प्रधानमंत्री की कई अनैतिक चुप्पियों पर राम नाम का पर्दा डाला जा रहा है, बिलक़ीस ने उसे हटा दिया

बिलक़ीस बानो की जीत भारत की उन महिलाओं और मर्दों को शर्मिंदा करती है जो इस केस पर इसलिए चुप हो गए क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी से सवाल करना पड़ता, उन्हें भाजपा से सवाल करना पड़ता.

बिलकीस बानो और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फाइल फोटो: द वायर और पीआईबी)

बिलक़ीस बानो की जीत भारत की उन महिलाओं और मर्दों को शर्मिंदा करती है जो इस केस पर इसलिए चुप हो गए क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी से सवाल करना पड़ता, उन्हें भाजपा से सवाल करना पड़ता.

बिलकीस बानो और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फाइल फोटो: द वायर और पीआईबी)

बिलकीस बानो के केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला तब आया है जब राम मंदिर के उद्घाटन के बहाने प्रधानमंत्री मोदी को विष्णु और शिव का अवतार बताया जा रहा है. राम की मर्यादा के प्रतीक के रूप में उन्हें स्थापित करने का प्रयास हो रहा है मगर इसी बीच सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने यह सवाल खड़ा कर दिया कि वे महापुरुष और दैविक अवतार होने के उत्तराधिकारी हैं भी या नहीं.

प्रधानमंत्री के नाते छोड़िए, एक सामान्य नागरिक के नाते उन्होंने हत्यारे और बलात्कारियों की रिहाई का विरोध नहीं किया. गुजरात चुनावों के समय हत्या और बलात्कार के दोषियों को माला पहना रहे थे, भाजपा के विधायक सीके राउलजी का बयान है कि ये ब्राह्मण हैं और इनके संस्कार अच्छे हैं. प्रधानमंत्री चुप रहे, उनकी मंत्री स्मृति ईरानी चुप रहीं.

जब आप इस केस का डिटेल पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि केवल हत्यारों और बलात्कारियों को नहीं बचाया जा रहा था, उस विचारधारा को भी बचाया जा रहा था जिसके नाम पर 11 लोगों ने बिलकीस के साथ बलात्कार किया, उसके परिवार के सात लोगों की हत्या की. सुप्रीम कोर्ट ने इस विचारधारा को भी रंगे हाथों धर लिया है. अब सवाल सुप्रीम कोर्ट के फैसले से भी बड़ा है.

गुजरात सरकार को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को, गृह मंत्री अमित शाह को सुप्रीम कोर्ट के इस एक फैसले से बचाने के लिए गोदी मीडिया क्या क्या करेगा, क्या आपको पता है? क्या इस फैसले को घर-घर पहुंचाएगा या फिर गोदी मीडिया राम मंदिर का कवरेज और बढ़ा देगा ताकि राम को घर-घर पहुंचाने के नाम पर भाजपा सरकार की इस करतूत को आप तक पहुंचने से रोक देगा. क्या यह सवाल करेगा कि गुजरात सरकार हत्यारों का साथ देती हुई पकड़ी गई है क्या मुख्यमंत्री से इस्तीफा मांगा जाएगा? किसी पर कार्रवाई होगी?

जिस समय रिहाई हुई उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल थे और आज भी है. क्या मीडिया प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से सवाल करेगा कि इतने गंभीर अपराधियों को रिहा करने की सिफारिश गृह मंत्रालय ने क्यों की? खुद गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि गृह मंत्रालय के कहने पर रिहा किए गए हैं.

आप भी ठीक से पढ़िए. सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भूंयान की पीठ ने कहा है कि गुजरात सरकार हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा पाए लोगों के साथ मिली हुई हैं. हमारा सवाल है क्या प्रधानमंत्री मोदी उस गुजरात सरकार के मुख्यमंत्री से इस्तीफा मांगेंगे, जिसके बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उसने हत्यारे और बलात्कारियों के साथ मिलकर काम किया.

