हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अडानी समूह पर लगे आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में सेबी को बेदाग़ बताया गया है, जबकि समूह पर लगे आरोपों को लेकर सवाल सेबी के नियामक के बतौर कामकाज पर भी हैं.
अडानी समूह पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है. इस फैसले को समझने से पहले यह समझना पड़ेगा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले की सुनवाई पर क्या कुछ कहा था? सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति और कॉरपोरेट के बीच गठजोड़ को लेकर किसी भी तरह की छानबीन की बात नहीं की.
अडानी के पूरे साम्राज्य की बुनियाद में नरेंद्र मोदी की सत्ता से मिले नाजायज सहयोग की संभावना साफ-साफ दिखाई दे रही थी, मगर इसका भी सुप्रीम कोर्ट ने कोई जिक्र नहीं किया. कांग्रेस पार्टी ने ‘हम अडानी के हैं कौन‘ नाम से सौ गंभीर सवाल पूछ दिए थे, पहली नजर में देखने में यह सभी सवाल ठोस दिखाई देते हैं. इसका भी सुप्रीम कोर्ट ने कोई संज्ञान नहीं लिया.
कहां से शुरू हुआ अदालती मामला
मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद जिस तरह की अस्थिरता दिखी है उससे आम निवेशकों को सुरक्षित रखने के लिए लगता है कि मौजूदा नियामक ढांचे का एक 6 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति मूल्यांकन करे. सुप्रीम कोर्ट ने इस कमेटी को काम सौंपा है कि यह कमेटी बताए कि किन कारणों की वजह से हाल ही में बाजार में इतनी बड़ी अस्थिरता देखने को मिली है? इसके साथ सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को आदेश दिया कि वह छानबीन करे कि क्या सिक्योरिटीज कॉन्ट्रेक्ट रेगुलेशन के नियम 19 (A) का उल्लंघन हुआ?
नियम 19 ( A) का मतलब किसी पब्लिक लिस्टेड कंपनी के प्रमोटर 75% से ज्यादा शेयर अपने पास नहीं रख सकते हैं. अडानी समूह पर यही आरोप लगा है कि असलियत में अडानी समूह के प्रमोटरों के पास कंपनी के 75% से ज्यादा शेयर हैं. इसी वजह से स्टॉक हेराफेरी संभव हो सकी और अडानी समूह के प्रमोटर ने शेयरों की कीमत बढ़ाई.
क्या संबंधित पार्टी से जुड़े लेनदेन का खुलासा नहीं किया गया है? कानूनन क्या वह जानकारियां सेबी को उपलब्ध नहीं करवाई गई हैं जो संबंधित पार्टी से जुड़ी होती हैं? क्या मौजूदा कानून का उल्लंघन करते हुए स्टॉक की कीमतों में मैनिपुलेशन यानी किसी तरह का हेरफेर किया गया है? सेबी अपनी पूरी छानबीन की रिपोर्ट से जल्द से जल्द दो महीने के भीतर सुप्रीम कोर्ट को सौंपे.
आर्थिक मामलों के जानकार और फ्रंटलाइन में काम कर चुके पत्रकार वी. श्रीधर ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर ट्विटर पर लिखा था. उन्होंने लिखा था कि इस पूरा आदेश की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि सेबी को बेदाग कर दिया गया. हिंडनबर्ग के सभी आरोपों का मूल बिंदु यह है कि अडानी समूह के प्रमोटरों के पास नियम के मुताबिक जितनी इक्विटी होनी चाहिए उससे ज्यादा इक्विटी है. मतलब 75% की इक्विटी होनी चाहिए. मगर दूसरे मुल्क में फर्जी कंपनियां बनवाकर, उसमें अपना पैसा डालकर, फिर उस पैसे को अपनी कंपनी में निवेश कर अडानी समूह के प्रमोटरों ने 75% की निर्धारित सीमा तोड़ी है. आम जनता के लिए पहले से ही कम मौजूद इक्विटी और कम हुई है. सप्लाई कम और ज्यादा डिमांड का खेल-खेलकर स्टॉक में हेरफेर किया गया है. शेयर की कीमत बढ़ाई गई है. शेयर की बढ़ी हुई कीमत दिखाकर बढ़ा कर्जा लिया गया है. मोटे तौर पर देखा जाए तो यही वह आरोप है जिसकी बुनियाद पर अडानी समूह की सभी धांधलियां खड़ी होती हैं. शेयर की कीमतों की अस्थिरता पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जताई है. मगर यह तो कोई मुद्दा ही नहीं है. सेबी तो इस बात में भरोसा करने वाली संस्था है कि बाजार सबसे अच्छी तरह से जानता है. अगर किसी तरह के इंसाइडर ट्रेडिंग के नियमों का उल्लंघन नहीं हुआ है तो यह सेबी की जिम्मेदारी नहीं है कि वह शेयर की कीमतों को स्थिर करे.
