22 जनवरी के कार्यक्रम के लिए अयोध्या न जाने की पुष्टि करने वाले शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय की टिप्पणियों की आलोचना करते हुए कहा कि आम चुनावों के कारण आयोजन को इतना शानदार बनाया जा रहा है और इसे राजनीतिक शो में तब्दील कर दिया गया है.
नई दिल्ली: अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को लेकर संतों के एक वर्ग में नाराज़गी दिखाई देने लगी है. इस नाखुशी का कारण श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय द्वारा हाल ही में यह कहना था कि मंदिर रामानंदी संप्रदाय का है, संन्यासियों का नहीं.
अमर उजाला को दिए इंटरव्यू में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि निर्माण कार्य पूरा करने की कोई जल्दी नहीं है, क्योंकि सिर्फ नींव बनाने में ही 18 महीने लग गए.
उन्होंने अखबार को बताया, ‘पहले, विचार यह था कि इसे 18 महीने में बनाया जाएगा… इसलिए, नींव 18 महीने में बनाई जा सकती थी. विचार यह था कि इसे तीन साल में बनाया जाएगा. जुलाई 2020 से शुरू करें तो 2023 के साथ साढ़े तीन साल बीत चुके हैं. अब, अगर कोई तय करता है कि इसे एक साल के भीतर पूरा किया जाएगा, तो एक साल के बाद उसे बताना होगा कि अभी भी कितना अधूरा है.’
नए मंदिर में पूजा की विधि के बारे में पूछे जाने पर राय ने कहा कि चूंकि यह राम मंदिर है, इसलिए रामानंदी परंपरा का पालन किया जाएगा.
उन्होंने कहा, ‘मंदिर रामानंदी संप्रदाय का है, संन्यासियों का नहीं, शैव या शाक्त का नहीं.’
उधर, शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती, जिन्होंने पुष्टि की है कि वह 22 जनवरी के कार्यक्रम के लिए अयोध्या नहीं जाएंगे, ने राय की टिप्पणियों की आलोचना की और उन्हें सत्ता की स्थिति में रहते हुए अपना कद कम न करने की सलाह दी.
चंपत राय को शंकराचार्य का करारा जवाब #rammandirnews https://t.co/NA9IM9rZi5 via @YouTube
— Ram Dutt Tripathi (@Ramdutttripathi) January 9, 2024
शंकराचार्य ने कहा था कि वह अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक के लिए भव्य आयोजन से नाखुश हैं.
उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि इसे एक राजनीतिक शो में तब्दील किया जा रहा है. टाइम्स ऑफ इंडिया ने उनके हवाले से लिखा है, ‘आगामी आम चुनावों के कारण इस आयोजन को इतना शानदार बनाया जा रहा है… जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मूर्ति का अनावरण कर रहे हों तो किसी मंदिर के बाहर बैठकर ताली बजाना उचित नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘हमारे मठ को अयोध्या में 22 जनवरी के कार्यक्रम के लिए निमंत्रण मिला है, जिसमें कहा गया है कि अगर मैं वहां आना चाहता हूं, तो मैं अधिकतम एक व्यक्ति के साथ वहां आ सकता हूं. अगर मुझे वहां 100 लोगों के साथ रहने की इजाजत होती तो भी मैं उस दिन वहां नहीं जाता.’
हालांकि, शंकराचार्य ने हिंदुत्व के प्रति प्रतिबद्धता के लिए प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा की, उन्होंने न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘तीर्थस्थलों को अब विकास के नाम पर पर्यटन के केंद्रों में बदल दिया जा रहा है, जिसका अर्थ है कि तीर्थ स्थलों को शायद भोग स्थलों में बदल दिया जा रहा है. इसे लोग विकास के नाम पर भी भुना रहे हैं.’
द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक, चार शंकराचार्यों ने राम मंदिर के आयोजन में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है.
ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, ‘हम मोदी विरोधी नहीं हैं, लेकिन हम धर्मशास्त्र विरोधी भी नहीं होना चाहते.’
उन्होंने कहा, ‘शंकराचार्य का दायित्व है कि वो शास्त्रसम्मत विधि का पालन करें और करवाएं. अब वहां पर शास्त्र विधि की उपेक्षा हो रही है. सबसे पहली उपेक्षा है कि मंदिर अभी पूरा नहीं बना है और प्रतिष्ठा की जा रही है. कोई ऐसी परिस्थिति नहीं है कि ये अचानक कर देना पड़े.’
उन्होंने आगे कहा, ‘देखो, किसी 22 दिसंबर की रात को वहां मूर्तियां रख दी गई थीं. वो एक परिस्थिति थी… और जिस रात को ढांचा हटाया जा रहा था, तब कोई मुहूर्त थोड़ी न देखा गया था…क्या तब किसी शंकराचार्य ने प्रश्न उठाया था. नहीं, क्योंकि तब परिस्थिति थी. अब ऐसी कोई परिस्थिति नहीं है कि 22 तारीख को ही करना है. आज हमारे पास मौका है, हम अच्छे से प्राण-प्रतिष्ठा कर सकते हैं. लेकिन फिर भी अधूरे मंदिर में ऐसा आयोजन किया जा रहा है. तो ये हम कैसे स्वीकार कर लें.’
मीडिया स्वराज के अनुसार, ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने अलग से चंपत राय से इस्तीफा देने की मांग करते हुए कहा है कि उन्हें और ट्रस्ट के सभी सदस्यों को तुरंत इस्तीफा देना चाहिए और मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी रामानंदी संप्रदाय को सौंप देनी चाहिए.
मीडिया स्वराज के यूट्यूब चैनल ने एक विश्लेषण में कहा, ‘शंकर और राम के बीच अंतर करना काफी अजीब लगता है. क्योंकि यह रामायण है, राम कथा है, अगर आप इसे पढ़ते हैं, तो भगवान शिव और पार्वती, वे स्वयं राम के भक्त हैं और भगवान राम ने रामेश्वरम में एक बड़ा शिव मंदिर भी स्थापित किया है.’
मीडिया आउटलेट ने कहा, ‘चंपत राय का राम भक्तों और शिव भक्तों में अंतर करने का बयान और हिंदू सनातन की संस्थाओं को किनारे करने की कोशिशें और राम मंदिर निर्माण की संस्था पर पूर्ण नियंत्रण रखने वाले विहिप, आरएसएस, भाजपा के प्रयास, ऐसा प्रतीत होता है कि इन सभी चीजों ने शकराचार्य को नाराज कर दिया है.’