जस्टिस नागरत्ना ने आदेश पढ़ते हुए कहा कि कोर्ट मानता है कि रिहाई का ऑर्डर देने का अधिकारक्षेत्र गुजरात सरकार का नहीं था, महाराष्ट्र सरकार का था. इसलिए कोर्ट ने रिहाई के फ़ैसले को ख़ारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि आरोपियों की आज़ादी पर अंकुश लगना जायज़ है. उन्होंने आज़ादी के अधिकार तभी खो दिया था जब दोषी पाए गए और जेल हुई. अगर उन्हें रिहाई चाहिए तो जेल में, क़ानून के दायरे में रहकर अपील करें.

कोर्ट ने कहा है कि हम मानते हैं कि कानून का शासन माने बिना इंसाफ़ नहीं किया जा सकता है. अगर ऐसा नहीं होगा तो कोर्ट के आदेश मिथ्या बन कर रहे जाएंगे. कोर्ट को इंसाफ़ करना है, इंसाफ़ से किनारा नहीं होना चाहिए है.

गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का सहारा लेते हुए इस मामले में रिहाई की थी. उस आदेश के अनुसार, रिहाई का अधिकार महाराष्ट्र सरकार से गुजरात सरकार को दिया गया, इस आधार पर कि अपराध गुजरात में हुआ था. सोमवार के अपने फ़ैसले में कोर्ट ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट से 13 मई 2022 का वो ऑर्डर फ्रॉड के माध्यम से प्राप्त किया गया, इसलिए वो ग़ैरक़ानूनी है और इसी कारण रिहाई का आदेश ख़ारिज किया जाता है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह एक क्लासिक केस है जब सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर का इस्तेमाल क़ानून को तोड़ने के लिए किया गया ताकि दोषियों की रिहाई हो सके. कोर्ट ने कहा है कि ये राज्य सरकार द्वारा विवेक के दुरूपयोग और सत्ता को हड़पने का मामला है. इस आधार पर भी इस आदेश को ख़ारिज किया जाना चाहिए.

आज राम की मर्यादा की सारी आम समझ दांव पर है. भाजपा की सरकार पर हत्या और बलात्कार के दोषियों के साथ मिलकर काम करने का आरोप नहीं बल्कि प्रमाण मिला है. कोर्ट ने गुजरात सरकार के फैसले को रद्द किया है. कहा है कि सरकार इन हत्यारों के साथ मिली हुई थी. बताइए किसी सरकार पर कब आपने सुना कि कोर्ट ने कहा हो कि वह हत्यारे और बलात्कारियों के साथ मिली हुई थी?

अब सवाल है क्या राम की मर्यादा का पालन किया जाएगा, संवैधानिक मर्यादा का तो हमने ज़िक्र ही नहीं किया क्योंकि करोड़ों रूपये झोंककर, लाखों कार्यकर्ता उतारकर देश को राम मय बनाया जा रहा है तो राम की मर्यादा की ही बात कर लेते हैं. क्या भाजपा के कार्यकर्ता, नेता और समर्थक इस बात को भी हजम कर जाएंगे. या ये सवाल करेंगे कि प्रधानमंत्री के राज्य गुजरात की भाजपा सरकार पर हत्यारे और बलात्कारियों के साथ मिलकर काम करने के प्रमाण मिले हैं तो ऐसे में प्रधानमंत्री को क्या करना चाहिए?

तब क्या करना चाहिए था और अब क्या करना चाहिए?

क्या घर-घर आ रहे इन कार्यकर्ताओं से देश की नारियां पूछेंगी कि राम की पूजा करते हैं लेकिन हत्यारे और बलात्कारियों को चुपके से रिहा करते हैं, प्रधानमंत्री बोलते क्यों नहीं, क्या यह सवाल इस देश की औरतें पूछेंगी या इस पर भी चुप रह जाएंगी. इस तरह के कार्यक्रमों से माहौल बनाया जा रहा है लेकिन क्या महिलाएं देख सकेंगी, देश की जनता को दिखेगा कि राम के नाम पर क्या क्या छिपाया जा रहा है?

