हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र से पूछा- क्या आपराधिक अतीत वालों को जीने का हक़ नहीं?

महाराष्ट्र सरकार की दलील, आपराधिक रिकॉर्ड वालों की जान को ख़तरा उनकी करनी का नतीजा है.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो : पीटीआई)

महाराष्ट्र सरकार की दलील, आपराधिक रिकॉर्ड वालों की जान को ख़तरा उनकी करनी का नतीजा है.

बॉम्बे हाई कोर्ट (फोटो : पीटीआई)
बॉम्बे हाई कोर्ट (फोटो : पीटीआई)

मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को महाराष्ट्र सरकार से सवाल किया कि क्या उसका यह मानना है कि आपराधिक अतीत वाले लोगों को सुरक्षित जीवन का कोई अधिकार नहीं है?

अदालत ने यह नाराजगी उस समय जतायी जब सरकार ने दलील दी कि उसने आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों को पुलिस सुरक्षा नहीं देने का फैसला किया है क्योंकि उनकी जान पर कोई खतरा उनकी अपनी गतिविधि का परिणाम है.

लोक अभियोजक अभिनंदन वाज्ञानी ने कहा कि वे लोग आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहे हैं, इसलिए उनकी जान पर खतरा है. उन्होंने कहा कि यह उनकी अपनी करनी का नतीजा है और इसलिए हमने उन्हें पुलिस सुरक्षा नहीं देने का फैसला किया है.

मुख्य न्यायाधीश मंजूला चेल्लूर और न्यायमूर्ति एमएस सोनक की पीठ ने कहा कि क्या इसका यह अर्थ है कि राज्य का मानना है कि आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों को सुरक्षित जीवन जीने का अधिकार नहीं है.

अदालत ने कहा, यह क्या बकवास है, क्या आप यह कह रहे हैं कि जिनका आपराधिक अतीत रहा है, उन्हें कोई अधिकार नहीं है क्या कोई आए और उनकी हत्या कर दे…

पीठ एक जनहित याचिका की सुनवाई कर रही थी जिसे एक वकील ने दाखिल किया है. इसमें राज्य पुलिस को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि नेताओं और फिल्मी कलाकारों सहित उन वीआईपी लोगों से बकाया राशि वसूल की जाए जिन्हें सुरक्षा मुहैया कराई गई है लेकिन इसके लिए उन्होंने पैसे का भुगतान नहीं किया है.

जनहित याचिका के अनुसार राज्य पुलिस के करीब एक हजार कर्मी निजी लोगों की सुरक्षा में तैनात हैं. उच्च न्यायालय ने अब सुनवाई की अगली तारीख 30 नवंबर को महाधिवक्ता को समन किया है.