उर्दू साहित्य अकादमी पुरस्कार पर विवाद, वरिष्ठ लेखकों ने जूरी सदस्यों को ‘अयोग्य’ बताया

उर्दू के कई नामचीन लेखकों ने साल 2023 के लिए दिए गए साहित्य अकादमी पुरस्कार को लेकर ‘अयोग्य जूरी सदस्यों’ द्वारा इस साल नामांकित वरिष्ठ लेखकों की रचनाओं को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाया है. उन्होंने अकादमी के उर्दू एडवाइजरी बोर्ड के संयोजक चंद्रभान ख़याल को तत्काल प्रभाव से हटाने की मांग भी की है.

(फोटो साभार: फेसबुक/@SahityaAkademi)

उर्दू के कई नामचीन लेखकों ने साल 2023 के लिए दिए गए साहित्य अकादमी पुरस्कार को लेकर ‘अयोग्य जूरी सदस्यों’ द्वारा इस साल नामांकित वरिष्ठ लेखकों की रचनाओं को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाया है. उन्होंने अकादमी के उर्दू एडवाइजरी बोर्ड के संयोजक चंद्रभान ख़याल को तत्काल प्रभाव से हटाने की मांग भी की है.

(फोटो साभार: फेसबुक/@SahityaAkademi)

नई दिल्ली: उर्दू में वर्ष 2023 के लिए दिए जाने वाले वार्षिक साहित्य अकादमी पुरस्कार पर विवाद खड़ा हो गया है. उर्दू के कई नामचीन लेखकों ने कथित तौर पर संबंधों के आधार पर निर्णायक मंडल की नियुक्ति और ‘अयोग्य जूरी सदस्यों’ द्वारा इस साल नामांकित वरिष्ठ लेखकों की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाते हुए अकादमी के उर्दू एडवाइजरी बोर्ड के संयोजक चंद्रभान ख़याल को तत्काल प्रभाव से हटाने की मांग की है.

बता दें कि 20 दिसंबर को उर्दू में सादिक़ा नवाब सहर के उपन्यास ‘राजदेव की अमराई’ समेत 24 भारतीय भाषाओं के लेखकों को साहित्य अकादमी पुरस्कार देने का ऐलान किया गया था. 12 मार्च को होने वाले पुरस्कार समारोह में ये सम्मान दिया जाएगा.

अकादमी के हालिया फ़ैसले और ‘अयोग्य जूरी सदस्यों’ की नियुक्ति पर असंतोष और रोष का इज़हार करते हुए देशभर के 250 से ज़्यादा लोगों ने एक ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर करते हुए केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी के समक्ष अपना विरोध दर्ज करवाया है.

प्रतिष्ठित जेसीबी पुरस्कार विजेता ख़ालिद जावेद, ‘आजकल’ उर्दू के पूर्व संपादक ख़ुर्शीद अकरम, कथाकार और उर्दू जर्नल ‘इस्बात’ के संपादक अशअर नजमी, अबरार मुजीब (झारखंड), ज़हीर अनवर (कोलकाता), क़मर सिद्दिक़ी (मुंबई), नजमा रहमानी (डीयू में उर्दू विभाग की अध्यक्ष), निगार अज़ीम (दिल्ली), जमाल ओवैसी (बिहार), अकरम नक़्क़ाश (गुलबर्गा), असरार गांधी (उत्तर प्रदेश), शफ़क़ सुपुरी (श्रीनगर), असलम परवेज़ और इकरामुल हक़ (मुंबई) जैसे साहित्यकारों और अन्य साहित्य प्रेमियों ने अवॉर्ड देने की प्रक्रिया में अपारदर्शिता और धांधली का आरोप लगाते हुए इस सिलसिले में पूछे गए एक सवाल के जवाब का हवाला देते हुए उर्दू एडवाइजरी बोर्ड के संयोजक के अमर्यादित व्यवहार को भी रेखांकित किया है.

इस सिलसिले में  जारी एक बयान में कहा गया, ‘साहित्य अकादमी एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय संस्था है, जिसका उद्देश्य अन्य भारतीय भाषाओं और उर्दू में उच्च साहित्यिक मानदंडों को स्थापित करना है. लेकिन अकादमी ने इसका कोई ख़याल नहीं रखा.’