सुप्रीम कोर्ट ने बिलकीस बानो के साथ बलात्कार करने वाले, उसकी बच्ची को मार देने वाले और अन्य रिश्तेदारों की हत्या जैसे आरोप में सज़ा पाए उन सभी 11 लोगों को जेल भेजने के आदेश दिए हैं, जिन्हें गुजरात चुनाव के समय रिहा किया गया था. उनकी स्वतंत्रता 15 अगस्त के दिन की गई. उस दिन आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा था और अमृत और आज़ादी दी जा रही थी हत्यारों को. अब दो सप्ताह के भीतर इन 11 दोषियों को आत्मसमर्पण करना पड़ेगा.

कोर्ट ने कहा है कि गुजरात सरकार का फैसला शक्तियों का दुरूपयोग था. आप सोचिए, यह दुरूपयोग किसके लिए किया गया जिन्हें हत्या के मामले में सज़ा सुनाई जा चुकी थी. क्या यह मामला राजनीतिक नहीं है. क्या बिना इनकी राजनीतिक ज़रूरत के कोई भी सरकार यह फैसला ले सकती है? कोर्ट ने कहा है कि गुजरात सरकार के पास ऐसा करने का कोई अधिकार ही नहीं था. आप किसी बलात्कारी और हत्यारे को रिहा कर रहे हैं, तब कर रहे हैं जब कोई अधिकार ही नहीं.

साफ है गुजरात विधानसभा चुनावों में माहौल बनाने के लिए या किसी अन्य राजनीतिक मकसद से किया गया होगा. यह लड़ाई मीडिया ने नहीं लड़ी. महुआ मोइत्रा ने लड़ी, जिन्हें संसद से निकाल दिया, जिनके खिलाफ गोदी मीडिया ने अभियान चलाया. महुआ संसद में हार गईं, मीडिया के सामने हार गईं मगर उनकी इस एक याचिका ने उस सच को सामने ला दिया जो दिख सबको रहा था, मगर बोल कोई नहीं रहा था.

बिलकीस बानो बेशक मुख्य याचिकाकर्ता थीं मगर उनके साथ तृणमूल नेता महुआ मोइत्रा, सीपीआईएम की पूर्व सांसद सुभाषिनी अली, प्रोफ़ेसर रूपरेखा वर्मा, पत्रकार रेवती लॉल ने भी 2022 में दोषियों की रिहाई के बाद कोर्ट के सामने अपनी याचिका दायर की थी. एक बार फिर से इस लड़ाई में वकील कपिल सिब्बल, वकील शोभा गुप्ता, वकील वृंदा ग्रोवर और वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पैरवी की. सुभाषिनी अली ने अपनी याचिका में कहा था कि यह अन्याय है. द वायर को उन्होंने एक इंटरव्यू दिया था और कहा था कि क्या नए भारत में इंसाफ़ अपराधी का धर्म और जाति देखकर होगा?

मोदी सरकार नारी वंदना, मातृ शक्ति का जाप करवाती रही, भाजपा के कार्यकर्ता और समर्थक भी यही करते रहें, मगर बिलकीस के जरिये भारत की महिलाओं के साथ खड़े होने का मौका प्रधानमंत्री मोदी चूक गए. चुप्पी उनकी थी, मिलीभगत गुजरात सरकार की थी, इस अपराध में वे सभी महिलाएं शामिल हो गईं, वो नागरिक शामिल हो गए जो मोदी के समर्थक होने के नाते चुप हो गए. यह कोई साधारण मामला नहीं था. हत्या और बलात्कार के जघन्य मामले में इन 11 लोगों की सजा हुई थी.

जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, विपिन चंद्र जोशी, केशरभाई वोहानिया, प्रदीप मोढ़डिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना. ये इनके नाम हैं. स्थानीय लोग माला और मिठाई लेकर पहुंच गए स्वागत करने. जब ये लोग बाहर आए थे तब इनके पैर छुए गए, माला पहनाई गई, माहिलाओं ने टीका लगाया था.

ऐसी खबरें भी छपीं कि विश्व हिंदू परिषद के नेताओं ने अपने दफ्तर में इनका स्वागत किया. इस पूरे मामले से प्रधानमंत्री को अलग करने के लिए भाजपा की प्रवक्ता शाज़िया इल्मी ने इंडियन एक्सप्रेस में लेख लिखा. बताया कि विश्व हिंदू परिषद ने किया है. इसका प्रधानमंत्री मोदी से कोई लेना-देना नहीं. इस पर विश्व हिंदू परिषद के नेता नाराज़ हो गए और भाजपा से ही सवाल कर दिया कि क्या यह पार्टी लाइन है या शाज़िया इल्मी की राय है. तो इस तरह से इस मामले में भाजपा गेंद को इस पाले में उस पाले में फेंक रही थी ताकि प्रधानमंत्री पर आंच  न आए.

