प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटित अयोध्या धाम जंक्शन रेलवे स्टेशन से महज़ पांच किलोमीटर दूर स्थित इसी शहर में आने वाला आचार्य नरेंद्र देव नगर रेलवे स्टेशन बदहाल है. राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह से पहले जगमग कर रही अयोध्या की चमक इस स्टेशन तक नहीं पहुंच पाई है, जो सामान्य यात्री सुविधाओं, साफ-सफाई और रंग-रोगन से भी वंचित है.
बीते शनिवार (30 दिसंबर) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महर्षि वाल्मीकि इंटरनेशनल एयरपोर्ट और अयोध्या धाम जंक्शन रेलवे स्टेशन (जो एक-दो दिन पहले तक क्रमश: मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम इंटरनेशनल एयरपोर्ट और अयोध्या जंक्शन रेलवे स्टेशन के नाम से जाने जाते थे) के उद्घाटन के लिए अयोध्या पहुंचे तो देश की ‘मुख्यधारा’ का मीडिया 1990-92 के दौर में जा पहुंचा.
इन दिनों उसने जो रीति-नीति अपना रखी है, उसके मद्देनजर जानकारों को उसका यहां जा पहुंचना प्रधानमंत्री के अयोध्या पहुंचने से ज्यादा स्वाभाविक लग रहा था. अस्वाभाविक तो तब लगता, जब वह वर्तमान में रहकर वस्तुनिष्ठता बरतता और अपने दर्शकों और पाठकों को प्रधानमंत्री के ‘अयोध्या इवेंट’ के सारे पहलुओं से पेशेवर अंदाज में वाकिफ कराता.
जो भी हो, कई दिन पहले से वह सिर्फ इतना बताने की धुन में मगन था कि दुल्हन की तरह सजी अयोध्या प्रधानमंत्री के आगमन को लेकर न सिर्फ भावविभोर है, बल्कि आतुर होकर पलक पांवड़े बिछाए हुए उनकी राह निहार रही है. दूसरी ओर ‘सूर्यस्तंभों’ से जगमग कर उसकी रातों को इस तरह दिन कर दिया गया है कि उसके दिन सोने के हो गए हैं और रातें चांदी की!
अफसोस कि इसके बावजूद लंबे रोड शो के साथ उद्घाटन व जनसभा समेत प्रधानमंत्री के सारे कार्यक्रमों में ‘हर्षातिरेक में डूबी अपार भीड़ को उनके जयकारे लगाती और उन पर पुष्पवर्षा करती दिखाने की मीडिया की हसरत पूरी नहीं हुई. क्योंकि भाजपा नेताओं द्वारा अनुनय-विनय करके और सरकारी अमले द्वारा सरकारी योजनाओं के लाभों से वंचित कर दिए जाने का डर दिखाकर लाई गई भीड़ अपार नहीं हो पाई.
फरमान जारी करके बुलाए गए विभिन्न स्कूल-कॉलेजों के छात्रों की उपस्थिति के बावजूद कड़ी सुरक्षा, यातायात प्रतिबंधों और शीतलहरी पर ठीकरें फोड़ने की नौबत आ गई.
गजब यह कि इसके बावजूद मीडिया ने ‘इवेंट’ के कई और पहलुओं को अपनी नजरों से ओझल किए रखा – जान-बूझकर सबकी नजरों से ओझल किए रखने के ‘उद्देश्य’ से.
यही कारण था कि प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटित अयोध्या धाम जंक्शन रेलवे स्टेशन (बकौल मीडिया: जो पारंपरिक वास्तुकला व राम मंदिर की झलक दिखलाता है, जिसके शीर्ष पर शाही मुकुट जैसी एक संरचना बनी हुई है, जिसकी दीवार पर धनुष चित्रित है और जो सुविधाओं के लिहाज से एयरपोर्टों को भी मात देता है) से महज पांच किलोमीटर दूर स्थित अयोध्या के आचार्य नरेंद्र देव नगर रेलवे स्टेशन की बेंचों पर बैठे कुछ बुजुर्ग ‘चकित’ थे कि समूची अयोध्या को जगमग बता रहे मीडिया ने अयोध्या की सीमाएं कितनी संकुचित कर डाली हैं!
उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि उसने ऐसा क्यों किया है? क्योंकि जिस पार्टी या उसकी सरकारों के ‘शुभ-शुभ’ की चिंता में वह ऐसा कर रहा था, वह अयोध्या की सीमा को बहुत सिकोड़ती है तो भी पंचकोसी परिक्रमा की परिधि से कम नहीं करती-कभी 14 कोसी परिक्रमा को उसकी सीमा बताती है, कभी 84 कोसी परिक्रमा को.
2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला सुनाया और मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में किसी प्रमुख स्थान पर मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ भूमि देने को कहा था, तो योगी आदित्यनाथ सरकार ने अयोध्या जिले को उसकी सीमा मानकर अयोध्या शहर से 20 किलोमीटर दूर स्थित धन्नीपुर गांव में वह भूमि उन्हें दी थी.
