मुस्लिम संगठन ने कहा- राम मंदिर के उद्घाटन समारोह का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए

मुस्लिम संगठन ‘जमात-ए-इस्लामी हिंद’ के उपाध्यक्ष सलीम इंजीनियर ने कहा कि श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव की मंदिर के उद्घाटन की तुलना हमारे स्वतंत्रता दिवस से करने की टिप्पणी गलत और शरारतपूर्ण है. यह ‘हम बनाम वे’ का नैरेटिव स्थापित करने और धार्मिक आधार पर देश का ध्रुवीकरण करने की कोशिश करता है.

राम मंदिर का प्रस्तावित डिज़ाइन. (फोटो साभार: फेसबुक)

मुस्लिम संगठन ‘जमात-ए-इस्लामी हिंद’ के उपाध्यक्ष सलीम इंजीनियर ने कहा कि श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव की मंदिर के उद्घाटन की तुलना हमारे स्वतंत्रता दिवस से करने की टिप्पणी गलत और शरारतपूर्ण है. यह ‘हम बनाम वे’ का नैरेटिव स्थापित करने और धार्मिक आधार पर देश का ध्रुवीकरण करने की कोशिश करता है.

राम मंदिर का प्रस्तावित डिज़ाइन. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: प्रमुख मुस्लिम संस्था, ‘जमात-ए-इस्लामी हिंद’ ने आगामी 22 जनवरी को प्रस्तावित राम मंदिर के उद्घाटन समारोह को ‘राजनीतिक प्रचार’ और ‘चुनावी लाभ प्राप्त करने का साधन’ बनने पर चिंता व्यक्त की है.

मीडिया से बात करते हुए जमात के उपाध्यक्ष सलीम इंजीनियर ने मंदिर के नाम पर ध्रुवीकरण के प्रयासों के प्रति आगाह किया.

द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा, ‘श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव की मंदिर के आगामी उद्घाटन की तुलना हमारे स्वतंत्रता दिवस से करने की टिप्पणी गलत और शरारतपूर्ण है. यह ‘हम बनाम वे’ का नैरेटिव स्थापित करने और धार्मिक आधार पर देश का ध्रुवीकरण करने की कोशिश करता है. जमात-ए-इस्लामी हिंद घटना की ऐसी व्याख्याओं की निंदा करता है.’

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में बाबरी मस्जिद स्थल पर बने मंदिर में आगामी समारोह का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम का इस्तेमाल ‘राजनीतिकरण, संरक्षण और ध्रुवीकरण के लिए नहीं किया जाना चाहिए’.

उन्होंने दावा किया कि ऐसा लगता है कि राम मंदिर का उद्घाटन ‘भाजपा का चुनावी कार्यक्रम’ और ‘प्रधानमंत्री के लिए राजनीतिक रैली’ बन गया है.

सलीम इं​जीनियर ने आगे कहा, ‘चीजें अलग हो सकती थीं, अगर कार्यक्रम का प्रबंधन मंदिर ट्रस्ट द्वारा किया जाता. राजनेताओं, नौकरशाहों और निर्वाचित प्रतिनिधियों को दूर रहने के लिए कहा जाना चाहिए था. कोई विवाद नहीं होता, अगर उद्घाटन बिना किसी राजनीतिक भाषण, पोस्टर और नारे के एक धार्मिक समारोह तक ही सीमित होता.’

उन्होंने ‘हमारे देश के संवैधानिक लोकतंत्र से असहिष्णु और बहुसंख्यकवादी लोकतंत्र की ओर लगातार खिसकने’ पर चिंता व्यक्त की.

उन्होंने कहा, ‘धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाली विभाजनकारी बयानबाजी के साथ अति-राष्ट्रवाद और लोकलुभावनवाद की कथा ध्रुवीकरण और समाज में बहुलवाद और सहिष्णुता में लगातार गिरावट का कारण बन रही है.’

उन्होंने कहा, ‘एक राष्ट्र, एक भाषा और एक संस्कृति’ की दिशा में कदम भारत को एक असहिष्णु लोकतंत्र में बदल रहा है और विश्व नेता बनने की हमारी आकांक्षाओं को नुकसान पहुंचा रहा है. न्याय और लोकतंत्र के बिना, वैश्विक नेतृत्व की हमारी तलाश पूरी नहीं हो सकती है.’