क्या प्रधानमंत्री इस जवाबदेही से बच सकते हैं? उन्होंने तो कुछ नहीं कहा, अटल बिहारी वाजपेयी की तरह बोल सकते थे कि जो हुआ गलत हुआ लेकिन वे तो चुप रहे. गुजरात से आते हैं, वहां की सरकार ने ऐसा किया, बलात्कारी और हत्यारे के साथ सरकार खड़ी है और प्रधानमंत्री की कोई जवाबदेही नहीं बनती है.

क्या इसके लिए भी प्रधानमंत्री की कोई जवाबदेही नहीं बनती, ठीक से पढ़िए. भाजपा के विधायक हैं सीके राउलजी. इन्होंने रिहा हुआ दोषियों को संस्कारी ब्राह्मण कहा था. भाजपा विधेयक जेल की उस कमेटी के सदस्य थे जिसने इनकी रिहाई का प्रस्ताव किया था. सोचिए ब्राह्मण होने के नाते हत्यारे और बलात्कारियों को रिहा किया गया. क्या आईटी सेल इस खबर को जन-जन तक पहुंचाएगा कि भारत के प्रधानमंत्री की नाक के नीचे क्या हो रहा है?

देश के एक हिस्से को बदल दिया गया है और बाकी हिस्से को चुप रहने के लिए डरा दिया गया है. यह किसी और दौर का भारत होता तो प्रधानमंत्री राजनीतिक दबावों की चिंता करते, सोचते कि जनता में क्या संदेश जाएगा, मगर सबको भरोसा हो गया है, राम के नाम की गाड़ी गली-गली में घुमा दी जाएगी लोग भूल जाएंगे कि सरकार ने क्या किया है.

काम कुछ और भाषण कुछ और. जिस 15 अगस्त को बिलकीस बानो के साथ बलात्कार करने और उसके परिवार के सात लोगों की हत्या करने वालों को रिहा किया जा रहा था, उसी 15 अगस्त 2022 को प्रधानमंत्री लाल किले से देश से अपील कर रहे थे कि ‘किसी न किसी कारण से हमारे अंदर एक ऐसी विकृति आई है, हमारी बोलचाल में, हमारे व्यवहार में, हमारे कुछ शब्दों में हम नारी का अपमान करते हैं. क्या हम स्वभाव से, संस्कार से, रोजमर्रा की जिंदगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं.’

जनता से अपील कर रहे हैं, खुद जो करना चाहिए नहीं कर रहे थे. महिला विकास मंत्री स्मृति ईरानी याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट नहीं गई थीं. उन्हें जाना चाहिए था उनका काम था. कौन इस देश में हत्यारों के साथ खड़ा होता है? किस मजबूरी में खड़ा होता है, गुजरात सरकार से पूछा जाना चाहिए, किसके कहने पर हत्यारों के साथ यह सरकार मिलकर काम कर रही थी.

गुजरात दंगों पर ‘द एनाटमी ऑफ हेट‘ नाम से शानदार किताब लिखने वाली पत्रकार रेवती लॉल भी याचिकाकर्ताओं में से एक थीं.

यह लड़ाई भाजपा की महिला नेता क्यों नहीं लड़ रही थीं. उनके पास सरकार थी, ताकत थी अपनी ही सरकार से पूछने के लिए, क्या भाजपा की महिला नेताओं को इसमें कुछ भी गलत नहीं लगा, वो कैसे चुप रह गईं? तब फिर वे किस बात की नारी शक्ति और नारी वंदना के नाम पर धार्मिक रैलियों में जाती है, अगर बिलकीस के मज़हब से दिक्कत थी तो इससे क्यों नहीं दिक्कत हुई कि भाजपा के ही पुरुष विधायक हत्या करने वालों को ब्राह्मण और अच्छे संस्कार का बता रहे हैं. क्या भाजपा महिला नेताओं के हिंदू राष्ट्र की कल्पना में इन बातों को बर्दाश्त करना होगा?