श्रीधर कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने एक समूह के शेयर की कीमत गिरने पर तो चिंता जताई मगर उसका क्या जब फंडामेंटल कमजोर होने के बावजूद भी शेयर प्राइस आसमान छूने लगते हैं? अडानी समूह पर बहुत लंबे समय से आरोप लगते आएं हैं. इन आरोपों पर सेबी ने क्या किया? सेबी ने किस तरह की छानबीन की? इन सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को पूरी तरह से छूट दे दी है. मतलब सुप्रीम कोर्ट की निवेशकों की सुरक्षा की चिंता तो जायज है मगर सेबी के कामकाज लेकर जो छूट दी है वह ठीक नहीं है. पूंजी बाजार का नियामक होने के नाते यह सेबी की जिम्मेदारी बनती है कि अगर बाजार में किसी भी तरह की अनियमितता हो रही है तो वह सरकार की सभी संस्थाओं को साथ में लेकर छानबीन करें. पूरी दुनिया के सामने है कि अडानी समूह के मामले में सेबी ने नियामक निकाय होने का काम ढंग से नहीं किया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश से यह एहसास होता है कि सुप्रीम कोर्ट ने सेबी के साथ नरमी से व्यवहार किया है, खासकर तब जब सेबी भारतीय पूंजी बाजार की विश्वसनीयता की रक्षा करने में पूरी तरह से असफल साबित हुआ है.
विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में क्या था
ज्ञात हो कि इससे पहले मई 2023 में विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की थी. तब ज्यादातर मीडिया में कहा गया कि विशेषज्ञ समिति ने अडानी समूह को क्लीन चिट दे दी है. मगर द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के चौथे अध्याय में सेबी के बतौर नियामक परफॉर्मेंस का जिक्र है. इस अध्याय से यह संकेत निकलता है कि अडानी समूह के भीतर बहुत ही गंभीर आर्थिक अपराध की संभावना छिपी हुई है.
विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट बताती है कि अडानी समूह के खिलाफ शिकायत मिलने के बाद अक्टूबर 2020 से सेबी ने 13 फॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टमेंट यानी विदेशी निवेश की छानबीन शुरू की. टैक्स हैवन देश में मौजूद इन निवेशों को जोड़ देने से यह साफ-साफ पता लग रहा था कि प्रमोटरों के पास 75% से ज्यादा शेयर हैं. यह सेबी के नियम का उल्लंघन है. मगर इसके बावजूद सेबी ने अडानी समूह के खिलाफ कारण बताओ नोटिस नहीं जारी किया.सेबी अपने संदेह और जांच के बावजूद, आज तक इन विदेशी निवेशकों के तौर पर मौजूद आखिरी लाभ पाने वाले व्यक्ति का पता लगाने में असफल रही है.
विशेषज्ञ समिति के मुताबिक सेबी यह काम करने में इसलिए असमर्थ रही है क्योंकि विदेशी निवेश और लिस्टिंग ऑब्लिगेशन डिस्क्लोज़र रेगुलेशन (listing obligation dislosure regulation) से जुड़े सेबी के नियमों में साल 2018 और 2019 के बाद इस तरीके का संशोधन किया गया कि विदेश में मौजूद निवेशक के अपारदर्शी होने के बारे में और इसका फायदा जिए मिल रहा है, उसके बारे में पता न चले. सेबी ईडी और सीबीडीटी के पास भी गई ताकि वह इन विदेशी निवेशों की छानबीन करें. मगर दोनों ने सेबी से कहा कि जब तक वह पीएमएलए यानी मनी लांड्रिंग कानून के तहत केस दर्ज नहीं करते, वे मामले की छानबीन नहीं कर सकते हैं.
जहां तक सेबी की जांच की बात है तो सेबी का को दी गई समयसीमा 14 अगस्त 2023 को ही खत्म गई थी. सेबी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह अडानी समूह से जुड़े 24 मामलों की पड़ताल कर रही है.