ये बुजुर्ग परस्पर एक दूजे से पूछ रहे थे कि इस मीडिया ने इनमें से किसी भी सीमा को मान्यता देने के बजाय अयोध्या की नई सीमा क्यों बना डाली है? अयोध्या की जो जगर-मगर ‘एयरपोर्ट’ और ‘विश्वस्तरीय’ अयोध्या धाम जंक्शन से पांच किलोमीटर की दूरी भी नही तय कर पाई है और उसके उतने ही हिस्से तक सीमित है, जिसे चैनलों के कैमरे देख सकते है, मीडिया ने उसे ही समूची अयोध्या की जगर-मगर क्यों मान लिया है? क्या जगर-मगर से पूरी तरह वंचित यह आचार्य नरेंद्र देव नगर रेलवे स्टेशन, जो सामान्य यात्री सुविधाओं, इर्द-गिर्द फैली कंटीली झाड़ियों की साफ-सफाई, भवनों व बोर्डों के रंग-रोगन से भी वंचित है, अयोध्या में नहीं है?
तभी एक बुजुर्ग ने दूसरों को सुनाकर कहा, ‘यह स्टेशन तो अपने नाम को रो रहा है!’
‘नाम को रो रहा है?’ दूसरे बुजुर्ग ने चाैंककर पूछा तो उसका जवाब था, ‘और नहीं तो क्या? इसका नाम आचार्य नरेंद्र देव के नाम पर जो है. बेचारे मार्क्सवादी थे, इसलिए कांग्रेसियों ने उन्हें 1949 में ही अयोध्या से चुनाव जीतने लायक नहीं समझा था-धर्म की ध्वजा ऊंची रखने के लिए हराकर दम दिया था. अब भाजपाई उनसे कम धार्मिक तो हैं नहीं कि अपनी अयोध्या की जगर-मगर इतनी आसानी से उनके नाम वाले रेलवे स्टेशन के हिस्से आने दें. यही बहुत है कि वे उनका नाम हटाकर स्टेशन का कोई और नाम नहीं रख दे रहे. वरना उन्हें एयरपोर्ट के नाम से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का नाम हटाकर महर्षि वाल्मीकि का नाम लाने में लाभ दिखा तो इस ‘नेक’ काम में तनिक भी देर नहीं की.’
उसकी बात सुनकर तीसरे बुजुर्ग ने प्रति-प्रश्न सा उछाला, ‘लेकिन जो गुलाबबाड़ी मैदान कभी शहर की शान हुआ करता था, उसके साथ तो आचार्य का नाम नहीं जुड़ा, फिर उसे ही क्यों कूड़ा घर बना डाला गया है?’
पहले बुजुर्ग ने मुस्कुराकर उत्तर दिया, ‘अब इतने भोले भी न बनो. तुम्हें मालूम है कि गुलाबबाड़ी किसकी याद दिलाती है- यह भी कि क्योंकर जगर-मगर करती अयोध्या में जगह-जगह गर्द-गुबार, धूल-मिट्टी और कूड़ा-कर्कट फैला हुआ है?
एक अन्य बुजुर्ग ने उसकी बात में एक नई बात जोड़ी, ‘अभी तीन-चार रोज पहले मैंने राम की पैड़ी पर सफाई अभियान ऐसा आगाज देखा, जैसा इस पैड़ी ने 1985 में अपने बनने के बाद से कभी नहीं देखा होगा! योगी राज में शुरू हुए भव्य दीपोत्सवों के बाद भी नहीं, जब वह टूटे-फूटे दीयों, उनसे गिरे तेल और उसकी फिसलन व गंदगी से अट जाती है.’
‘बताओ, क्या देखा?’
‘यही कि विधायकों और संगठन पदाधिकारियों समेत जिले के समूचे भारतीय जनता पार्टी संगठन ने सुबह-सुबह उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में पैड़ी पर खडे होकर झाड़ू उठा रखा है. उप-मुख्यमंत्री कह रहे थे कि पार्टीजनों को 30 दिसंबर तक सफाई के लक्ष्य के प्रति खुद को समर्पित किए रखना है, ताकि प्रधानमंत्री आएं तो अयोध्या उन्हें अपनी गरिमा और स्वच्छ भारत अभियान की मंशा के अनुरूप गंदगी से पूरी तरह मुक्त दिखे.’
वे कहते हैं, ‘मैं कौतूहलवश, रुककर देखने लगा तो एक भाजपा कार्यकर्ता ने मेरे पास आकर कहा कि प्रधानमंत्री की यात्रा से पूर्व अयोध्या को स्वच्छता से मंडित करने का पार्टी का यह सफाई अभियान वैसा ही है जैसे सूर्य के उदय से पहले पौ फटते ही सुबह का उजाला दस्तक दे देता है.’