सुप्रीम कोर्ट ने अब उन सभी नेताओं को सज़ा सुनाई है जो राष्ट्रवाद और नारी वंदना के नाम पर पगड़ी बांधकर वीर रस में प्रधानमंत्री मोदी का बखान करती हैं मगर बलात्कारी और हत्यारे की रिहाई पर एक शब्द बोलने की वीरता नहीं दिखा पाईं. यही धर्म की राजनीति की कायरता है. धर्म की राजनीति सामान्य विवेक को भी कीचड़ में बदल देता है.

2019 अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिलकीस को पचास लाख का मुआवज़ा, घर और नौकरी मिले. क्योंकि बिलकीस ने 17 साल बंजारों की तरह ज़िंदगी गुज़ारी है. बिलकीस ने 15 साल में बीस घर बदले थे. लेकिन मुआवज़ा देने में गुजरात सरकार ने पांच महीने की देरी की. जब वो वापस कोर्ट गईं तो सरकार की तरफ़ से वकील तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट स्पष्ट करे कि ये सिर्फ़ इसलिए हुआ है क्योंकि इस मामले में विशेष परिस्थिति है. कहने का मतलब है कि अपवाद के तौर पर निर्देश दिया जा रहा है. तब कोर्ट ने कहा कि ठीक है, हम स्पष्ट कर देते हैं. उसके बाद मेहता ने कहा कि हम दो हफ़्ते में पैसा दे देंगे. उस पर भी कोर्ट को कहना पड़ा था कि आपको इतनी देर नहीं लगानी चाहिए. हर कदम पर स्टेट बिलकीस का विरोध कर रहा था, हर कदम पर बिलकीस लड़ती जा रही थी.

बिलकीस की जीत भारत की उन महिलाओं और मर्दों को शर्मिंदा करती है जो इस केस पर इस लिए चुप हो गए क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी से सवाल करना पड़ता, उन्हें भाजपा से सवाल करना पड़ता.

आप अपनी इस हार को राम मंदिर की आड़ में नहीं छिपा सकते. वहां भी जवाब देना पड़ेगा. जब आपने किसी प्रकार की मर्यादा ही नहीं बचने दी तो राम की मर्यादा कहां से खड़ी कर पाएंगे. वरना राम के नाम पर इतनी शक्ति तो आ ही जाती कि ग़लत के खिलाफ बोलते. अन्याय के खिलाफ बोलते और न्याय की मांग करते. गुजरात पर डाक्यूमेंट्री क्या बनी, बीबीसी पर छापे पड़ गए, बैन लग गया. बिलकीस बानो के इस फैसले से आज गुजरात दंगों के दौर की खबरें फिर से लौट रही हैं. देश की जनता हर गलत पर चुप रही क्योंकि उसे राम मंदिर का सपना बांटा जा रहा था, एक बार फिर से उसे मौका मिला है गलत को गलत कहने का.

हमने ये उदाहरण क्यों दिया? देना बहुत ज़रूरी था. इनकी रिहाई का विरोध करने वाले कुछ लोग बचे हुए थे. सिस्टम के भीतर कोई था जिसका ईमान कांप रहा था कि ऐसा नहीं होना चाहिए. मार्च 2021 में मुंबई के ट्रायल कोर्ट के सिविल जज ने कहा था कि इन लोगों की बिलकीस या मारे गए लोगों से कोई दुश्मनी नहीं थी, कोई रिश्ता ही नहीं था. इनकी हत्या और बलात्कार केवल इसलिए किया गया क्योंकि ये एक धर्म विशेष के थे. नाबालिगों को भी नहीं बख्शा गया. ये इंसानियत के सबसे जघन्य अपराधों में से है. ये समाज की अंतरात्मा को प्रभावित करते हैं.

