नई दिल्ली: केंद्र सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (सीईआरटी-इन) को सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के दायरे से छूट देने वाले दस्तावेजी रिकॉर्ड का खुलासा करने से इनकार कर दिया है.
सीईआरटी कंप्यूटर सुरक्षा संबंधी घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने के लिए राष्ट्रीय नोडल एजेंसी है.
रिपोर्ट के मुताबिक, यह जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने 23 नवंबर को एक गजट अधिसूचना जारी होने के बाद मांगी थी, जिसमें कहा गया था कि सीईआरटी को शामिल करने के लिए आरटीआई अधिनियम की दूसरी अनुसूची में संशोधन किया गया है.
इसका अर्थ यह है कि भ्रष्टाचार या मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों के मामले में मांगी गई जानकारी के अलावा सीईआरटी को आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों से छूट दी जाएगी.
अपने आरटीआई आवेदन में वेंकटेश नायक ने आरटीआई अधिनियम की दूसरी अनुसूची के संशोधन से संबंधित कैबिनेट नोट की एक प्रति मांगी थी, सचिवों की समिति के विचार के लिए रखे गए नोट में उक्त संशोधन से संबंधित प्रस्ताव शामिल था. साथ ही, उक्त संशोधन प्रस्ताव के संबंध में अब तक हुए अंतर-मंत्रालयी परामर्श से संबंधित सभी दस्तावेजों की एक प्रति, उक्त संशोधन प्रस्ताव के संबंध में सभी फाइल नोटिंग और कागजी तथा इलेक्ट्रॉनिक रूप में हुए पत्राचार की भी मांग की गई थी.
उन्होंने उपरोक्त संशोधन के संबंध में आरटीआई अधिनियम की दूसरी अनुसूची के तहत नए संगठनों को अधिसूचित करने की प्रक्रिया के संबंध में 2015 में तत्कालीन संयुक्त सचिव देवेश चतुर्वेदी की अध्यक्षता वाली डीओपीटी समिति की सिफारिशों के अनुपालन को प्रदर्शित करने वाले सभी आधिकारिक रिकॉर्ड की एक प्रति भी मांगी.
नायक के आरटीआई अनुरोध में 2015 में समिति की सिफारिशों का हवाला दिया गया था कि किसी भी निकाय को आरटीआई अधिनियम से छूट देने से पहले व्यापक सार्वजनिक परामर्श सुनिश्चित करने के लिए उचित दिशानिर्देश अपनाए जाएं.
इस समिति ने यह भी सिफारिश की थी कि सरकार को धारा 24 (2) के तहत अधिसूचना जारी करने से पहले प्रस्तावित निकाय का नाम, इसके कामकाज का विवरण और धारा 24 के तहत निर्धारित आधारों पर सरकार का प्रस्ताव कैसे प्रतिक्रिया देता है, पर सार्वजनिक रूप से स्पष्टीकरण देना चाहिए.
समिति का कहना था कि प्रस्ताव पर आपत्ति उठाने के लिए जनता को एक निर्दिष्ट समयसीमा दी जानी चाहिए. यह आरटीआई अधिनियम की धारा 4 (सी) तथा (डी) और सरकार की पूर्व-विधान परामर्श नीति (पीसीएलपी) के तहत आवश्यक ‘पूर्व खुलासे’ के अनुरूप भी हो.
इसके अलावा, केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा धारा 24 के तहत अधिसूचनाओं में व्यापक और स्पष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिए कि जिस संगठन को छूट दी जा रही है वह ‘खुफिया और सुरक्षा संगठनों’ की परिभाषा में कैसे फिट बैठता है.
नायक के आवेदन पर बीते 28 दिसंबर को अपने जवाब में डीओपीटी ने कहा कि ‘आरटीआई अधिनियम की धारा 24 में प्रावधान है कि इस अधिनियम में शामिल कुछ भी आरटीआई अधिनियम की दूसरी अनुसूची में निर्दिष्ट खुफिया और सुरक्षा संगठनों पर लागू नहीं होगा.’
इसमें आगे कहा गया: ‘आरटीआई अधिनियम के दायरे से भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम को छूट देने का प्रस्ताव फ़ाइल संख्या 1/3/2021-आईआर II में निपटाया गया है जो आरटीआई अधिनियम 2005 की दूसरी अनुसूची में संशोधन से संबंधित है.’
इसमें यह भी कहा गया कि सीईआरटी को दूसरी अनुसूची में शामिल करने की जानकारी ‘गुप्त प्रकृति’ की है और इसे आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (ए) के तहत छूट प्राप्त है अर्थात यह ऐसी जानकारी है जिसके खुलासे से भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों, विदेशी राज्य के साथ संबंध पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा या अपराध भड़केगा.
साथ ही कहा गया है, ‘इसके अलावा, सूचना को आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(i) के तहत भी छूट प्राप्त है, जिसमें सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श का रिकॉर्ड होता है और जो सचिवों की समिति के नोट का हिस्सा होती है, जो अपने-आप में गुप्त है.’
इसमें आगे कहा गया है कि 2015 की समिति की सिफारिशों ‘सरकार द्वारा स्वीकारी नहीं गईं. इसलिए, उक्त सिफारिशों के अनुपालन का सवाल ही नहीं उठता.’
द वायर से बात करते हुए नायक ने कहा कि दस्तावेज़ उपलब्ध कराने से इनकार करना ‘संदेहास्पद’ है.
उन्होंने कहा, ‘ऐसा इसलिए है क्योंकि जब एनडीए सरकार ने स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड (एसएफसी) को छूट प्रदान करने वाली सूची में शामिल करने का फैसला किया था तो सीपीआईओ ने मुझे फाइल नोटिंग और पत्राचार और सचिवों की समिति के सामने रखे गए नोट समेत सभी जानकारी उपलब्ध कराई थी.’
उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसा लगता है कि सरकार हमारे सुरक्षा हितों के लिए परमाणु हथियारों सहित हमारी रणनीतिक और रक्षा संपत्तियों की देखभाल करने वाले एसएफसी की तुलना में सीईआरटी-एन को अधिक रणनीतिक मान रही है.’