मतदान कराने में विफल रहने के लिए चुनाव आयोग को जम्मू-कश्मीर के लोगों से माफ़ी मांगनी चाहिए: उमर

पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप कर जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव पर निर्देश पारित करना पड़ा. उन्होंने राजस्थान के साथ 40 साल के लिए बिजली ख़रीद समझौते का भी विरोध किया है. उन्होंने कहा कि यह हमारे संसाधनों की लूट है.

उमर अब्दुल्ला. (फोटो साभार: फेसबुक)

पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप कर जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव पर निर्देश पारित करना पड़ा. उन्होंने राजस्थान के साथ 40 साल के लिए बिजली ख़रीद समझौते का भी विरोध किया है. उन्होंने कहा कि यह हमारे संसाधनों की लूट है.

उमर अब्दुल्ला. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने बीते बुधवार (10 जनवरी) को केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव कराने में देरी को लेकर चुनाव आयोग की आलोचना की. उन्होंने राजस्थान के साथ 40 साल के लिए बिजली खरीद समझौते का भी विरोध किया.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, अब्दुल्ला ने कहा, ‘भारत को लोकतंत्र की जननी कहा जा रहा है, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जम्मू-कश्मीर में इसकी हत्या की जा रही है. यह अफसोसजनक है कि सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप कर जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव पर निर्देश पारित करना पड़ा. चुनाव आयोग कार्यक्रम की घोषणा करने और चुनाव कराने के लिए बाध्य था. चुनाव आयोग को शर्म से अपना सिर झुका लेना चाहिए और लोगों से माफी भी मांगनी चाहिए.’

मालूम हो कि दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र की मोदी सरकार के निर्णय को वैध माना था. इसके साथ ही अदालत ने चुनाव आयोग को 30 सितंबर 2024 से पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव कराने का भी निर्देश दिया था.

जम्मू-कश्मीर में 2018 से विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं. इसके अलावा बीते 9 जनवरी से जमीनी स्तर पर यहां के लोगों के चुनावी प्रतिनिधियों का कार्यकाल खत्म हो गया.

दरअसल लगभग 30,000 स्थानीय प्रतिनिधियों का पांच साल का कार्यकाल 9 जनवरी से समाप्त हो गया और इस पर कोई स्पष्टता नहीं है कि नगर निकायों और पंचायतों के लिए अगला चुनाव कब होगा, क्योंकि केंद्र सरकार ने पहले परिसीमन अभ्यास करने का फैसला किया है.

पंचायत चुनाव आखिरी बार 2018 के अंत में पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर में हुए थे. कुल 27,281 पंच (पंचायत सदस्य) और सरपंच (ग्राम प्रधान) चुने गए थे, जिन्होंने 10 जनवरी 2019 को शपथ ली थी. जम्मू-कश्मीर में 12,776 सरपंच और पंच सीटें खाली हैं.

जम्मू-कश्मीर जून 2018 से केंद्रीय शासन के अधीन है, जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की गठबंधन सरकार गिर गई और विधानसभा भंग हो गई था. पिछला विधानसभा चुनाव 2014 में हुआ था.

इसके बाद अगस्त 2019 में संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को हटाए जाने के बाद इस पूर्व राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों – जम्मू-कश्मीर और लद्दाख – में विभाजित कर दिया गया था. लद्दाख को बिना विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया है.

बहरहाल शहरी स्थानीय निकायों और पंचायतों के चुनाव कराने में संभावित देरी पर अब्दुल्ला ने कहा कि सरकार को मंगलवार (9 जनवरी) को निवर्तमान निर्वाचितों का कार्यकाल समाप्त होने से पहले परिसीमन प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए थी.

उन्होंने कहा, ‘सरकार को चुनाव के लिए सभी आवश्यक औपचारिकताओं को पांच-छह महीने पहले ही अंतिम रूप दे देना चाहिए था.’

अब्दुल्ला ने नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनएचपीसीएल) और जम्मू कश्मीर स्टेट पावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (जेकेएसपीडीसी) के बीच एक संयुक्त उद्यम ‘रैटल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन’ लिमिटेड (आरएचपीसीएल) को राजस्थान ऊर्जा विकास और आईटी सर्विसेज लिमिटेड के साथ 40 वर्षों के लिए बिजली खरीद समझौते पर हस्ताक्षर करने की अनुमति देने के हालिया कदम पर भी आपत्ति जताई.

अब्दुल्ला ने कहा, ‘हम ऐसा नहीं होने देंगे. यह हमारे संसाधनों की लूट है. अगर जरूरी हुआ तो हम अपनी बिजली वापस पाने के लिए कानूनी सहारा लेने सहित सभी रास्ते अपनाएंगे. जम्मू-कश्मीर बिजली की समस्या से जूझ रहा है.’

इस समझौते पर कथित तौर पर 3 जनवरी को जयपुर में हस्ताक्षर किए गए थे. यह परियोजना की व्यावसायिक गतिविधियां शुरू होने की तारीख से 40 वर्षों तक लागू रहेगा.

इस घटनाक्रम पर जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों ने गंभीर चिंता व्यक्त की है, जो गंभीर रूप से बिजली की कमी का सामना कर रहा है.

हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा था, ‘ऐसे समय में जब जम्मू-कश्मीर पहले कभी नहीं देखे गए गंभीर बिजली संकट का सामना कर रहा है, हमारे जल-विद्युत संसाधनों को अन्य राज्यों को आउटसोर्स किया जा रहा है. एक और निर्णय जो जम्मू-कश्मीर के निवासियों को सामूहिक रूप से दंडित करने के इरादे से उनकी बुनियादी सुविधाओं को छीन लेगा.’

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