इसलिए हमने राम यात्रा की तस्वीरें दिखाईं आपसे पूछने के लिए कि राम की तस्वीर का इस्तेमाल आपको नैतिक रूप से मजबूत बनाने के लिए है या बस पर बनी प्रधानमंत्री की ऐसी कई अनैतिक चुप्पियों पर पर्दा डालने के लिए किया जा रहा है. इन हत्यारों की रिहाई को चुनौती नहीं दी जाती तो कई सच बाहर नहीं आते. जैसे सुनवाई के दौरान ही पता चला कि सीबीआई भी रिहाई के लिए तैयार नहीं थी. मुंबई के ट्रायल जज भी सहमत नहीं थे. सुनवाई के चलते गुजरात सरकार को खुद ये बात सुप्रीम कोर्ट को बतानी पड़ी.

सीबीआई के अधिकारी ने गोधरा की सब-जेल में सीबीआई की स्पेशल क्राइम ब्रांच के सुपरिंटेंडेंट को मार्च 2021 में पत्र लिखकर कहा था कि दोषियों का अपराध बहुत ही जघन्य और गंभीर है. इसलिए इन्हें जल्दी रिहाई नहीं मिलनी चाहिए और न ही कोई रियायत मिलनी चाहिए. मुंबई के सिविल जज ने कहा था कि सुनवाई महाराष्ट्र में हुई है तो महाराष्ट्र सरकार के रिहाई के नियम लागू होने चाहिए. मगर 13 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने ग्यारह में से एक आरोपी की याचिका पर फ़ैसला देते हुए कहा था कि ये मामला गुजरात सरकार के पास जाना चाहिए क्योंकि अपराध वहीं हुआ था.

इस तरह गुजरात सरकार ने आदेश जारी कर 15 अगस्त के दिन हत्या और बलात्कार के 11 दोषियों को समय से पहले रिहा किया. इसका मतलब कोई था, किसी का हाथ रहा होगा जो इनकी रिहाई चाहता होगा.

गुजरात सरकार ने कोर्ट को बताया था कि केंद्रीय गृह मंत्रालय की रज़ामंदी से ही ये रिहाई हुई थी. राज्य सरकार ने बताया था कि केंद्र के पास भेजे जाने के दो हफ़्तों के भीतर ही इनकी रिहाई की मांग स्वीकार कर ली गई थी. तो सवाल है कि जब इनकी रिहाई हुई थी उस समय सरकार ने ये बात सामने क्यों नहीं रखी थी.

रिहाई के समय कहा जा रहा था कि गोधरा की कमेटी ने मंज़ूरी दी, क्योंकि गुजरात सरकार के रिहाई के नियमों के तहत उसकी और अन्य विभागों की रज़ामंदी चाहिए थी. लेकिन रिहाई के दो महीने बाद कोर्ट के सामने रखे गए दस्तावेज़ में सामने आया कि गृह मंत्रालय ने दो हफ़्ते के भीतर ही रज़ामंदी दे दी थी. गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि आरोपियों ने 14 साल या उस से अधिक सज़ा काट ली है, उनका बर्ताव अच्छा है और केंद्र ने भी हामी भरी है इसलिए उन्हें रिहा किया गया.

जब यह खबर आई तब बिलकीस पर मानो बिजली गिर गई. बिलकीस ने कहा था कि मुझे अकेला छोड़ दें, मैं अपनी मरहूम बेटी सालेहा के लिए दुआ पढ़ रही हूं. बिलकीस के पति याकूब रसूल ने ख़बर आने के बाद कहा था कि ख़बर मिलने के बाद कुछ देर तक बिलकीस को यक़ीन नहीं हुआ, उसके बाद वो रोईं और फिर सहमकर चुप हो गईं. हमें इस बारे में पता नहीं. वे स्तब्ध हैं, शांति की प्रार्थना करते हैं.

गुजरात में हो रही हिंसा के दौरान बिलकीस अपने परिवार के साथ अपने गांव रंधिकपुर से भागीं. वो छपरवाड़ ज़िले में शरण ले रहे थे जब 20-30 लोगों के झुंड ने उन पर हमला कर दिया. इन में से ग्यारह वो थे जिन पर 3 मार्च 2002 को 21 साल की बिलकीस बानो के साथ गैंगरेप करने का आरोप लगा. बिलकीस उस समय पांच महीने की गर्भवती थीं. उनका अजन्मा बच्चा मारा गया, और उनकी तीन साल की बेटी समेत परिवार के सात लोग हत्या कर मार दिए गए थे. 2008 में ट्रायल के महाराष्ट्र भेज दिए जाने के बाद, एक सेशंस कोर्ट ने सभी आरोपियों को 302, और 376 के तहत आजीवन कारावास की सज़ा दी. मई 2017 में बॉम्बे हाई कोर्ट की पीठ ने सज़ा बरकरार रखी. 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने पचास लाख रुपये मुआवज़े का आदेश दिया.

