लगभग पांच वर्षों से कोई कोच नहीं मिला है. महाराष्ट्र राज्य कुश्ती संघ ने ‘मिशन ओलंपिक’ 2020 और 2024 के लिए महिला पहलवानों की ट्रेनिंग के लिए इसे राज्य के मुख्य केंद्र के तौर पर मान्यता दी थी.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/Maharashtra State Wrestling Association)

नई दिल्ली: पुणे के जोग महाराज व्यायामशाला (जेएमवी) में प्रशिक्षण ले रही 40 से 50 लड़कियों के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने और भारत के लिए कुश्ती में पदक जीतने की उम्मीदें दिन ब दिन धूमिल हो रही हैं, क्योंकि भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) द्वारा अपने अधिकार में लेने के बावजूद जेएमवी में उन्हें लगभग पांच वर्षों से कोई कोच नहीं मिला है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र में आखिरी कोच समीक्षा खरब थीं, जिन्हें 2017 में नियुक्त किया गया था. वह नियुक्ति भी एक साल से अधिक के इंतजार के बाद हुई थी. जॉइन करने के कुछ ही समय बाद डेढ़ साल के भीतर खरब ने पद छोड़ दिया और लगभग पांच साल से उनकी जगह पर कोई रिप्लेसमेंट नहीं भेजा गया.

अखाड़े के संस्थापक दिनेश गुंड ने केंद्रीय खेल और युवा मामलों के मंत्री अनुराग ठाकुर को एक पत्र सौंपकर एक नए कोच का अनुरोध किया था. उन्होंने साई को ईमेल के माध्यम से कोच के लिए अनुरोध भी भेजा है, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

गुंड ने बताया, ‘पिछले साल मंत्री ने पुणे का दौरा किया और हमसे वादा किया कि दिल्ली पहुंचने के बाद वह सबसे पहले हमारे लिए एक कोच भेजेंगे. यहां हमारी सभी लड़कियों ने उन्हें इसकी जरूरत के बारे में अवगत कराया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ.’

साई, मुंबई में रिकॉर्ड्स की संरक्षक भाविका जाभारे, जो जेवीएम के साथ बातचीत कर रही हैं, ने कहा, ‘मैंने उन्हें दिसंबर के तीसरे सप्ताह में सूचित किया था कि अखाड़े में एक नई महिला कोच नियुक्त करने का आदेश आ गया है. वे अपने वर्तमान कर्तव्यों से मुक्त होने के बाद शामिल हो जाएंगी.’

एक अंतरराष्ट्रीय कुश्ती रेफरी रहे गुंड ने 2007 में यह अखाड़ा शुरू किया था. वह एक चैंपियनशिप में पहली भारतीय महिला पहलवान सोनिका कलीराम को देखकर प्रेरित हुए थे. आज तक इस केंद्र की महिलाओं ने 15 अंतरराष्ट्रीय पदक और सौ से अधिक राष्ट्रीय स्तर के पदक जीते हैं.

जालना की कोमल गढ़वे ने सुना था कि यह केंद्र कुश्ती के प्रशिक्षण के लिए एक बेहतरीन जगह है और इसलिए चार साल पहले अकादमी में शामिल हुईं. उसका अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट खेलने और जीतने का सपना है.

उन्होंने कहा, ‘मैं हमेशा से खेलों में रुचि रखती थी और मेरे पिता चाहते थे कि मैं पहलवान बनूं, इसलिए मैं यहां आई. लेकिन अब मैं सीनियर्स के साथ अभ्यास करती हूं. जब मैं शामिल हुई तो थोड़े समय के लिए एक पुरुष कोच थे. हालांकि अब, अपने दम पर अभ्यास करते समय मुझे समझ नहीं आता कि विभिन्न तकनीकों पर कैसे काम किया जाए.’

यही हाल 14 साल की अनुष्का वाडकर का भी है, जो चार साल से केंद्र में हैं. उसने कहा, ‘हमारे पास साई से कोई कोच नहीं है. इसके अभाव में मुझे समझ नहीं आता कि मैं रोज़ कौन-सी छोटी-छोटी गलतियां करती हूं और उनमें सुधार कैसे करूं.’

केंद्र की एक खिलाडी श्रावणी भालेराव ने 2022 में खाशाबा जाधव राज्य स्तरीय कुश्ती टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक जीता. श्रावणी पिछले सात वर्षों से केंद्र से जुड़ी हुई हैं.

गुंड ने कहा, ‘श्रावणी, कुछ छात्रों के साथ अभी शानदार फॉर्म में हैं, लेकिन अंतिम प्रयास अभी भी बाकी है. पिछले कुछ वर्षों में शामिल हुईं लगभग 15 लड़कियां यहां अपने पहले दिन से ही बिना कोच के प्रशिक्षण ले रही हैं. जबकि 30 लड़कियों को साई द्वारा यहां प्रशिक्षण के लिए चुना गया था, उनमें से कुछ स्थानीय छात्र हैं.’

वर्ष 2015 में साई ने गुड़मंडी (दिल्ली), शाहबाद दौलतपुर (दिल्ली), हिसार (हरियाणा) और अलीपुर (दिल्ली) स्थित चार अन्य ‘अखाड़ों’ के साथ जेएमवी को अपने अंतर्गत लिया था. महाराष्ट्र राज्य कुश्ती संघ (एमएसडब्ल्यूए) ने ‘मिशन ओलंपिक’ 2020 और 2024 के लिए महिला पहलवानों को प्रशिक्षित करने के लिए जेएमवी को राज्य में मुख्य केंद्र के रूप में मान्यता दी थी.

गुंड ने कहा, ‘महाराष्ट्र के सभी केंद्रों में कोच हैं, केवल हमारी लड़कियां परेशान हैं. एक अंतरराष्ट्रीय रेफरी के रूप में मैं अधिकतर समय बाहर यात्रा कर रहा होता हूं और भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं इसलिए मैं हमेशा यहां नहीं रहता.  यहां तक कि एक कोच भी पर्याप्त होगा क्योंकि अभी, वे खुद ही प्रशिक्षण ले रहे हैं और कभी-कभी सीनियर्स भी इसमें शामिल होते हैं.’