जहां संविधान में धर्मनिरपेक्षता निहित है, वहां धर्म नागरिकता का आधार नहीं हो सकता: मनीष तिवारी

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी का यह बयान तब आया है, जब एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि सीएए के नियमों को लोकसभा चुनावों की घोषणा से ‘बहुत पहले’ अधिसूचित कर दिया जाएगा. दिसंबर 2019 में संसद द्वारा सीएए पारित होने और राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिलने के बाद देश के कुछ हिस्सों में इसके ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे.

मनीष तिवारी. (फोटो साभार: एएनआई)

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी का यह बयान तब आया है, जब एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि सीएए के नियमों को लोकसभा चुनावों की घोषणा से ‘बहुत पहले’ अधिसूचित कर दिया जाएगा. दिसंबर 2019 में संसद द्वारा सीएए पारित होने और राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिलने के बाद देश के कुछ हिस्सों में इसके ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे.

मनीष तिवारी. (फोटो साभार: एएनआई)

नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने बीते बुधवार (3 जनवरी) को कहा कि जिस देश के संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता निहित है, वहां धर्म नागरिकता का आधार नहीं हो सकता.

उनका यह बयान तब आया है जब एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 (सीएए) के नियमों को लोकसभा चुनावों की घोषणा से ‘बहुत पहले’ अधिसूचित कर दिया जाएगा.

नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए सीएए के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से सताए गए ऐसे गैर-मुस्लिम प्रवासियों – हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई – को भारतीय राष्ट्रीयता प्रदान की जाएगी, जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत आ गए थे.

दिसंबर 2019 में संसद द्वारा सीएए पारित होने और राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद देश के कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे.

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बीते मंगलवार (2 जनवरी) को कहा था कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 के नियमों को लोकसभा चुनाव की घोषणा से ‘काफी पहले’ अधिसूचित कर दिया जाएगा.

सरकारी अधिकारी की टिप्पणी पर एक मीडिया रिपोर्ट को सोशल साइट एक्स पर साझा करते हुए मनीष तिवारी ने कहा, ‘जिस देश के संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता निहित है, क्या धर्म नागरिकता का आधार हो सकता है? इसका जवाब ‘न’ है.’

पंजाब से सांसद तिवारी ने कहा, ‘दिसंबर 2019 में जब मैंने लोकसभा में सीएए विधेयक के विरोध का नेतृत्व किया था, तब यह मेरे तर्क का केंद्र बिंदु था. यह सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती में मुख्य प्रश्न है.’

उन्होंने कहा, ‘काल्पनिक रूप से कल कोई सरकार यह तर्क दे सकती है कि धर्म नागरिकता का आधार होगा, यहां तक ​​कि क्षेत्रीय रूप से भी, इसके लिए जन्म स्थान या भारत के संविधान या नागरिकता अधिनियम में नागरिकता के लिए अन्य मानदंड नहीं होगा.’

तिवारी ने कहा कि हमारे पड़ोस में धार्मिक उत्पीड़न पर काबू पाने के लिए उचित वर्गीकरण के नाम पर, उन्हें उम्मीद है कि किसी अन्य ‘कपटपूर्ण योजना’ के लिए जमीन तैयार नहीं की जा रही है.