फ़िल्म की रिलीज़ से पहले बयानबाज़ी को बताया क़ानून के शासन का उल्लंघन, विदेशों में रिलीज़ रोकने संबंधी याचिका ख़ारिज.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने फिल्म पद्मावती को लेकर उच्च पदों पर आसीन लोगों द्वारा की गई टिप्पणियों को गंभीरता से लेते हुए मंगलवार को कहा कि यह बयान फिल्म के संबंध में पहले से धारणा बनाने जैसे हैं क्योंकि सेंसर बोर्ड ने अभी तक उसे प्रमाणित नहीं किया है.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने विदेश में फिल्म की रिलीज रोकने का निर्देश निर्माताओं को देने की मांग करने वाली ताजा याचिका खारिज कर दी.
उच्चतम न्यायालय ने फिल्म के बारे में उच्च पदासीन लोगों द्वारा दिए गए वक्तव्यों को गंभीरता से लेते हुए कहा कि यह पहले से धारणा बनाने जैसा है. न्यायालय ने कहा कि इस तरह के बयान देना कानून के शासन के सिद्धांत का उल्लंघन करना है क्योंकि सेंसर बोर्ड ने अभी तक फिल्म के लिए प्रमाण पत्र जारी नहीं किया है.
एनडीटीवी के मुताबिक, इस महीने में तीसरी बार सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म पद्मावती पर बैन लगाने से इनकार करते हुए कहा मुख्यमंत्रियों और फिल्म के विरोध में बोलने वालों को फटकार लगाई. कोर्ट ने कहा, जो लोग सार्वजनिक पदों पर हैं उन्हें ऐसे मुद्दों पर बयानबाजी नहीं करनी चाहिए. कोर्ट ने कहा, जब मामला सेंसर बोर्ड के पास लंबित है, सार्वजनिक पदों पर बैठे लोग यह बयान कैसे दे सकते हैं कि सेंसर बोर्ड फिल्म को प्रमाण पत्र जारी करे या ना करे?
याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता एमएल शर्मा ने न्यायालय से अनुरोध किया था कि वह सीबीआई को निर्देशक संजय लीला भंसाली और अन्य लोगों के खिलाफ मानहानि और सिनेमैटोग्राफी कानून के उल्लंघन का मामला दर्ज करने का निर्देश दे.
पीठ ने शर्मा की ओर से दायर ताजा याचिका पर कहा कि न्यायालय ऐसी फिल्म पर पहले से धारणा नहीं बना सकता, जिसे अभी सेंसर बोर्ड से प्रमाणपत्र नहीं मिला है. हालांकि, शर्मा शीर्ष न्यायालय में अधिवक्ता हैं इसलिए नाराज पीठ ने शर्मा पर इस तथ्य के मद्देनजर जुर्माना नहीं लगाया.
गौरतलब है कि फिल्म पद्मावती पर सेंसर बोर्ड का प्रमाणपत्र मिलने से पहले ही कई राज्य इसे प्रतिबंधित करने की घोषणा कर चुके हैं. उत्तर प्रदेश सरकार ने फिल्म की रिलीज से कानून व्यवस्था को खतरा बताया है, जबकि मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात ने इस पर प्रमाणपत्र मिलने और रिलीज होने के पहले ही प्रतिबंध की घोषणा कर दी है. इन चारों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने फिल्म को लेकर बयान भी जारी किए. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो पद्मावती को राजमाता तक घोषित कर चुके हैं.
भंसाली इतिहास की पवित्रता को बनाए रखने में असफल: विधानसभा अध्यक्ष
उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने सोमवार को कहा कि महाकवि जयशंकर प्रसाद वैदिक काल के इतिहास को कामायिनी में चित्रित किया है और इतिहास की पवित्रता को बनाए रखा है. लेकिन संजय लीला भंसाली यह कार्य नहीं कर पाए, उन्हें भारतीय संस्कृति की पवित्रता को बनाए रखना चाहिए था, इतिहास से छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए था.
दीक्षित लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में महाकवि जयशंकर प्रसाद के पुण्य स्मृति के उपलक्ष्य में आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे.
उन्होंने बताया कि जयशंकर प्रसाद का साहित्य वैदिक काल के इतिहास से भरा हुआ है. कामायिनी के माध्यम से उन्होंने भारतीय चेतना को जगाने का कार्य किया था और भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को जागृत करने का कार्य किया है.
दीपिका को पद्मावती के घूमर गीत पर नाचना नहीं चाहिए था: केंद्रीय मंत्री
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने रविवार को कहा था कि मशहूर अभिनेत्री दीपिका पादुकोण को राजपूतों की राजसी परंपराओं का ख्याल रखते हुए विवादास्पद फिल्म पद्मावती के घूमर गीत पर नाचने से इनकार कर देना चाहिए था.
