बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की पार्टी अवामी लीग ने रविवार को हुए आम चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया है. प्रधानमंत्री के तौर पर यह उनका लगातार चौथा कार्यकाल होगा. मुख्य विपक्षी दल बीएनपी ने शेख़ हसीना की सरकार पर अपने समर्थकों और विपक्षी राजनेताओं को निशाना बनाते हुए बड़ी संख्या में उनकी गिरफ़्तारी करने का आरोप लगाया है.
नई दिल्ली: मुख्य विपक्ष बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) द्वारा बहिष्कार और कम मतदान के बीच बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग ने आम चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया है. प्रधानमंत्री के तौर पर यह उनका लगातार चौथा कार्यकाल होगा.
बीएनपी ने 2018 के चुनावों में भाग लिया था, लेकिन 2014 में इससे दूर रही थी. बीएनपी ने इन चुनावों का बहिष्कार किया था क्योंकि शेख हसीना ने इस्तीफा देने और एक तटस्थ प्राधिकारी को चुनाव संचालन की अनुमति देने की उनकी मांगों को अस्वीकार कर दिया था.
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, हसीना बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी है, जो 1975 में अपने परिवार के अधिकांश सदस्यों के साथ एक सैन्य तख्तापलट में मारे गए थे. 76 वर्षीय हसीना पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बनीं और यह उनका कुल मिलाकर पांचवां कार्यकाल होगा.
साल 2001 के बाद से वह लगातार प्रधानमंत्री पद पर हैं.
सत्ता में अपने पिछले 15 वर्षों में उन्हें अर्थव्यवस्था और विशाल कपड़ा उद्योग में बदलाव लाने का श्रेय दिया गया है. साथ ही उन्होंने पड़ोसी म्यांमार में उत्पीड़न से भाग रहे रोहिंग्या मुसलमानों को आश्रय देने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रशंसा भी हासिल की है.
बांग्लादेशी नागरिक बड़े पैमाने पर रविवार (7 जनवरी) को हुए आम चुनावों से दूर रहे, जो हिंसा की भेंट चढ़ गया था. मुख्य चुनाव आयुक्त काजी हबीबुल अवल ने बताया कि मतदान बंद होने पर लगभग 40 प्रतिशत मतदान हुआ था, जबकि 2018 में पिछले चुनाव में 80 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था.
चुनाव आयोग द्वारा जारी अनौपचारिक परिणामों के अनुसार, सत्तारूढ़ अवामी लीग पार्टी ने 227 सीटों में से 167 सीटें जीतीं और बाकी सीटों के नतीजे अभी भी अघोषित हैं.
शेख हसीना ने खुद राजधानी ढाका से लगभग 165 किलोमीटर (103 मील) दूर अपने निर्वाचन क्षेत्र गोपालगंज से 2,49,962 वोट हासिल किए, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी को सिर्फ 469 वोट मिले.
हसीना ने रविवार को वोट डालने के बाद कहा था, ‘मैं यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश कर रही हूं कि इस देश में लोकतंत्र जारी रहे.’ उन्होंने कहा कि उनकी एकमात्र जवाबदेही बांग्लादेश के नागरिक के प्रति है.
अवामी लीग के महासचिव ओबैदुल कादिर ने कहा, ‘उन्होंने पार्टी नेताओं और समर्थकों को कोई विजय जुलूस नहीं निकालने या जश्न में शामिल नहीं होने का निर्देश दिया है.’
299 सीधे निर्वाचित संसदीय सीटों के लिए मतदान हुआ. एक स्वतंत्र उम्मीदवार की प्राकृतिक कारणों से मतदान से पहले मृत्यु हो जाने के बाद एक सीट पर चुनाव बाद में होगा.
सत्तारूढ़ पार्टी के विजेताओं में बांग्लादेश के पूर्व क्रिकेट कप्तान शाकिब अल हसन और मशरफे मुर्तजा भी शामिल थे. स्वतंत्र उम्मीदवारों, जिनमें से कई विभिन्न रैंकों के अवामी लीग पार्टी के सदस्य थे, ने 49 सीटें जीतीं.
मुख्य विपक्षी दल बीएनपी ने सत्तारूढ़ दल पर चुनाव को विश्वसनीय बनाने के लिए ‘डमी’ स्वतंत्र उम्मीदवारों को खड़ा करने का आरोप लगाया है. अवामी लीग ने आरोप से इनकार किया है.
इसके अलावा बीएनपी ने शेख हसीना की सरकार पर अपने समर्थकों और विपक्षी राजनेताओं को निशाना बनाते हुए एक बड़ी कार्रवाई करने का आरोप लगाया है. पार्टी ने दावा किया था कि हाल के महीनों में उनके 20,000 से अधिक सदस्यों को जेल में डाल दिया गया है. इनकी गिरफ्तारी चुनाव से पहले मनगढ़ंत आरोपों के तहत की गई है.
हालांकि सरकारी अधिकारी 20,000 विपक्ष समर्थकों की गिरफ्तारी के आंकड़े को खारिज करते हुए कहते हैं कि आंकड़ा बहुत कम है और गिरफ्तारियां राजनीतिक संबद्धता के कारण नहीं, बल्कि आगजनी जैसे विशेष आपराधिक आरोपों के तहत की गई हैं.
अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस ने बताया था कि बीते 5 जनवरी को अटॉर्नी जनरल एएम अमीन उद्दीन ने कहा कि 2,000 से 3,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. वहीं देश के कानून मंत्री ने इस हफ्ते बीबीसी को बताया था कि 10,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, बीएनपी ने रविवार तक देशभर में दो दिवसीय हड़ताल का आह्वान करते हुए लोगों से चुनाव से दूर रहने को कहा था. पार्टी ने कहा है कि कम मतदान उनके बहिष्कार के आह्वान की सफलता है.
वहीं, शेख हसीना ने विपक्ष पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों को भड़काने का आरोप लगाया है, जिसने अक्टूबर के अंत से ढाका को हिलाकर रख दिया है और कम से कम 14 लोगों की मौत हो गई है.
उनके आलोचक हसीना पर सत्तावाद, मानवाधिकारों के उल्लंघन, स्वतंत्र भाषण पर रोक और असहमति को दबाने का आरोप लगाते हैं.