अप्रैल 2023 में जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस केएम जोसेफ़ की पीठ सुनवाई कर रही थी. उन्होंने ऑर्डर दिया कि केंद्र और गुजरात की सरकारें अगली सुनवाई पर दोषियों की रिहाई की फ़ाइल तैयार रखेंगी. केंद्र और गुजरात सरकार ने कहा कि हम कोर्ट के फ़ैसले का रिव्यू फ़ाइल करेंगे, तब जस्टिस जोसेफ़ भी हैरान हुए थे. जस्टिस जोसेफ़ ने कहा था कि हम देखना चाहते कि क्या राज्य सरकार ने ऑर्डर जारी करते हुए सही सवाल पूछे थे और विवेक का प्रयोग किया था. सरकार की ओर से वकील ने कहा कि विवेक का प्रयोग हुआ है, तब कोर्ट ने कहा था कि आप फ़ाइल दिखाइए, हम देखना चाहते है कि क्या सरकार ने क़ानून के दायरे में रहते हुए रिहाई का आदेश दिया और क्या ये प्रामाणिक तरीक़े से किया गया. अगर आप कारण नहीं बताते हैं तो हमें मजबूरन अपने नतीजे पर आना होगा.

धर्म के आवरण का सहारा लेकर राजनेता खुद को अवतार घोषित करवा लें, लेकिन जिस संवैधानिक पद पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बैठे हैं, उनकी पार्टी भाजपा की सरकार है, उससे जो अपराध हुआ है, उससे बचने के लिए धर्म के किस प्रसंग का, किस ग्रंथ का सहारा लिया जाएगा, क्या वाल्मीकि या तुलसी के रामायण में ऐसा कोई प्रसंग आपको मिलता है जहां शासन के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति को ऐसी घटना के लिए कोई अफसोस न होता हो, जो कभी कार्रवाई न करता हो, जो कभी गलत को गलत न बोलता हो.

राजस्थान के श्रीकरणपुर में उपचुनाव हो रहा था, अपने उम्मीदवार को ही मंत्री बना दिया. आचार संहिता लागू थी, मगर परवाह नहीं की गई उन्हें पता है कि राम मंदिर के जश्न में डूबे भारत को अब कभी गलत नज़र ही नही आएगा, जितना गलत करना है उससे ज्यादा गलत करो. नतीजा क्या हुआ, श्रीकरणपुर की जनता ने भाजपा के उम्मीदवार को हरा दिया. जिसे जितने से पहले मंत्री बनाया गया था. आज भी प्रधानमंत्री का कोई जवाब नही आया. वे अयोध्या पर ट्वीट कर रहे हैं, उन्हें यह अन्याय नज़र नहीं आ रहा , चारों तरफ मंगलगान नज़र आ रहा है.

क्या यह राम की मर्यादा का भारत है, संवैधानिक मर्यादा का भारत है या मोदी की मर्यादा का भारत है जिसके नीचे सारी मर्यादाएं रौंदी जा रही हैं. सवाल आपको करना है उससे पहले आपको तय करना है कि सवाल करना किससे है? मोदी से या राम से. मोदी सरकार जिस सुप्रीम कोर्ट से मामले दर मामले में बचती रही, एक ऐसे फैसले की चपेट में आ गई जो मोदी उनकी सरकार और भाजपा की राजनीति, विचारधारा सबसे पर्दा हटा देती है.

उम्मीद है आपको कुछ तो दिखा होगा कि राम नहीं आ रहे हैं, राम के नाम पर कोई और आ रहे हैं.

अफसोस बिलकीस बानो ने आज एक बार फिर से पर्दा हटाया है.

(यह लेख रवीश कुमार के बिलकीस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर किए गए वीडियो कार्यक्रम की संपादित स्क्रिप्ट है.)