तभी एक और बुजुर्ग ने किंचित नाराज होते हुए कहा, ‘उस कार्यकर्ता ने जो नहीं बताया, वह मैं बता देता हूं. कई दिन चला वह सफाई अभियान वास्तव में भाजपा के नियंत्रण वाले अयोध्या नगर निगम की सफाई व्यवस्था की बदहाली का सर्टिफिकेट था. उसकी व्यवस्था बदहाल न होती, तो प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले अयोध्या में इतनी गंदगी होती ही कैसे कि उप-मुख्यमंत्री समेत समूची पार्टी को झाड़ू लेकर उसे साफ करने में लगना पड़े?’
नाराज बुजुर्ग आगे बाले, ‘तिस पर विडंबना यह कि पार्टी के लोग सचमुच सफाई नहीं कर रहे थे. बस, झाड़ू के साथ फोटो खिंचा रहे थे. आगे लाभ की उम्मीद थी उन्हें उससे, इसलिए.’
गंदगी और सफाई की बात खत्म हुई तो श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा बांटे जा रहे 22 जनवरी के रामलला के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के निमंत्रण-पत्रों की ओर मुड़ गई.
एक बुजुर्ग ने कहा, ‘गजब है! जिन्हें निमंत्रण मिल जा रहा है, वे ट्रस्ट के आभारी हुए जा रहे हैं, लेकिन जिन्हें नहीं मिल रहा, उनके गिले-शिकवों का तो कोई अंत नहीं है. शिकवे करने वालों में ट्रस्ट के ‘अपने’ भी हैं और ‘पराये’ भी.’
दूसरे बुजुर्ग ने कहा, ‘कांग्रेस के भूतपूर्व सांसद निर्मल खत्री को तो यह निमंत्रण बीते रविवार को ही मिल गया. उन्होंने आह्लादित होकर उन्हें निमंत्रित करने गए ट्रस्ट के प्रतिनिधियों के साथ फोटो भी खिंचाया. उनके आह्लादित होने का कारण भी था. भाजपा के पूर्व सांसद विनय कटियार को निमंत्रण नहीं मिला और उन्हें मिल गया! समाजवादी पार्टी के अयोध्या के दो भूतपूर्व विधायकों जयशंकर पांडेय और तेज नारायण पांडेय ‘पवन’ को भी नहीं ही मिला, जबकि ये तीनों अयोध्या में ही रहते हैं.’
वे आगे कहते हैं, ‘विनय कटियार के लोग कह रहे हैं कि ट्रस्ट की ओर से किसी ने उनसे औपचारिक संपर्क तक नहीं किया, जबकि वे राम मंदिर आंदोलन में अग्रिम पंक्ति में थे और बजरंग दल के संस्थापक हैं.’
एक और बुजुर्ग ने जोड़ा, ‘रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में पक्षकार और रामलला के सखा रहे त्रिलोकी नाथ पांडेय, जो अब इस संसार में नहीं हैं, उनके परिजन दुखी हैं कि उन्हें भी निमंत्रण नहीं मिला. उनका बेटा कहता है कि पहले उससे कहा गया था कि निमंत्रण दिया जाएगा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में रामलला को प्राण-प्रतिष्ठित विग्रह, वहीं त्रिलोकी नाथ पांडेय को उनका सखा व पक्षकार माना और इसी आधार पर रामलला के पक्ष में फैसला सुनाया था.’
उन्होंने आगे कहा, ‘सुल्तानपुर जिले के जयसिंहपुर कोतवाली क्षेत्र के सरतेजपुर गांव निवासी रामबहादुर वर्मा के परिजनों का दर्द भी ऐसा ही है. 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवा के दौरान वर्मा को पुलिस की गोली लगी थी और इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई थी. उनके गांव में उनकी समाधि भी बनी है और भाजपाई सरकारों के मंत्री उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने आते रहे हैं. लेकिन उनके परिजनों को भी निमंत्रण नहीं मिला है.’
लेकिन जब एक और बुजुर्ग ने कहा कि ट्रस्ट तो कह रहा है कि सनातन धर्म में इस तरह के अवसरों पर बिना आमंत्रण पूजा के शामिल होना भी सौभाग्य माना जाता है, इसलिए किसी को भी उसके आमंत्रण की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए और 22 जनवरी को अपने निकट के मंदिर को ही अयोध्या का मंदिर मानकर वहां जाना और 11 बजे से दो बजे के बीच ‘उद्घाटन-पूजा’ में वर्चुअली शामिल होना चाहिए, तो दूसरे ने उसे यह कहकर चुप करा दिया कि यह तो साफ-साफ दुरंगापन है. ट्रस्ट को बताना चाहिए कि अपने वीवीआईपी अतिथियों को निमंत्रण पत्र भेजकर इस ‘सौभाग्य’ से वंचित क्यों कर रहा है?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)