बयान में निर्णायक मंडल के तीन सदस्यों में से दो को सीधे-सीधे अयोग्य ठहराते हुए कहा गया है कि इनके नाम और काम से उर्दू आबादी किसी भी तरह से परिचित नहीं है.

बता दें कि निर्णायक मंडल में शामिल कृष्ण कुमार ‘तूर’ को एक प्रतिष्ठित शायर के तौर पर जाना जाता है, जबकि बाक़ी दो सदस्य- महताब आलम और तैयब अली उर्दू अदब की दुनिया में कोई खास पहचान नहीं रखते हैं.

हस्ताक्षकर्ताओं ने यह भी कहा है कि इस साल पुरस्कार के लिए नामांकित तमाम किताबें कथा साहित्य (फिक्शन) या गद्य से संबंधित थीं. उनका इशारा कविता या शायरी की किताबें शामिल न होने से है.

ज्ञात हो कि सूची में शामिल 11 किताबों में कथा साहित्य के संदर्भ में अल्लाह मियां का कारख़ाना, बुल्लाह की जाना मैं कौन, चमरासुर, एक पानी ख़ंजर में और हजुरआमा कुछ चर्चित किताबें समझी जाती हैं.

बयान में कहा गया है, ‘इस बारे में जब उर्दू एडवाइजरी बोर्ड के संयोजक चंद्रभान ख़याल से पूछा गया तो उन्होंने ‘अमर्यादित व्यवहार’ का परिचय देते हुए जवाब दिया कि, ‘उर्दू इस मुल्क की बड़ी ज़बान है. यहां अदबी हैसियत वाले सिर्फ़ दस-बीस लोग ही नहीं हज़ारों हैं. क्या ज़रूरी है कि जिन्हें आप जानते हैं वही अदबी हैसियत के मालिक हैं.’

इस पर सवाल उठाते हुए बयान में कहा गया है, ‘जो शख़्स लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर किए गए सवालों का ढंग से जवाब नहीं दे सकता, वो उर्दू के प्रतिनिधित्व का हक़ कैसे अदा कर सकता है? एक लोकतांत्रिक संस्था में भाषा और साहित्य की नुमाइंदगी की ज़िम्मेदारी ऐसे शख़्स को कैसे दी जा सकती है जो अपनी ही संस्था के लोकतांत्रिक सिद्धांतों का सम्मान नहीं करता?’

संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी से संयोजक को बेदख़ल करने की मांग करते हुए कहा गया है, ‘किसी निष्पक्ष और ज़िम्मेदार शख़्स को इस पद पर तैनात किया जाए, ताकि भविष्य में निर्णायक मंडल में ऐसे लोगों का चयन निश्चित किया जा सके जो किताबों पर अपनी राय रखने में सक्षम हों और फ़ैसला लेने का सामर्थ्य रखते हों.’

बयान में पहले ही आलोचकों और पाठकों की नज़र में प्रसिद्धि पा चुकी कई किताबों को नज़रअंदाज़ किए जाने की तरफ़ इशारा करते हुए कहा गया है, ‘निर्णायक मंडल के योग्य और निष्पक्ष सदस्य जिस किताब को भी पुरस्कार के लिए चुनें, उनके पास ये साहित्यिक औचित्य होना चाहिए कि उन्होंने किन बुनियादों पर किसी ख़ास किताब का चयन किया है.’

बता दें कि पुरुस्कृत उपन्यास के अलावा ज़किया मशहदी, ख़ालिद जावेद, अतीक़ुल्लाह, शमोएल अहमद, ग़ज़नफ़र, शारिब रुदौलवी, मोहसिन ख़ान, जावेद सिद्दिक़ी, दिवंगत नसीर अहमद ख़ान और शब्बीर अहमद की किताबें सूची में थीं.

बहरहाल, इस सिलसिले में कार्रवाई की अपील करते हुए प्रकिया को पारदर्शी और लोकतांत्रिक बनाने के लिए संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी से दख़ल देने की मांग की गई है.

उल्लेखनीय है कि क़ुर्रतुलऐन हैदर के बाद सादिक़ा दूसरी ऐसी उर्दू लेखिका हैं जिन्हें ये पुरस्कार दिया गया है. हैदर को साल 1967 में ‘पतझड़ की आवाज़’ के लिए यह सम्मान मिला था.

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