कर्नाटक हाईकोर्ट ने सैन्य नर्सिंग नौकरियों में महिलाओं के लिए 100 प्रतिशत कोटा रद्द किया

कर्नाटक हाईकोर्ट ने ब्रिटिश कालीन भारतीय सैन्य नर्सिंग सेवा अध्यादेश, 1943 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया, जिसमें ‘नर्सिंग अधिकारियों’ के कैडर में महिलाओं के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया था. हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि इस अध्यादेश के तहत पिछले कुछ दशकों में की गईं नियुक्तियां उसके इस आदेश से प्रभावित नहीं होगी.

कर्नाटक हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

कर्नाटक हाईकोर्ट ने ब्रिटिश कालीन भारतीय सैन्य नर्सिंग सेवा अध्यादेश, 1943 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया, जिसमें ‘नर्सिंग अधिकारियों’ के कैडर में महिलाओं के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया था. हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि इस अध्यादेश के तहत पिछले कुछ दशकों में की गईं नियुक्तियां उसके इस आदेश से प्रभावित नहीं होगी.

कर्नाटक हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: कर्नाटक हाईकोर्ट ने भारतीय सैन्य नर्सिंग सेवा अध्यादेश, 1943 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया है, जिसमें ‘नर्सिंग अधिकारियों’ के कैडर में महिलाओं के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया था.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटिश काल के कानून को चुनौती देने वाली 2011 में दायर एक याचिका की अनुमति देते हुए हाईकोर्ट ने 5 जनवरी 2024 को अपने फैसले में कहा, ‘भारतीय सैन्य नर्सिंग सेवा अध्यादेश, 1943 की धारा 6 में मिला पद ‘अगर महिला है’ को रद्द कर दिया जाता है. यह असंवैधानिक है.’

हालांकि, हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि 1943 के अध्यादेश के तहत पिछले कुछ दशकों में की गईं नियुक्तियां इस आदेश से प्रभावित नहीं होगी.

इसमें कहा गया है, ‘इस तरह की व्याख्या के दूरगामी, अवांछनीय परिणाम होंगे और कई चीजें अस्थिर हो जाएंगी जो बहुत पहले ही तय हो चुकी हैं.’

100 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाले 1943 के अध्यादेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता संजय एम. पीरापुर, शिवप्पा मारनबासारी और कर्नाटक नर्सेज एसोसिएशन ने जस्टिस अनंत रामनाथ हेगड़े की पीठ के समक्ष तर्क दिया कि यह कानून भारत पर शासन करने वाले ब्रिटिश क्राउन द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध की आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए बनाया गया था.

संजय और शिवप्पा को 2010 में नर्सिंग अधिकारियों की भर्ती में भाग लेने का मौका नहीं दिया गया था, जिसे उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.

1943 के अध्यादेश को स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रपति द्वारा कानूनों के अनुकूलन, आदेश 1950 के तहत अपनाया गया था.

हालांकि हाईकोर्ट ने कहा, ‘भारत के संविधान के अनुच्छेद 372(2) के तहत अनुकूलित कानून की तुलना भारत के संविधान के अनुच्छेद 33 के तहत संसद द्वारा बनाए गए कानून से नहीं की जा सकती है.’

हाईकोर्ट ने कहा कि हालांकि संसद के पास विशेष शक्तियां हैं, लेकिन यह अध्यादेश भारतीय संसद द्वारा पारित नहीं किया गया है.

हाईकोर्ट ने कहा, ‘क्या अध्यादेश, 1943 संसद द्वारा प्रख्यापित किया गया है? इसका उत्तर ‘नहीं’ है.’ और यह भी कहा कि यह प्रावधान असंवैधानिक है.

आदेश में कहा, ‘इस अदालत का मानना है कि अध्यादेश, 1943 के तहत ‘नर्सिंग अधिकारियों’ की भर्ती के दौरान महिलाओं को दिया गया विशेष आरक्षण वर्गीकरण के रूप में भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 16 (2) और 21 के तहत गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन करता है.’