अठावले ने यहां संवाददाताओं से कहा कि दीपिका अपनी निजी हैसियत में घूमर गीत पर नाच सकती हैं. लेकिन चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मावती राजपूतों की राजसी परंपराओं के चलते किसी सार्वजनिक समारोह में इस गीत पर वैसा नृत्य नहीं कर सकती थीं, जैसा नृत्य इस 31 वर्षीय अभिनेत्री ने संजय लीला भंसाली की विवादास्पद फिल्म में किया है.
उन्होंने कहा, दीपिका को फिल्म के निर्देशक को साफ मना कर देना चाहिए था कि वह घूमर गीत पर नहीं नाचेंगी. निर्देशक को भी इस गीत को फिल्माने से पहले राजपूत परंपराओं का अच्छी तरह अध्ययन करना चाहिए था. उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि दीपिका को संभवत: यह डर रहा होगा कि अगर वह फिल्म पद्मावती के घूमर गीत पर नाचने से इनकार कर देंगी, तो माधुरी दीक्षित इस फिल्म में उनका स्थान ले लेंगी.
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जब तक सेंसर बोर्ड इस फिल्म को हरी झंडी नहीं देता, तब तक इसके विज्ञापनों पर भी रोक लगा देनी चाहिए. विवादास्पद दृश्यों को हटाए जाने के बाद ही इस फिल्म को परदे पर उतारे जाने की अनुमति दी जानी चाहिए.
पद्मावती जैसे किरदारों को संदर्भ से हटाकर पेश करना अस्वीकार्य: गिरिराज सिंह
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने रविवार को कहा था कि पद्मावती जैसे किरदारों को संदर्भ से हटाकर पेश करना अस्वीकार्य है. उन्होंने पद्मावती फिल्म पर विवाद के बीच यह टिप्पणी की है. विरोध प्रदर्शनों और धमकियों के कारण फिल्म की रिलीज की तारीख टाल दी गई है.
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम राज्य मंत्री गिरिराज ने कहा कि फिल्म में पद्मावती के किरदार का जिस तरह वर्णन किया गया है वह उनकी वीरता एवं त्याग से मेल नहीं खाता और यह स्वीकार्य नहीं हैं.
जोधपुर में गिरिराज ने कहा, महात्मा गांधी, शिवाजी, महाराणा प्रताप, रानी लक्ष्मी बाई और पद्मावती हमारे आदर्श हैं. उनकी असल कहानियां, फिल्मों में उनका त्याग स्वीकार्य है, लेकिन इन किरदारों को संदर्भ से हटाकर पेश करना अस्वीकार्य है.
फिल्म में रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के पात्रों के बीच रोमांस के दृश्यों की अफवाहों के बीच कई राजपूत संगठन एवं अन्य इस फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. उनका आरोप है कि यह फिल्म इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है.
केंद्रीय मंत्री ने सवाल किया कि क्या हिंदू धर्म को छोड़कर किसी और धर्म या समुदाय पर फिल्म बनाना और उन धर्मों को संदर्भ से हटा कर पेश करना संभव है?
उन्होंने कहा, चूंकि हिंदू धर्म उदार है, इसलिए कोई इस पर फिल्म बना देता है तो कभी हिंदू देवताओं पर फिल्में बन जाती हैं. यह स्वीकार्य नहीं है.
पुरातत्व विभाग ने चित्तौड़गढ़ महल में सूचना पट्ट को ढंका
राजस्थान के पुरातत्व विभाग ने राजपूत करणी सेना की मांग पर चित्तौड़गढ़ महल के अंदर विवादित सूचना पट्ट को कपड़े से ढंक दिया है. इस पट्ट पर अलाउद्दीन खिलजी द्वारा दर्पण के जरिये रानी पद्मिनी को देखे जाने की बात लिखी है.
विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि विरोधियों की मांग पर सूचना पट्ट को रविवार को एक कपडे़ से ढंक दिया गया. महल के अंदर लगे सूचना पट्ट पर लिखा है कि अलाउद्दीन खिलजी ने एक दर्पण के जरिये रानी पद्मिनी को देखा था.
करणी सेना के एक प्रतिनिधि ने कहा कि वे मांग कर रहे थे कि इस सूचना को हटाया जाना चाहिए क्योंकि यह गलत तथ्य है. विभाग ने इसे कपडे़ से ढंक दिया है.
राजपूत समाज के नेताओं ने कहा कि यह तथ्यहीन सच है क्योंकि वर्ष 1303 में जब चित्तौड़गढ़ किले पर अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया था तो उस समय दर्पण हुआ ही नहीं करते थे.
हालांकि कुछ इतिहासकार खिलजी द्वारा दर्पण के जरिये रानी पद्मावती को देखे जाने के संबंध में मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा लिखी गई बात से सहमत नहीं हैं. उनका दावा है कि यह केवल किंवदंती है.
राजपूत करणी सेना के संस्थापक लोकेंद्र सिंह कालवी ने कहा कि उन्हें इस कहानी पर आपत्ति थी कि अलाउद्दीन खिलजी ने पद्मावती का चेहरा एक दर्पण के जरिये देखा था, क्योंकि उस समय दर्पण था ही नहीं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)