ओडिशा सरकार ने राज्य के डॉक्टरों को ‘न्यायिक प्रणाली में साक्ष्यों के संबंध में’ मेडिको-लीगल रिपोर्ट या पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को बड़े अक्षरों में या टाइप किए गए रूप में या पढ़ने लायक लिखावट में लिखने का भी निर्देश दिया. हाल ही में उड़ीसा हाईकोर्ट ने कहा था कि डॉक्टरों के बीच टेढ़ी-मेढ़ी लिखावट का चलन फैशन बन गया है.
नई दिल्ली: ओडिशा सरकार ने राज्य में डॉक्टरों को सही पढ़ने लायक लिखावट में या टाइप किए गए रूप में प्रेस्क्रिप्शन (इलाज के लिए दवाइयों की पर्चा) लिखने का निर्देश दिया है. उड़ीसा हाईकोर्ट के निर्देश के बाद राज्य सरकार ने इस संबंध में आदेश जारी किया है.
सरकार ने डॉक्टरों को ‘न्यायिक प्रणाली में साक्ष्यों के लिए’ मेडिको-लीगल रिपोर्ट या पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को बड़े अक्षरों में या टाइप किए गए रूप में या सुपाठ्य लिखावट में लिखने का भी निर्देश दिया.
यह निर्देश राज्य के सरकारी और निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों के सभी डॉक्टरों पर लागू है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य सचिव पीके जेना द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि हालांकि समय-समय पर निर्देश दिया गया है कि सामान्य नाम दर्शाते हुए वैध स्पष्ट लिखावट में लिखा जाए, लेकिन यह देखा गया है कि कई चिकित्सा अधिकारियों द्वारा निर्देश का पालन नहीं किया जाता है.
एक याचिका का निपटारा करते हुए उड़ीसा हाईकोर्ट ने बीते 4 जनवरी को अपने आदेश में कहा था, ‘पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट लिखते समय अधिकांश डॉक्टरों का लापरवाह रवैया मेडिको-लीगल दस्तावेजों की समझ को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है. न्यायिक प्रणाली को उन पत्रों को पढ़ने और किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने में बहुत कठिनाई होती है.’
कोर्ट ने यह भी कहा है कि डॉक्टरों के बीच ऐसी टेढ़ी-मेढ़ी लिखावट में लिखने का चलन फैशन बन गया है, जिसे कोई आम आदमी या न्यायिक अधिकारी पढ़ नहीं सकता.
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘राज्य में बड़ी संख्या में डॉक्टर ऐसी लिखावट का सहारा लेते हैं, जिसे कोई भी सामान्य व्यक्ति नहीं पढ़ सकता है.’
इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कि चिकित्सा पेशेवरों की ड्यूटी ‘बहुत व्यस्त और कठिन’ है, अदालत ने कहा कि आराम से कुछ लिखने के लिए समय निकालना अक्सर निर्धारित समय के भीतर अधिक रोगियों की जांच करने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न करता है.
अदालत ने कहा, ‘यह उम्मीद की जाती है कि कोई भी डॉक्टर, जो मेडिको-लीगल मुद्दों से निपट रहा है और बहुत खराब लिखावट के साथ लापरवाही से लिख रहा है, उसे अपना रवैया बदलना होगा और या तो बड़े अक्षर में या टाइप किए गए फॉर्म में या अच्छी लिखावट में लिखना होगा, ताकि न्यायिक प्रणाली को उनकी लिखावट पढ़ने में अनावश्यक दिक्कत न हो.’
मालूम हो कि इससे पहले साल 2020 में उड़ीसा हाईकोर्ट ने डॉक्टरों की ‘अपठनीय’ लिखावट पर नाराजगी जताते हुए राज्य सरकार से एक परिपत्र जारी करने को कहा था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे पठनीय और खासतौर पर बड़े अक्षरों में मरीज को प्रेस्क्रिप्शन (दवा का पर्चा) लिखें.