झारखंड: घोषणा के चार साल बाद भी हेमंत सोरेन सरकार ने पत्थलगड़ी संबंधित सभी मामले वापस नहीं लिए

झारखंड जनाधिकार महासभा की ओर से कहा गया है कि खूंटी ज़िले में पत्थलगड़ी आंदोलन से संबंधित दर्ज 5 केस अब तक वापस नहीं लिए गए हैं. इनमें से एक मामला दिवंगत फादर स्टेन स्वामी 20 सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों से भी संबंधित है. संगठन ने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार ने इन मामलों को वापस लेने की मांग की.

हेमंत सोरेन. (फोटो साभार: फेसबुक)

झारखंड जनाधिकार महासभा की ओर से कहा गया है कि खूंटी ज़िले में पत्थलगड़ी आंदोलन से संबंधित दर्ज 5 केस अब तक वापस नहीं लिए गए हैं. इनमें से एक मामला दिवंगत फादर स्टेन स्वामी 20 सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों से भी संबंधित है. संगठन ने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार ने इन मामलों को वापस लेने की मांग की.

हेमंत सोरेन. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत झारखंड के खूंटी के पुलिस अधीक्षक (एसपी) द्वारा हाल में दी गई जानकारी के अनुसार अभी भी इस जिले में पत्थलगड़ी आंदोलन के संबंध में दर्ज 5 केस वापस नहीं लिए गए हैं. इनमें से एक केस ​दिवंगत फादर स्टेन स्वामी समेत 20 सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों से भी संबंधित है.

झारखंड जनाधिकार महासभा की ओर से इस संबंध में जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया गया है कि वर्तमान आरटीआई के जवाब के अनुसार, राज्य की हेमंत सोरेन सरकार के कार्यकाल में भी मार्च 2020 में खूंटी में एक और पत्थलगड़ी संबंधित मामला दर्ज किया गया था.

इसके अनुसार, खूंटी में पिछली सरकार द्वारा दर्ज कुल 21 मामलों में 16 वापस हो चुके हैं. मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तुरंत बाद 29 दिसंबर 2019 को हेमंत सोरेन ने पत्थलगड़ी से संबंधित सभी केस वापस लेने की घोषणा की थी.

विज्ञप्ति के अनुसार, पूर्ववर्ती रघुबर दास की भाजपा सरकार ने पत्थलगड़ी आंदोलन के विरुद्ध बड़े पैमाने पर पुलिसिया हिंसा और दमनात्मक कार्रवाई की थी. इस सरकार ने आंदोलन से जुड़े आदिवासियों व अनेक पारंपरिक ग्राम प्रधानों के विरुद्ध कई केस दर्ज किए थे, जो तथ्यों पर आधारित नहीं थे.

इसके मुताबिक, पुलिस ने लगभग 200 नामजद लोगों और 10,000 से भी अधिक अज्ञात लोगों के खिलाफ तमाम आरोपों के तहत केस दर्ज किए थे, जिसमें भीड़ को उकसाना, सरकारी अफसरों के काम में बाधा डालना, समाज में अशांति फैलाना, आपराधिक भय पैदा करना और राजद्रोह के आरोप भी शामिल थे.

महासभा की ओर से कहा गया है कि तत्कालीन रघुबर दास सरकार द्वारा राज्य में पत्थलगड़ी संबंधित कुल 28 मामले दर्ज किए गए थे. खूंटी जिले में 21, सरायकेला-खरसांवा जिले में 5 और पश्चिमी सिंहभूम जिले में 2 केस दर्ज किए गए थे.

झारखंड जनाधिकार महासभा ने कहा कि हालांकि मामलों को वापस लेने में कई साल लगे, लेकिन इस बात का दुख की बात है कि अब भी 5 मामले लंबित हैं. फादर स्टेन स्वामी पर मोदी सरकार द्वारा किए गए अत्याचार पर मुख्यमंत्री सोरेन ने मुखर होकर विरोध किया था, लेकिन अभी तक उन पर पूर्ववर्ती रघुबर दास सरकार द्वारा दर्ज फर्जी मामले की वापसी नही की गई है.

महासभा ने पत्थलगड़ी संबंधित मामलों में न्याय न मिलने की बात भी कही.

संगठन ने कहा कि यह भी चिंताजनक है कि रघुबर दास सरकार के दौरान पत्थलगड़ी संबंधित राजकीय दमन से पीड़ित ग्रामीणों को अब तक न्याय नहीं मिला है. घाघरा गांव की गर्भवती महिला आश्रिता मुंडू को सुरक्षा बलों द्वारा पीटा गया था, उनकी बच्ची विकलांग पैदा हुई, लेकिन अब तक उन्हें कोई सहायता प्राप्त नहीं हुई.

आगे कहा गया कि घाघरा में हुई हिंसा के दोषियों और बिरसा मुंडा और अब्राहम सोय जैसे मारे गए आदिवासी के मामले के दोषियों को अब तक पकड़ा नहीं जा सका है. इसके अलावा पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े कई लोगों, पारंपरिक ग्राम प्रधान और सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसे अमित टोपनो, सुखराम मुंडा व रामजी मुंडा की इस दौरान हत्या हो गई थी, लेकिन अब तक पुलिस द्वारा दोषियों को गिरफ्तार नहीं किया गया है.

महासभा ने कहा कि पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान उठाए गए गंभीर मुद्दों जैसे आदिवासियों के लिए विशेष कानून व प्रावधानों (पेसा, 5वीं अनुसूची, भूमि अधिग्रहण कानून, सीएनटी कानून आदि) का व्यापक उल्लंघन, आदिवासी दर्शन को दरकिनार करना, आदिवासियों का प्रशासन, पुलिस व्यवस्था और गैर-आदिवासियों द्वारा शोषण आदि पर राज्य सरकार द्वारा चार सालों में अपेक्षित कार्रवाई नहीं की गई है.

संगठन ने हेमंत सोरेन सरकार से मांग की है कि पत्थलगड़ी आंदोलन संबंधित शेष पांच मामलों को तुरंत वापस लिया जाए. खूंटी में हुए मानवाधिकार हनन के मामलों में कार्रवाई की जाए व पीड़ितों को मुआवजा दिया जाए. साथ ही आदिवासियों के लिए विशेष कानून और प्रावधानों (जैसे पेसा, 5वीं अनुसूची, भूमि अधिग्रहण कानून, सीएनटी कानून आदि) को सख्ती से लागू किया जाए.

बता दें कि, पत्थलगड़ी आंदोलन 2017-18 में शुरू हुआ था. इसमें जिले के बाहर के गांवों में विशाल पत्थर की पट्टियां बनाई गईं और ग्राम सभा को एकमात्र संप्रभु अधिकार घोषित किया गया. पट्टिकाओं में पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम या पीईएसए के शिलालेख थे, जिन्हें आदिवासी राज्य से अपनी स्वतंत्रता का दावा करने और अपने अधिकारों और संस्कृति का दावा करते थे.

आंदोलन की शुरुआत होने के बाद कई ग्रामीणों ने आरोप लगाया था कि उन्हें ‘पुलिस क्रूरता या राज्य के दमन’ का सामना करना पड़ा. 172 लोगों के खिलाफ अन्य मामलों के साथ राजद्रोह के कुल 19 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से पुलिस ने 96 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी मांगी थी.

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