धर्म की मर्यादा बनाम वैयक्तिक अहंकार

22 जनवरी को होने वाले अयोध्या के राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से पहले संत समाज का एक वर्ग क्यों रुष्ट हो गया है?

अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर. (फोटो साभार: श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र)

22 जनवरी को होने वाले अयोध्या के राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से पहले संत समाज का एक वर्ग क्यों रुष्ट हो गया है?

भारत के समाज मे कई राम हैं. दशरथनंदन राम, बलराम, भार्गवनंदन राम, कबीर के राम, दादू के राम, रैदास के राम आदि आदि. समाज में सभी राम ग्राह्य और पूज्य हैं. निर्गुण राम की उपासना की अपनी पद्धति है. दशरथ पुत्र राम की पूजा सगुण-साकार और विशिष्ट विधियों से होती है. भारतीय समाज में भले भिन्न-भिन्न राम उपास्य हों किंतु आदर्श बेटा, भाई, पिता और राज्य के रूप में अयोध्या के राम ही स्वीकार्य हैं.

महर्षि वाल्मीकि के राम मानुषिक हैं. श्रीमद् वाल्मीकीयरामायण में श्रेष्ठ व उच्च मानवीय गुणों वाले मनुष्यों की खोज में महर्षि वाल्मीकि ने तप और स्वाध्याय में लगे मुनिवर नारद से पूछा था- इस समय संसार में गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवक्ता, दृढ़प्रतिज्ञ, सदाचारयुक्त, सर्वभूत हितसाधक, विद्वान सामर्थ्यशाली, एकमात्र प्रियदर्शन, मन पर अधिकार रखने वाला, क्रोध को जीतने वाला, कांतिमान, किसी की निंदा न करने वाला और संग्राम में कुपित होने पर जिससे देवता भी भयभीत हो जाते हों ऐसा सामर्थ्यवान पुरुष कौन है.

अनंतर तीनों लोकों का ज्ञान रखने वाले नारद मुनि ने इक्ष्वाकुवंशी दशरथ-पुत्र राम को परमलाक्षणिक कहा.

रामायण के उक्त प्रसंग की चर्चा करना यहां प्रासंगिक है. रामायण के बाद के कांडों और सर्गों में राम की अभिव्यक्ति एक मनुष्य के रूप में हुई है जो अपनी कमजोरियों पर जीत हासिल करता है. इन्हीं कारणों से कवि ने उन्हें धर्म का साक्षात प्रतिमा कहा- ‘रामो विग्रहवान् धर्मः’.

उन्हीं राम की जन्मभूमि पर लंबे विवाद और संघर्ष के बाद अब मंदिर बन रहा है और केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी उसका श्रेय लेने में, तो कांग्रेस, शिवसेना और अन्य नेता अपना श्रेय लेने में लगे हैं. सबसे अलग भारतीय अखबारों (खासकर हिंदी) और टीवी चैनलों में एक अलग प्रकार की प्रतियोगता चल रही.

हिंदू धर्म के सर्वमान्य आचार्यों और कई संत-महंतों ने राम मंदिर उद्घाटन में होने वाली शास्त्रीय अनदेखी के कारण प्रत्यक्ष तो नहीं किंतु सैद्धांतिक विरोध करना शुरू कर दिया है. इसके कई कारण है- प्रधानमंत्री का सपत्नीक अनुष्ठान न करना, मुहूर्त का दोष, संपूर्ण मंदिर निर्माण का न होना आदि-आदि.

इसी बीच राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र के सचिव चंपत राय ने कहा कि यह रामानंदी संप्रदाय का मंदिर है और अनुष्ठान-पूजा उसी के अनुकूल होगा. इसे लेकर ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि मंदिर रामानंदी संप्रदाय को सौंप दें और किसी पार्टी का मंदिर न बनें.

अब यहां सवाल है कि जिस राम का जीवन धर्म और मर्यादा के लिए ही हो उनके मंदिर का कार्यक्रम कैसे स्मृति विधि-निषेध प्रतिकूल हो? प्रमुख आचार्यों को निमंत्रित क्यों किया गया? यदि मंदिर रामानंदियों का है तो मूल पीठ के रामनंदाचार्य रामनरेशाचार्य को निमंत्रित क्यों न किया गया? क्या जल्दी है प्राण-प्रतिष्ठा की? जिस राम ने अश्वमेध यज्ञ मे सीता के अभाव में स्वर्ण की मूर्ति बना यज्ञ किया हो, उनकी प्रतिष्ठा मोदीजी क्यों करें?

अयोध्या के महंत जयराम दास ने कल एक पोस्ट लिखा और प्रधानमंत्री से अपील की- महंत जयराम दास की अपील है:

‘श्रीराम मंदिर उद्घाटन के प्रधान-यजमान माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी स्वयं चारों पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्यों और श्रीमठ वाले रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज से प्रार्थना-पूर्वक संवाद करके आमंत्रित करें और समारोह स्थल पर उनके लिए विशेष प्रोटोकॉल का प्रबंध करें. इससे देश में बहुत अच्छा संदेश जाएगा. यह धार्मिक रूप से भी उचित होगा ओर राजनीतिक रूप से भी. सनातन के सर्वोच्च धर्माचार्यों का सम्मान हम सबका कर्तव्य है.’

वे आगे लिखते हैं: … तो सबको अपना अहंकार संतुलित रखना होगा. शंकराचार्यों का सम्मान कर मोदी जी छोटे नहीं हो जाएंगे, प्रत्युत उनका यश और कीर्ति भी अभिवर्धित होगा. यही धर्मानुशासन है. लौकिक सामाजिक व्यवहार भी.

अब देखना है कि धर्म की मर्यादा का अनुशीलन होता है या वैयक्तिक अहंकार का.

(लेखक सत्य धर्म संवाद के संयोजक हैं.)