नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य जंगल में लाखों पेड़ों के काटे जाने की आशंका के चलते कई संगठनों ने परसा कोयला खदान बंद करने की मांग करते हुए रविवार को सरगुजा जिले के हरिहरपुर गांव में अपना विरोध प्रदर्शन तेज कर दिया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इसी बीच, कांग्रेस की छत्तीसगढ़ इकाई के प्रमुख दीपक बैज, चार कांग्रेस विधायकों और आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं ने भाजपा सरकार से यह वादा करने को कहा है कि पिछली कांग्रेस सरकार द्वारा लेमरू वन अभ्यारण्य के रूप में घोषित 2,000 वर्ग किमी के क्षेत्र को छुआ नहीं जाएगा.
प्रदर्शनकारियों ने ‘भाजपा सरकार, मोदी सरकार होश में आओ’, ‘पुलिस का दमन नहीं चलेगा’, ‘लड़ेंगे, जीतेंगे’ जैसे नारे लगाए.
छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रमुख दीपक बैज ने रविवार को आरोप लगाया कि नवनिर्वाचित भाजपा सरकार कॉरपोरेट्स के हित में काम कर रही है और कोयला खदान विस्तार परियोजना के लिए जैव विविधता से समृद्ध हसदेव अरण्य क्षेत्र में पेड़ों को काटा जा रहा है.
बस्तर से लोकसभा सदस्य बैज ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय पर निशाना साधते हुए कहा, ‘मैंने कहा था कि भाजपा हमारे प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने के लिए आदिवासी चेहरे का इस्तेमाल करेगी. एक तरफ विष्णु देव और दूसरी तरफ हसदेव. आप तय करें कि किसे बचाना है. हसदेव को बचाने के लिए हम आपके (प्रदर्शनकारियों) साथ हैं. हमने हसदेव को बचाने के लिए प्रस्ताव पारित किया, केंद्र को पत्र लिखा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, बैज ने प्रदर्शनकारियों से कहा, ‘पिछले साल चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने कहा था कि अगर लोग ईवीएम पर कमल (भाजपा) का बटन दबाएंगे, तो वीवीपैट से अडानी निकल आएंगे और यह कथन राज्य में भाजपा सरकार बनने के बाद सच साबित हुआ है.’
उन्होंने आरोप लगाया कि विष्णु देव साय सरकार ने जल, जंगल, जमीन और खनिज संसाधनों सहित प्राकृतिक संसाधनों को अडानी (समूह) को सौंपना शुरू कर दिया है.
बैज ने मुख्यमंत्री साय के इस दावे को खारिज कर दिया कि जैव विविधता से भरपूर हसदेव अरण्य में कोयला खदान के लिए पेड़ों की कटाई की अनुमति पिछली कांग्रेस सरकार ने दी थी. उन्होंने आरोप लगाया, ‘वास्तविकता यह है कि यह अनुमति और पर्यावरण मंजूरी मोदी सरकार द्वारा दी गई थी.’
31 अक्टूबर 2022 को छत्तीसगढ़ के वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अपर सचिव ने भारत सरकार के वन महानिरीक्षक को पत्र लिखकर परसा ओपन कास्ट कोयला खदान उत्खनन पर रोक लगाने और वनों की कटाई के प्रस्ताव को रद्द करने का आग्रह किया था.
उन्होंने कहा, ‘छत्तीसगढ़ विधानसभा द्वारा 26 जुलाई, 2022 को एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था कि हसदेव क्षेत्र में खनन गतिविधियां नहीं की जाएंगी और केंद्र को भेजा जाएगा.’
बैज ने दावा किया कि दिसंबर 2023 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से अब तक हसदेव क्षेत्र में 50,000 पेड़ काटे गए हैं और कहा कि कुल 3 लाख पेड़ काटे जाएंगे.
हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा पूर्व और केते बासन (पीईकेबी) चरण-द्वितीय विस्तार कोयला खदान के लिए ताजा पेड़ काटने की कवायद पिछले साल 21 दिसंबर को पुलिस सुरक्षा घेरे के बीच शुरू हुई थी.
स्थानीय प्रशासन ने दावा किया था कि उसके पास पीईकेबी-II में पेड़ काटने के लिए सभी आवश्यक अनुमतियां हैं, जो पीईकेबी-I खदान का विस्तार है.
हसदेव अरण्य एक घना जंगल है, जो 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है. इस घने जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पांच अरब टन कोयला दबा है. इलाके में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, जिसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं.
हसदेव अरण्य जंगल को 2010 में कोयला मंत्रालय एवं पर्यावरण एवं जल मंत्रालय के संयुक्त शोध के आधार पर 2010 में पूरी तरह से ‘नो गो एरिया’ घोषित किया था. हालांकि, इस फैसले को कुछ महीनों में ही रद्द कर दिया गया था और खनन के पहले चरण को मंजूरी दे दी गई थी, जिसमें बाद 2013 में खनन शुरू हो गया था.
केंद्रीय कोयला मंत्रालय ने 2011-12 में विभिन्न कंपनियों को 200 से अधिक कोयला ब्लॉक आवंटित किए थे, जिनमें से कुछ हसदेव वन में भी थे. केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने वन मंजूरी भी दे दी थी. हालांकि, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 2014 में वन मंजूरी रद्द कर दी और सरकार से यह अध्ययन करने को कहा कि क्या वन्यजीवों और वनस्पतियों और जीवों के लिए कोई संरक्षण क्षेत्र बनाया जा सकता है.
सरकार ने भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) और भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) को अध्ययन का काम सौंपा.
2021 में डब्ल्यूआईआई ने हसदेव में कोयला खनन की अनुमति देने पर वन्यजीवों के लिए खतरे के बारे में चिंता व्यक्त की. आईसीएफआरई ने भी इसी तरह की चिंता व्यक्त की लेकिन एक संरक्षण क्षेत्र विकसित करने का विकल्प दिया जिसके बाहर खनन किया जा सकता है.
आईसीएफआरई की रिपोर्ट के आधार पर केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने हसदेव में कोयला खनन के लिए 2022 में नई वन मंजूरी दी.
छत्तीसगढ़ सरकार के एक प्रस्ताव के आधार पर कोयला मंत्रालय ने राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम (आरआरवीयूएन) को चार कोयला ब्लॉक आवंटित किए, जिसने खनन गतिविधियों के लिए अडानी समूह के साथ एक खदान विकास और संचालन समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.
अक्टूबर 2021 में ‘अवैध’ भूमि अधिग्रहण के विरोध में आदिवासी समुदायों के लगभग 350 लोगों द्वारा रायपुर तक 300 किलोमीटर पदयात्रा की गई थी और प्रस्तावित खदान के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया था.
वन विभाग ने मई 2022 में पीईकेबी चरण-2 कोयला खदान की शुरुआत करने के लिए पेड़ काटने की कवायद शुरू की थी, जिसका स्थानीय ग्रामीणों ने कड़ा विरोध किया था. बाद में इस कार्रवाई को रोक दिया गया था.