सुप्रीम कोर्ट जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों की अदालत की निगरानी में जांच की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. शीर्ष अदालत ने कहा है कि जब सेबी के नियामक क्षेत्र की बात आती है तो अदालत के पास सीमित क्षेत्राधिकार है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (3 जनवरी) को कहा कि जब भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के नियामक क्षेत्र की बात आती है तो अदालत के पास सीमित क्षेत्राधिकार है, इसलिए बोर्ड को अडानी समूह पर लगे आरोपों की अपनी जांच पूरी करने की अनुमति दी जानी चाहिए, जैसा कि उसने वादा किया है.
रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने यह भी कहा कि जांच को सेबी से एसआईटी को ट्रांसफर करने या सेबी को उसके नियमों को रद्द करने का आदेश देने का कोई आधार नहीं है.
लाइव लॉ के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अदालती आदेश के निष्कर्षों को पढ़ते हुए कहा, ‘सेबी ने 22 में से 20 मामलों में जांच पूरी कर ली है. सॉलिसिटर जनरल के आश्वासन को ध्यान में रखते हुए, हम सेबी को अन्य दो मामलों में 3 महीने के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश देते हैं.’
अदालत ने हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट जारी होने के बाद ऑर्गनाइज़्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट द्वारा की गई जांच का भी उल्लेख किया और कहा कि वह इस पर निर्भरता को खारिज कर रही है, क्योंकि ‘वैधानिक नियामक पर सवाल उठाने के लिए अखबार की खबरों और तीसरे पक्ष के संगठनों पर निर्भरता भरोसा नहीं जगाती है. उन्हें इनपुट के रूप में देखा जा सकता है लेकिन सेबी की जांच पर संदेह करने के लिए निर्णायक सबूत नहीं हैं.’
अदालत ने याचिकाकर्ताओं के उस दावे कि अदालत द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति के सदस्यों में हितों का टकराव था, को भी खारिज कर दिया और कहा कि इसका ‘कोई प्रमाण नहीं’ है.
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘भारत सरकार और सेबी भारतीय निवेशकों के हित को मजबूत करने के लिए समिति की सिफारिशों पर विचार करेंगे.’
लाइव लॉ के अनुसार, उन्होंने आगे कहा, ‘भारत सरकार और सेबी इस बात पर गौर करेंगे कि शॉर्ट सेलिंग पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट द्वारा कानून का कोई उल्लंघन हुआ है या नहीं और यदि हुआ है, तो कानून के अनुसार कार्रवाई करें.’
अदालत ने याचिकाकर्ताओं पर ‘अप्रमाणिक’ रिपोर्टों पर भरोसा करने और इस तरह जनहित याचिका का दुरुपयोग करने का भी आरोप लगाया.
बार एंड बेंच के अनुसार, पीठ ने कहा, ‘पीआईएल का अविष्कार एक हथियार के रूप में किया गया था, तकि आम नागिरक वैध कार्यों को इस अदालत के समक्ष उठा सके. हालांकि, अप्रमाणित रिपोर्ट वाली याचिकाओं पर सुनवाई नहीं की जानी चाहिए और इसलिए बार के सदस्यों को इसके प्रति सचेत रहना चाहिए.’
उल्लेखनीय है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ पिछले साल जनवरी में अमेरिकी शोध संस्थान हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह के खिलाफ लगाए गए आरोपों की अदालत की निगरानी में जांच की मांग करने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. पीठ ने 24 नवंबर 2023 को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था.
पीठ ने 24 नवंबर को करीब दो घंटे तक चली मामले की सुनवाई के दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से कहा था कि सेबी को शेयर बाजार को शॉर्ट-सेलिंग जैसी घटनाओं से होने वाली अस्थिरता से बचाने के लिए कदम उठाने चाहिए. सीजेआई ने शीर्ष अदालत द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति के सदस्यों की निष्पक्षता पर याचिकाकर्ताओं द्वारा लगाए गए आरोपों पर असहमति जाहिर की थी.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट अमेरिकी वित्तीय शोध कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा बीते वर्ष प्रकाशित रिपोर्ट से संबंधित चार याचिकाओं पर विचार कर रहा है, जिसमें शेयर की कीमतों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर अडानी समूह पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया है.
इस रिपोर्ट के कारण अडानी समूह की विभिन्न कंपनियों के शेयर मूल्य में गिरावट आई थी और समूह को कथित तौर पर 100 बिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ था.
गौरतलब है कि जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है.
अडानी समूह ने इन आरोपों के जवाब में कहा था कि यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं. इस जवाब पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग समूह की ओर से कहा गया था कि धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढका नहीं जा सकता.
बीते वर्ष मार्च की शुरुआत में, सुप्रीम कोर्ट ने यह देखने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एएम सप्रे की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था कि क्या हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में अडानी समूह द्वारा धोखाधड़ी और हेरफेर की ओर इशारा करने के बाद नियामक विफलता के कारण निवेशकों को पैसा गंवाना पड़ा है.
समिति में पूर्व बैंकर केवी कामथ और ओपी भट्ट, इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि, प्रतिभूति वकील सोमशेखर सुंदरेसन और सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जेपी देवधर भी हैं. इस समिति का गठन तब किया गया था जब शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार द्वारा समिति के सदस्यों के रूप में सीलबंद लिफाफे में सुझाए गए नामों को खारिज कर दिया था और अपनी विशेषज्ञ समिति के गठन की घोषणा की थी.
छह सदस्यीय समिति ने 8 मई 2023 को सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट शीर्ष अदालत को सौंपी थी. हालांकि, मामले के एक याचिकाकर्ता ने सितंबर में आरोप लगाया था कि समिति में कई लोगों के हितों का टकराव है और इसलिए अदालत को समिति का पुनर्गठन करना चाहिए. ऐसा किया नहीं गया.
इस बीच सेबी भी अपनी जांच कर रही थी. उम्मीद की जा रही थी कि वह 14 अगस्त को अपनी रिपोर्ट समिति को सौंप देगी, लेकिन उसे अपनी जांच पूरी करने के लिए और समय दिया गया है.
सेबी ने 25 अगस्त को अपनी स्टेटस रिपोर्ट सौंपी थी. लेकिन सेबी की स्टेटस रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई है. स्थिति रिपोर्ट में कहा गया है कि 24 में से 22 जांच खत्म हो गई हैं. मौखिक टिप्पणी में पीठ ने कहा था कि इस मामले में सेबी की जांच पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है.
बता दें कि शीर्ष अदालत के समक्ष अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा की याचिका में हिंडनबर्ग रिसर्च के संस्थापक नाथन एंडरसन और भारत में उनके सहयोगियों के खिलाफ जांच करने और एफआईआर दर्ज करने के लिए सेबी और केंद्रीय गृह मंत्रालय को निर्देश देने की मांग की गई है.
इस संबंध में दूसरी याचिका अधिवक्ता विशाल तिवारी द्वारा दायर की गई थी, जिसमें शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच की मांग की गई थी.
कांग्रेस नेता डॉ. जया ठाकुर की याचिका में अडानी समूह की कंपनियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग के अलावा भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) और भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) द्वारा कथित रूप से बढ़ी हुईं कीमतों पर कंपनी के शेयरों में निवेश करने के फैसले पर सवाल उठाया गया है.