क्या कहा शीर्ष अदालत ने
इस पूरे बैकग्राउंड के साथ सुप्रीम कोर्ट के पास अडानी समूह का मामला नवंबर 2023 को सुनवाई के लिए पहुंचा.
याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण की तरफ से दलील दी गई की सेबी अडानी समूह के खिलाफ लगाए गए जिन आरोपों की छानबीन कर रहा है वह कोर्ट की देखरेख में विशेष जांच दल (एसआईटी) की निगरानी में की जाए. साथ में भूषण यह भी दलील दी कि सेबी से संबंधित विदेशी निवेश और लिस्टिंग ऑब्लिगेशन डिस्क्लोज़र रेगुलेशन उन नियमों में संशोधन कर दिया जाए जिनकी वजह से अंतिम लाभार्थी का पता लगाने में अड़चन पैदा हो रही है.
इन सभी दलीलों पर सुनवाई करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिनों अपना फैसला दिया है कि सेबी अपने नियमिकीय ढांचे में परिवर्तन करें यह आदेश देने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास नहीं है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ऐसा आदेश तभी दे सकता है जब किसी नियामक ढांचे से मूल अधिकार, संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन होता हो. या नियामक ढांचे का कोई नियम मनमाना हो. ऐसा कोई भी वाजिब तर्क नहीं मिलता है जिसकी वजह से इन दोनों से जुड़े नियमों में बदलाव के आदेश दिया जाए.
इसने आगे कहा कि सेबी अडानी समूह के 24 मामलों में से 22 मामलों में छानबीन पूरा कर चुका है. हम इसे अभी 3 महीने का और वक्त देते हैं ताकि वह सभी मामलों की छानबीन पूरी कर रिपोर्ट सौंपे. सुप्रीम कोर्ट किसी पड़ताल को एसआईटी या सीबीआई को तभी सौंप सकता है, जब ऐसा दिखता हो कि जो संस्था जांच कर रही है वह ईमानदारी से पड़ताल नहीं कर रही है या जानबूझकर जांच में देरी की जा रही है. सुप्रीम कोर्ट को ऐसा नहीं लगता है सेबी ऐसा कुछ भी कर रहा है. इसलिए इस जांच को सेबी ही पूरा करे.
स्टॉक हेराफेरी के आरोपों पर बात नहीं हुई
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यह भी ध्यान देने वाली बात है कि अडानी समूह के खिलाफ लगाए गए स्टॉक हेराफेरी के आरोपों की जांच अब तक नहीं हुई है. सेबी को मिली समयसीमा ख़त्म हो चुकी है. इसे पड़ताल के लिए 10 महीने से ज्यादा का वक्त मिला, इसके आगे 3 महीने का और समय दे दिया गया. जब 10 महीने में जांच नहीं हो पाई तो 3 महीने में क्या ही बदल जाएगा? हालांकि यह ज़रूर होगा कि इन तीन महीनों में लोकसभा चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी.
सेबी को अपनी पड़ताल यह नहीं पता चला कि वह 13 बेनामी शेल कंपनियां कौन थीं, जिन्होंने अडानी समूह में बहुत बड़ा निवेश किया है. मगर पड़ताल की अवधि के बीच अगस्त 2023 में ओसीआरपी की एक पड़ताल ने इन 13 बेनामी कंपनियों में से दो कंपनियों के लाभार्थी या मालिक की छानबीन कर यह पता लगाया कि यह सारी कंपनियां किसी न किसी तरह से अडानी समूह के प्रमोटरों से ही जुड़ी हुई है. इन सबका कुल स्टॉक 75% से ज्यादा बनता है. यह सेबी के नियम का उल्लंघन है.
अक्टूबर 2023 में फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट से यह पता चला कि जिस कोयले को अडानी समूह की कंपनी विदेश से आयात कर रही है, उससे जुड़ा इनवॉइस से ऊंची कीमत वसूली जा रही है. इस तरीके से अडानी समूह ने तकरीबन 12,000 करोड रुपये विदेश में पहुंचा है और वह फिर से वह पैसा अडानी समूह के शेयरों में लगाया गया. सुप्रीम कोर्ट ने इन रिपोर्ट को खारिज कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट को यह हक है कि वह इस तरह की रिपोर्ट को यह कहकर खारिज कर दे कि यह सेबी की जांच का विकल्प नहीं हो सकता है. मगर यह तो सवाल बनता ही है कि जब अडानी समूह को लेकर के खुलासे पर खुलासे हो रहे हैं, उस समय सेबी किस तरीके से काम कर रहा है?